बुधवार, 9 मई 2012

आमिर खान होने का अर्थ


आमिर खान की शख्सियत ही आकर्षित नहीं करती बल्कि समग्रता में वे अपने उन सारे आयामों में आकर्षित करते हैं जो उनसे विस्तार पाते हैं। आगे चलकर वे सत्यमेव जयते से बढक़र न जाने कौन सा काम करेंगे कि लोग फिर उनके किए पर चकित या हतप्रभ से रह जायेंगे, मगर अपने आपमें मौलिकता और पुरुषार्थ की अपार सम्भावनाएँ लेकर यह आदमी सचमुच कमाल करता है। विभोर होकर, अनुराग से भरकर हम कभी किसी का माथा चूम लेते हैं, कभी किसी का हाथ चूम लेते हैं, कभी किसी का गाल चूम लेते हैं लेकिन आमिर खान के प्रति जो भाव जागते हैं उसमें उनके लिए दिल से भरपूर दुआ निकलती है। मन कहता है कि नैतिकता और सु-समाज का स्वप्र देखने वाले इस इन्सान का रास्ता निष्कंटक किया जाये।

रास्ता निष्कंटक करने की बात इसलिए भी आती है क्योंकि हमारे यहाँ काँटे बोने और बिछाने दोनों में दक्षों की संख्या बहुत है। आमिर खान का धारावाहिक सत्यमेव जयते कितनी तरहों से निरर्थक साबित किया जा सकता है, इसका प्रयास इसके प्रसारित और हाथों-हाथ लिए जाते ही शुरू हो गया था। प्रवृत्तियाँ इस बात पर जरा भी ठहरने को तैयार नहीं कि एक सृजनात्मक व्यक्ति लम्बे समय से अपने एक महत्वपूर्ण काम, जाहिर है जिससे जनहित भी जुड़ा है, के प्रति कितना एकाग्र है। किस तरह आमिर खान ने अपनी महात्वाकांक्षी फिल्म तलाश का प्रदर्शन छ: माह आगे बढ़ा दिया और सत्यमेव जयते की परियोजना पर हाँ करने के बाद उसकी पारदर्शिता, सार्थकता और सकारात्मकता की फिक्र के साथ उससे जुड़ गये। जाहिर है, यह काम आसान होता तो अब तक कर लिया जाता। 

मिस्टर परफेक्शनिस्ट के रूप में अपने नाम का पर्याय माने जाने वाले आमिर खान फिल्मों से पैसा पीटने वाले सितारे भर नहीं हैं। लगभग चौबीस वर्ष पहले 1988 में आमिर खान की बतौर नायक पहली फिल्म कयामत से कयामत तक आयी थी। पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा, बेटा हमारा ऐसा काम करेगा, यह उस फिल्म का पहला ही गाना था। इस गाने को फिल्म में याद करता हूँ तो आमिर के पापा बने दलीप ताहिल का चेहरा याद आता है जो कॉलेज के समारोह में अपने बेटे को वह गाना गाते हुए दूर से देखते हैं और अपनी भीगी आँखें उंगलियों से पोंछते हैं। हिन्दी सिनेमा में सक्रियता का यह आमिर का पच्चीसवाँ साल है और सचमुच उन्होंने बड़ा नाम किया है। उनकी फिल्में जो चुनिन्दा ही रहीं क्योंकि वे हमेशा सबसे अलग रहे। फिल्म की स्क्रिप्ट से सन्तुष्ट होकर ही हाँ की और इसी का परिणाम है, थ्री ईडियट्स तक आमिर खान का अर्थात्। 

आमिर खान ने निरन्तर काम करते हुए इमेज और उम्र की निरर्थक फिक्र से अलग हटकर काम किया। वे हम हैं राही प्यार के में शरारती बच्चों के मामा भी बने, अकेले हम अकेले तुम में बड़े होते बच्चे के पिता का बड़ा गम्भीर किरदार निभाया, अन्दाज अपना अपना को सलमान खान के साथ एक अलग रंग दिया। सरफरोश में एक पुलिस ऑफीसर की भूमिका को अलग ढंग से प्रस्तुत किया। गुलाम का जाँबाज और दुस्साहसी नायक हो या रंगीला का टपोरी, राजा हिन्दुस्तानी का स्वाभिमानी युवा हो या लगान टीम लीडर। गजनी का प्रतिशोधी और थ्री ईडियट्स का रेंछो आमिर विविधताओं में विलक्षण है। सिनेमा में आमिर खान की सक्रियता ने उनके आत्मविश्वास को लगातार समृद्ध करने का काम किया। सफलताओं ने आमिर खान की दृष्टि और आशावाद को विस्तार दिया। आमिर का हर उपक्रम उनको सुर्खियों में लाता है। उनकी चुप्पी या अन्तराल और अवकाश में भी सुर्खियों के तत्व बड़े दिलचस्प तरीके से देखे जाते हैं। आमिर खान अपने भतीजे का कैरियर भी बनाने के लिए जुटते हैं वहीं पीपली लाइव जैसी फिल्म के पीछे खड़े होकर उसे रातोंरात चर्चित बना देते हैं। पीपली लाइव के नायक नत्था अर्थात ओंकारदास माणिकपुरी ने एक बार अपने टूटे-फूटे लहजे में बताया था, हमसे आमिर खान साहब बोले, भाई तुमने तो हमारा रोल ले लिया, नत्था की भूमिका पहले हम करने वाले थे, जब तुमको देखा तो हमें लगा कि हमसे बेहतर तो तुम कर सकते हो, इसलिए फिर हमने छोड़ दिया। हबीब तनवीर के ग्रुप में तीसरी पंक्ति में रोल करने वाला ओंकारदास अब आमिर की बात कहते हुए जिस तरह प्रफु ल्लित दिखायी देता है, वह कमाल ही है। 

