शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

बेबी, डैनी साहब की गरिमामयी उपस्थिति की फिल्म है

प्रदर्शन के तीसरे सप्ताह में बेबी, गनीमत है, एकदम इक्के-दुक्के थिएटरों तक सिमटकर नहीं रह गयी जैसे कि अन्देशे आजकल होने लगे हैं। फिल्में प्रदर्शित होती हैं, जो कमायी करती हैं वे दो-तीन सप्ताह और जो विफल होती हैं वे अधिकतम दो सप्ताह में विस्मृत हो जाती हैं। सिनेमाघर अगली फिल्म की चिन्ता करने लगते हैं। बेबी का जारी रहना इस बात को जाहिर करता है कि दर्शक प्रेरित होकर अच्छी फिल्मों की तरफ जाता है और यह भी कि अच्छी फिल्मों से दर्शक अमूमन वंचित नहीं रहता। नीरज पाण्डे एक गम्भीर फिल्मकार हैं, यह उनकी पिछली फिल्मों ए वेडनेस्डे और स्पेशल छब्बीस से जाहिर हुआ ही था, बेबी तक आते-आते उन्हें सिनेमा को भव्यता के साथ बनाने का आर्थिक समर्थन मिलने लगा है, जो निश्चित ही बुरा नहीं है क्योंकि क्यों नहीं बेहतर और मेहनत के सिनेमा को आर्थिक सम्बल दिया जाना चाहिए पर निर्देशक पर यहाँ यह निर्भर करता है कि वह संसाधनों से लैस होकर मूल तत्वों को कैसे बरत रहा है?
नीरज ने बेबी के माध्यम से सामाजिक सरोकारों की एक फिल्म प्रस्तुत की है। आतंकवाद जैसे विषय को लेकर किस तरह एक संयमित फिल्म बनायी जा सकती है, बेबी इसका उदाहरण है। खासतौर पर विषय को समझते हुए हम यह अनुमान लगाते हैं कि फिल्म में हिंसा या मारधाड़ बहुत होगी, लेकिन उसके विपरीत यह फिल्म बौद्धिक कौशल के प्रमाण किरदारों के माध्यम से देती है। गुनहगार छुपा नहीं है, आरम्भ से जाहिर है, खेल चल रहा है, कैसे पकड़ा जायेगा, सारा दारोमदार बौद्धिक चातुर्य पर है। दर्शक बेबी देखते हुए सकारात्मक चरित्रों के माध्यम से यही देखना चाहता है। स्वाभाविक रूप से नीरज पाण्डे उसमें सफल रहे हैं।
यह उल्लेखनीय है कि परिश्रमी और क्षमतावान कलाकारों के साथ काम लेने वाले निर्देशक का भी नाम होता है, फिल्म प्रभावित करती है। अक्षय कुमार, राणा दग्गुबाती, तापसी पन्नू जैसे कलाकार डैनी जैसे शीर्ष और सधे कलाकार की टीम का देशभक्त हिस्सा नजर आते हैं। यह फिल्म अभिनेता डैनी डेंग्जोंग्पा को जितने सम्मान के साथ प्रस्तुत करती है, वह और भी महत्वपूर्ण है। वे इस फिल्म के नैरेटर (प्रस्तुतकर्ता) भी हैं।
बेबी (Baby Movie) दो और बातों से प्रभावित करती है, एक उसका चुस्त सम्पादन जो कि श्रीनारायण सिंहShree Narayan Singh ने किया है, दूसरा उसका पार्श्व संगीत जो कि संजोय चौधुरीSanjoy Chowdhury ने तैयार किया है, दोनों ही स्तरों पर कसावट दिखायी देती है, ध्वनियों के सजीव प्रभाव अनुभूत किए जा सकते हैं। अच्छे विषय का सिनेमा आपको सजग करता है, भीतर कहीं, किसी कोने में आपकी जवाबदेही की सुप्त चेतना को हरकत में लाता है, बेबी से यदि ऐसा होता है तो उसे सहजता से तीन सितारे बल्कि जरा ज्यादा, दिए जा सकते हैं।
***1/2

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