शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

गनीमत और खैरियत की जुलाई




मुम्बइया सिनेमा को अपनी सफलता और अस्मिता के लिए लम्बा संघर्ष करना पड़ रहा है। गर्मी के तीन-चार महीने दर्शकों की ओर से सिनेमा के प्रति बेरुखी भरे रहे। यह बेरुखी पूर्वाग्रह भरी नहीं बल्कि जायज थी। जायज इसलिए थी कि एक भी ढंग की फिल्म नहीं आ रही थी। सुभाष घई के मुक्ता आर्ट्स घराने की दो फिल्में, लव एक्सप्रेस और सायकल किक को दर्शक नहीं मिले। जिन सिनेमाघरों में ये फिल्में लगीं, वहाँ तुरन्त ही उतार ली गयीं। अपने प्रशिक्षित छात्रों की फिल्मों को प्रोत्साहित करने के लिए सुभाष घई ने यह तक सोचा कि एक टिकिट पर दोनों फिल्में दिखा दी जायें, उसमें भी उनको सफलता नहीं मिली।

गर्मी के ही महीनों में निरर्थक और फूहड़ फिल्में भी खूब रिलीज हुईं, बिन बुलाये बाराती तक यह सिलसिला चलता रहा। कुछ फिल्मों के प्रचार में अपार सफलता का स्लोगन लगाया गया, पर यह जाना मुमकिन न हुआ कि किस देश में यह अपार सफलता हासिल हुई। जुलाई माह पर ले-देकर सारी उम्मीदें आकर टिक गयीं। योग की बात यह कि जुलाई माह का आरम्भ ही शुक्रवार से हुआ। 1 जुलाई को एक साथ ब्बुड्डाह होगा तेर्रा बाआप (अंग्रेजी मे स्पेलिंग अनुसार यही उच्चारण बनता है) और देल्ही-बेली फिल्में रिलीज हुईं। एक पीछे अमिताभ बच्चन के बिनानी सीमेण्ट वाले मजबूत हाथ तो दूसरी के पीछे आमिर खान का अदम्य हौसला, भिडऩे का, पीछे न हटने का। वे अपने भांजे को बच्चन साहब से भिड़ाने में डरे नहीं। यहाँ तक कि देल्ही-बेली में उन्होंने अपने अंकल नासिर हुसैन की फिल्मों की शैली का, सत्तर के दशक का आयटम सांग भी कर लिया।

बहरहाल, दोनों फिल्मों का हाल सोमवार को स्पष्ट हो ही जायेगा, लेकिन जुलाई माह और प्रदर्शित फिल्मों के लिहाज से उम्मीदों भरा है। 8 जुलाई को सलमान खान निर्मित फिल्म चिल्लर पार्टी की सफलता की अच्छी आशा है, रणबीर कपूर का आयटम नम्बर इसमें नम्बर बढ़ाने का काम करेगा। मर्डर-टू, जिन्दगी न मिलेगी दोबारा, सिंघम, खाप कुछ और अच्छी फिल्में हैं, जिनसे जुलाई में रौनक रहने की उम्मीद है।

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