रविवार, 22 दिसंबर 2013

आँसू-मुस्कान, लड़ाई-झगड़ा और बिग बॉस

बिग बॉस में इस बार कलह कुछ ज्यादा अतिरेक के साथ दिखायी गयी। दर्शक बेचारा इस समझदारी और असमंजस में झूलता रहता है कि इस तरह की घटनाएँ जैसी कि इस प्रस्तुति में प्रायः होती ही रही हैं, या तो सुनियोजित होती होंगी और यदि न होती होंगी तो न जाने कितनों के लिए त्रासद होती होंगी और कितनों के लिए मुसीबत का सबब। अभी एक प्रतिभागी को पुलिस पकड़कर ले गयी और लॉकअप में बन्द कर दिया। बाद में उसकी जमानत हो गयी तो वो फिर अपनी कक्षा में जाकर शामिल हो गया। सब हँसी कहकहे में शामिल हो गये। फिर चलने लगा शो।

इस बार के बिग बॉस को लेकर सलमान खान स्वयं भी बहुत विचलित और नाराज रहे हैं। सप्ताहान्त में वे जब भी आये, माहौल को हल्का-फुल्का करना उनका पहला काम होता था जो वे करते थे लेकिन इसके साथ-साथ वे नसीहतें भी देकर जाते थे। नसीहतें देने के कई कारण हुआ करते थे, पहला तो यही कि मर्यादाएँ और अनुशासन भंग हुआ करता है। दूसरी बात यह कि इस बार कुछ ज्यादा ही शक्तिशाली, अपनी दुनिया तलाशने या पा सकने या खो देने के कारण एक अजीब किस्म के तनाव और झुंझलाहट के शिकार चेहरे एक बड़ी अवधि के लिए यहाँ स्थापित हो गये थे। आमतौर पर ग्लैमर और चकाचैंध भरी इस दुनिया की सबसे बड़ी समस्या ही एक साथ न हो पाना है। अहँकार विफलता के बावजूद नहीं जाता, तेवर पराजय के बाद भी नहीं बदलते। बड़ा अजीब सा विरोधाभास है कि परदे पर विभिन्न सकारात्मक और संवेदनशील किरदार को पेश करने में अपनी क्षमताओं का भरपूर इस्तेमाल करने वाले चेहरे वास्तव में किस यथार्थ के हैं या कैसा रंग प्रस्तुत कर रहे हैं?

बिग बॉस के घर में रह रहे लोगों का दो प्रमुख काम है, एक लड़ना और दूसरा रोना। बारी-बारी से हुआ करता है। दिलचस्प यह है कि जब पहले दिन अपनी-अपनी अटैची लेकर तीन माह के लिए दे दिए जाने वाले कल्पनालोक में ये सब पहुँचते हैं तभी एक-दूसरे के गले मिलते हैं, गर्मजोशी से चूमते हैं, आलिंगन करते हैं फिर उसके बाद बात-बात पर गिरेबान और गला पकड़ लिया करते हैं। सब के सब भद्र उम्र के होते हैं पर प्राकट्य में भद्रता से कोसों दूर। रोने का मसला भी बड़ा रोचक है, कई बार मामूली विषय और कई बार बिना विषय अचानक किसी के रूदन का स्वर उठता है, कैमरा उस तक जाता है फिर वह बताता है कि उसके रोने की (मामूली या निरर्थक सी) वजह क्या है? एक को रुलायी आती है और चार गलदश्रु रुमाल से साफ करते हैं।

मस्तिष्क को पका देने वाला तीन माह का यह खेल बड़ा अजीब है। इस पूरे के पूरे खेल को हमारा दर्शक सलमान की झलक, उपस्थिति और बातों के लिए बर्दाश्त करता है। क्या बिग बॉस के पूरे के पूरे विचार पर ही नये सिरे से सोचे जाने की आवश्यकता नहीं है?

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