मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

और शरमन जोशी ने कहा, हैलो.. .. .. ..


काना सिमोदा के लिए वह पल अविस्मरणीय बन गया था, जब शरमन जोशी की आवाज, उसके कानों से लगे मोबाइल में गूँजी, हैलो.. .. ..

अपने अन्त: में खुशी से लगभग हतप्रभ सी काना को कुछ बोलते न बना। हम लोगों के प्रोत्साहित करने पर उसने बात की, कहा, मैं आपकी बहुत बड़ी फैन हूँ। आज मैं भोपाल से दिल्ली जा रही हूँ और चार दिन बाद दिल्ली से जापान। मेरी बड़ी इच्छा थी, कि आपसे एक बार मिलूँ। कई फिल्में आपकी मैंने देखीं, मिलना नहीं हो पाया, लेकिन इस समय बात करके बहुत खुशी हो रही है। अगर कभी दोबारा हिन्दुस्तान आना हुआ तो जरूर मिलने की इच्छा होगी।

शरमन जोशी ने जापान से दो साल पहले दमोह के जिला चिकित्सालय में मेरी बहन के सान्निध्य में अपना दो वर्षीय प्रशिक्षण आरम्भ किया था। बहन के ही साथ उसे कुछ बार इस अवधि में भोपाल भी, प्रशिक्षण के सिलसिले में आना पड़ा। वह हमारे परिवार से खूब घुलमिल गयी। जिस तरह हमारी दोनों बहनें हमें दादा कहती हैं, काना भी कहा करती। काना ने हिन्दी बोलना भी खूब सीख लिया था। बड़ा मजा आता काना से बात करके।

मेरी बहन ने ही मुझे बताया कि काना ने शरमन की रंग दे बसन्ती, गोलमाल, थ्री ईडियट्स आदि फिल्में देखीं हैं और गजब मुरीद है, साथ ही यह भी कहा कि यदि कभी इसकी भेंट दो मिनट ही सही शरमन से हो सके तो देखना। बात हाँ-हूँ में होकर रह गयी। समय व्यतीत हो गया, और चार दिन पहले वो दिन भी आ गया जब बहन ने बताया कि वो जा रही है। उसका यहाँ का प्रशिक्षण पूरा हो गया है।

बहन कुछ दिन पहले भोपाल आ गयी थी, काना दमोह में अपना काम पूरा करके, भोपाल में बहन और हमारे परिवार से मिलते हुए भोपाल से दिल्ली का जहाज लेकर दिल्ली और फिर जापान जाने का कार्यक्रम बनाकर आयी। घर में काना के साथ हम सब थे, लेकिन मेरा मन बेचैन। मुझे लगा, काना की एक आकाँक्षा पूरी न कर पाया। जाने अब वो जापान से आये भी कि नहीं।

मैंने अपने बड़े भाईतुल्य प्रतिष्ठित अभिनेता गोविन्द नामदेव से फोन करके अनुरोध किया कि वे कुछ मदद करें। उन्हें सब बताया। गोविन्द जी ने शरमन को फोन किया, सब बताया, फिर मुझे फोन करके कहा, सुनील, शरमन का नम्बर ये है, तुम फोन लगा लो, काना से उसकी बात करा देना.. .. .. ..

इस तरह शरमन को फोन लगाया, काना के बारे में दोहराया और काना की बात करायी। रात भोपाल एयरपोर्ट पर काना को हम विदा कर रहे थे। भावुक काना, अपनी जापानी सहयोगी और दिल्ली से उसे लेने आयीं समन्वयक प्रीति को खुशी-खुशी बता रही थी, शरमन जोशी से मैंने बात किया है.. .. ..

उनके चेहरे आश्चर्यमिश्रित भाव प्रकट कर रहे थे और मुझे भीतर सुकून सा महसूस हो रहा था.. .. ..
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