रविवार, 17 जून 2012

स्त्री हिंसा और सत्यमेव जयते



सत्यमेव जयते के 17 जून के एपिसोड में स्त्री हिंसा पर आमिर खान ने अलग-अलग घटनाओं, त्रासदी झेलने वाली स्त्रियों और उनमें से कुछेक के आत्मविश्वास पर बात की है। हमारे देश में बहुत सारे लाइलाज मर्ज हैं जिनका समाधान आज तक नहीं हुआ। व्ही. शान्ताराम ने पिछली शताब्दी के चौथे दशक में दुनिया न माने फिल्म का निर्माण किया था जिसमें एक अनाथ लडक़ी निर्मला का ब्याह उसके रिश्तेदार पैसे की लालच में धोखे से एक बूढ़े से कर देते हैं। अनाथ निर्मला यह त्रासदी भोगती है कि पिता की उम्र के व्यक्ति के सामने उसे अर्धांगिनी के रूप में खड़ा होना पड़ता है। इस फिल्म में एक दृश्य है जिसमें उम्रदराज पति अपनी मूछें काली कर रहा है, निर्देशक इसे सीधे एक लोहार द्वारा पुराने बरतन चमकाने से जोड़ता है। प्रताडऩा ने अपने रूप बदले हैं, इस समय स्त्री अपनी घुटन में जीने और बाहर आने, दो तरह की परिस्थितियों से जूझ रही है। आँसू हर हाल में है, घुटते हुए भी और लड़ते हुए भी।


 17 जून के ही एपिसोड को देखते हुए प्रकाश झा की एक सशक्त फिल्म मृत्युदण्ड की याद आ गयी जिसमें स्त्रियाँ घर में अलग ही तरह की प्रताडऩा का शिकार हैं। परिवार में नपुंसक मठाधीश पति है जिसने समाज में पत्नी को बाँझ आरोपित कर रखा है। उसी परिवार की छोटी बहू पर जब उसका पति हाथ उठाता है तो वह हाथ रोककर कहती है, पति हो, परमेश्वर बनने की कोशिश मत करना। देव आनंद की कॉमर्शियल फिल्म हरे राम हरे कृष्ण का जिक्र भी करने की इच्छा हुई है जिसमें आपस में लड़ते-झगड़ते माता-पिता के साथ सहमे भाई-बहन एक कमरे में भय और अन्देशे को जिया करते हैं। 


 गोविन्द निहलानी की फिल्म अर्धसत्य याद आयी। इस फिल्म के नायक ओम पुरी थे जो अनंत वेलणकर का किरदार निबाहते हैं। सत्ता और व्यवस्था की विद्रूपताओं और अराजकता से लड़ता एक पुलिस इन्स्पेक्टर। इस फिल्म में बेशक द्वन्द्व राजनेता रामा शेट्टी से चलता है मगर अनंत के अवचेतन में अपने बर्बर पिता की खराब छबि है जो बात-बात पर उसकी माँ को पीटने लगता है। बचपन से ही वो इस घटना से घुटता है, एक बार पिता के साथ तू-तड़ाक में बात होती है तो वह झुंझला कर बोल देता है, तू हमेशा मेरी माँ को मारा करता था। इस किरदार की पूरी काया को हम विद्रोही देखते हैं, बोलते हुए, चुप रहते हुए। अन्त में उसकी लड़ाई का अन्त एक हिंसक परिणति से होता है जब वो रामा शेट्टी को मार देता है।

इस सदी और खासकर आज की स्थितियाँ और संघर्ष अब अपनी अस्मिता की रक्षा करने और समाज में अपनी स्पेस बनाने की चुनौती के ज्यादा हैं। मैं आज की सम्मानित कलाकार तीजन बाई को देखता हूँ तो उनकी शक्ति और आत्मविश्वास पर गर्व हो उठता है। वे पद्मभूषण हैं। छत्तीसगढ़ी लोकशैली में महाभारत की लोकगाथा पण्डवानी गाने वाली तीजन बाई ने भी यह प्रताडऩा सही थी कभी। आज वे बहुओं वाली हैं मगर जब वे शादी होकर अपने ससुराल गयीं तब पति के हिंसक व्यवहार ने उनका जीना मुहाल कर दिया था। कला और गायन में भी बाधक बना आदमी जब एक दिन उनको एक कार्यक्रम में ही मारने पहुँच गया तब तीजन बाई ने भी जवाब में उसे मारने के लिए तम्बूरा उठा लिया। तीजन बहादुरी और आत्मबल की अनोखी मिसाल हैं, हम सब उनका बहुत आदर करते हैं।


 सत्यमेव जयते में करुण सच्ची घटनाएँ, आजाद मुल्क और तमाम विरोधाभासी घटनाओं को रोकने और प्रतिरोध करने की वैधानिक संस्थाओं की सक्रियता और उपस्थिति के बावजूद हम जब सुनते हैं तो आहत होते हैं। कुछ उदाहरण हैं जहाँ बहादुरी है, जूझा गया है, लड़ा गया है और खड़ा भी हुआ गया है मगर यह सब आसान प्रक्रिया नहीं है। यह कठिन प्रक्रिया है। जूझती हुई स्त्री मानसिक रूप से अपने आपको खण्डित और पराजित इस तरह मान लेती है कि वो इस त्रासद अवसाद से बाहर ही नहीं आ पाती। सु-समाज का सपना हम देखते हैं, इतने विरोधाभासों के बावजूद उस पर विश्वास करते हैं, यह हमारा आशावादी दृष्टिकोण है मगर जिन्होंने दर्द सहे हैं, कसक जिनके मन से कभी जा न पायी है, उन्हें तैयार होने में, तैयार करने में बड़ी मेहनत करनी होती है। 

पीढिय़ों को मजबूत और सक्षम आत्मबल का संस्कार देने में हमें और ज्यादा समझ और मेहनत की जरूरत लगती है। अक्सर परिजन अपनी पढ़ती-लिखती बेटियों को स्कूटी खरीदकर देते हैं, इससे इतन जब मुझे अपने शहर में कोई लडक़ी या युवती मोटर साइकिल और कई बार बुलेट चलाती दीख जाती है तो मुझे उसके निडर और निर्भीक होने का एहसास होता है। हमें स्त्रियों को, बेटियों को निडर और निर्भीक बनाना चाहिए। खुद की कुण्ठाओं, अपने आसपास की विफलता, षडयन्त्र, धोखे या पराजय से उपजी निराशा का पत्नी, बच्चों के ऊपर शारीरिक अत्याचार की विकृति के रूप में प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। वैचारिक असहमतियों के भी सार्थक समाधान कर पाने की क्षमता होनी चाहिए। जिन्दगी के रिश्ते बिगाडक़र उसके दोषारोपण दूसरों पर करने के बजाय गर्त में गिरने के पहले ही सम्हल जाना चाहिए।


4 टिप्‍पणियां:

chetna bharadwaj ने कहा…

ab tak sab se achchha lekh unme se jo maine aap ke likhe hue padhe hain ..

सुनील मिश्र ने कहा…

chetna jee, badee hee khushee huee yah jankar ki aapko yah sarvadhik rucha. aage bhee sath banee rahiyega, jisse meree monitaring ho sake, hardik abhar.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

विचारणीय लेख

सुनील मिश्र ने कहा…

aadarneey sangeeta jee, sarahne ke liye aapka abharee hoon.