गुरुवार, 4 नवंबर 2010

हिन्दी फिल्मों में दीपावली

अपनी विराट भव्यता में दीपावली का त्यौहार किसी फिल्म में यदि दिखायी देता है तो वह करण जौहर की एक बहुत अच्छी फिल्म कभी खुशी कभी गम में है। अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, शाहरुख खान, हिृतिक रोशन, काजोल और करीना स्टारर यह फिल्म आकलन की दृष्टि से देखा जाए तो एक बड़ी परफेक्ट स्टारकास्टिंग वाली फिल्म है। फिल्म की अपनी कहानी, संवेदनशील और भावनात्मक तो है ही मगर उसके साथ दृश्यों के प्रस्तुतिकरण, सिनेमेटोग्राफी के श्रेष्ठ कमाल के साथ उसको परदे पर देखना अनुभूतिजन्य है। परिवार के मुखिया रायचन्द के घर दीपावली अपने दृश्यों में याद रहती है। महल से भव्य जगमगाता घर, दीए, पूजा-आरती-प्रार्थना और रिश्तों का फलसफा, बड़ी खूबसूरती से बुना गया तानाबाना है। करण जौहर जैसे अपेक्षाकृत युवा की कल्पना ऐसे फिल्मांकन के लिए बड़ी सराहना का विषय है।

हिन्दी फिल्मों में दीपावली फिल्मों के नामों में प्रमुख रही है। यादगार अच्छे-बुरे प्रसंग, इस त्यौहार में घटने वाली घटनाओं को तानेबाने में बुनकर शामिल किए गये हैं। इसी तरह की विविध आयामी अनुभूतियों के गाने, विभिन्न फिल्मों में वक्त-वक्त पर शामिल किए गये हैं। विजय आनंद निर्देशित फिल्म गाइड में वहीदा रहमान पर, पिया तो से नैना लागे रे, गाना अनूठी खूबी के साथ फिल्माया गया है। शैलेन्द्र के लिखे इस गीत में एक अन्तरा दिवाली पर है, जग ने उतारे, धरती पे तारे, पर मन मेरा मुरझाए, तुम बिन आली, कैसी दीवाली, मिलने को जिया अकुलाए.. .. .., खूबसूरत कन्दील जगमगा रही हैं, अनार अपना रंग बिखेर रहे हैं और रूपक ताल में वहीदा रहमान का कथक आधारित नृत्य। अपने वक्त की ये अलग ही क्लैसिक यादें हैं जिनका आज भी कोई तोड़ नहीं है।

कैफी आजमी ने चेतन आनंद की फिल्म हकीकत में एक गीत लिखा था, आयी अबकी साल दिवाली, मुँह पर अपने खून मले, चारों तरफ है घोर अंधेरा, घर में दीप जले, मदन मोहन का संगीत था और लता की आवाज। भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी 1964 की इस फिल्म में मारे गये फौजियों और अशान्ति का परिप्रेक्ष्य था। राजकपूर की फिल्म श्री चार सौ बीस और रामगोपाल वर्मा की फिल्म सत्या में नायक अपनी प्रेमिका को दीवाली की रात मुम्बई दिखाने ले जाता है। चालीस के दशक में जयन्त देसाई ने दीवाली नाम से ही फिल्म बनायी थी। 1956 में दीवाली की रात और घर घर में दीवाली नाम से दो अलग-अलग फिल्में बनी। चिराग में आशा पारेख और चाची चार सौ बीस में कमल हासन की बेटी दीवाली के पटाखों से घायल होते हैं। घर-घर में दीवाली है, लाखों तारे आसमान में, एक मगर ढूँढे न मिला, देख के दुनिया की दीवाली, मन मेरा चुपचाप जला, से लेकर दीपावली मनाएँ सुहानी तक कितने ही गीत हमारे जेहन में होते हैं।

फिल्म जंजीर का क्लायमेक्स खास दीवाली के दिन को केन्द्रित कर रचा गया था वहीं धर्मेन्द्र की फिल्म फागुन में साडिय़ाँ दीवाली के रॉकेट से जलकर खाक हो जाती हैं। नायक एक साड़ी बचा पाता है मगर उसे अपनी खोयी हुई पत्नी उसी दिन मिल जाती है जिसे वो साड़ी ओढ़ाता है, दीवाली उसके लिए सुखद हो जाती है।

6 टिप्‍पणियां:

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं...

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

ZEAL ने कहा…

.

Beautifully written, nice article.
Happy Diwali.

.

सुनील मिश्र ने कहा…

आपको भी फिरदौस जी।

सुनील मिश्र ने कहा…

ललित जी, आपको भी शुभ हो दीपावली।

सुनील मिश्र ने कहा…

सराहना के लिए आभार जिएल जी।