सत्यमेव जयते की टेलीविजन पर शुरूआत 6 मई के रविवार से नहीं हुई है। दअरसल इसका पूर्वरंग तो बड़े पहले से चल रहा था। टुकड़ों-टुकड़ों में, नजदीक आते दिनों की प्रत्याशा में इसको लेकर बहुत सारी जिज्ञासाएँ खड़ी की जा रही थीं जो कि जाहिर है, एक अलग हटकर, महत्वपूर्ण  शुरूआत के लिए मायने भी रखती थीं। टेलीविजन के विभिन्न चैनलों में पत्रकार आमिर खान से बात कर रहे थे। महसूस किया कि अनेक लोगों के पास आमिर खान से करने के लिए गम्भीर और सार्थक सवाल नहीं होते थे। ज्यादातर लोग इस तरह के प्रश्र किया करते जिनमें घूम-फिरकर यही सवाल होता कि आपके शो की अमिताभ बच्चन, शाहरुख, सलमान के शो से तुलना की जायेगी, आपको क्या लगता है, और भी इसी तरह के बेमतलब के प्रश्र लेकिन आमिर खान इस तरह के बेमानी सवालों के जवाब भी शिष्टतापूर्वक दिया करते थे। अपनी बातचीत में वे लगभग अतिविनम्रता के साथ इस बात को रेखांकित किया करते थे कि मैं मानता हूँ तुलना होगी या की जायेगी मगर अपना यह कार्य मैंने ऐसी धारणाओं को सोचकर नहीं किया है। मेरा कार्य सामाजिक सरोकारों का एक अलग तरह का बिम्ब प्रस्तुत करने की कोशिश है, मैं ज्वलन्त और सार्थक प्रश्रों के साथ अधिक से अधिक लोगों के पास पहुँचने की कोशिश कर रहा हूँ। 

हमारे यहाँ मीडिया में अब तेजी से वैसी पीढ़ी की उपस्थिति और आमद रेखांकित हो रही है प्रतिभा और गरिमा की वाकई उस तरह की परख नहीं करती, जैसी करनी चाहिए। आमिर खान या अमिताभ बच्चन या दिलीप कुमार किसी के प्रश्रों का उत्तर देने के लिए उपलब्ध होते हैं, यह आसान बात नहीं है। हो सकता है, जो अच्छे सवाल कर सकता है, वह ऐसा खुशकिस्मत न होता हो, अतएव उस महत्व को समझा जाना चाहिए और उसकी कद्र की जानी चाहिए। जीनियस कलाकारों से बहुत अच्छे उत्तर मिल सकते हैं, मगर उसके लिए व्यक्तित्व और योगदान के आकलन की गम्भीर दृष्टि भी जरूरी है। हालाँकि अन्तत: वह लोकतांत्रिक स्थिति जिसमें फिर सीधे कलाकार अपने प्रशंसक के सामने होता है, ही आदर्श होती है। सत्यमेव जयते से हमारी दृष्टि और खुल रही है। यथार्थ हमको उन सचाइयों से भी अवगत कराता है, जिनको जानकर भी हम अनजान होते हैं। कचरे के पात्र से जूठन खाते गरीब बच्चों को हम भले रोज देखते हों मगर जब हम ऐसे दृश्य बन्ध किसी कहानी में पढ़ते हैं, धारावाहिक या सिनेमा में देखते हैं तब ही हमारी आँखों में आँसू आते हैं। आमिर खान को फिर एक सार्थक सृजनशीलता का आदर्श उदाहरण उपस्थित करने का श्रेय है। यही आमिर खान होने का अर्थ भी है।

कोई टिप्पणी नहीं: