बुधवार, 7 मई 2014

वट - छाँव (एक लघु नाटक)

पहला दृश्य

एक पार्क का दृश्य है जिसमें दो बुजुर्ग बैठे हैं। एक हैं माधव और दूसरे देवीदीन। सामने से दो-तीन आदमी पैदल तेज चाल टहलते हुए इधर से उधर आ-जा रहे हैं। माधव और देवीदीन उनको देख रहे हैं।
टहलते हुए आदमियों में से एक चलते-चलते गिर जाता है, साथ के दो लोग उस पर ध्यान दिए बगैर आगे बढ़ जाते हैं, तभी माधव और देवीदीन उसकी तरफ दौड़कर आते हैं, उसके पास बैठकर पूछते हैं-
अरे बेटे, क्या हुआ? कैसे गिर गये
बाबूजी तेज चाल चल रहा था, पैर सम्हाल नहीं पाया, इसीलिए गिर गया.........(कराहता है और पाँव की तरफ अपनी चोट सहलाता है)
माधव और देवीदीन उसे सहारा देकर उठाते हैं और कहते हैं कि हमारे साथ चलो, दवा लगा देते हैं।

दूसरा दृश्य

वह व्यक्ति, नाम राजेश है, बैठा मरहम लगवा रहा है, एक बुजुर्ग माताजी जी उसके पैर में स्नेह से मरहम लगा रही हैं साथ में कुछ लोग खड़े हैं। माधव और देवीदीन भी देख रहे हैं। तभी माधव कहते हैं -
गायत्री चाची के हाथ में चमत्कार है। इनकी बनायी दवा से दर्द और चोट दोनों जल्दी ठीक हो जाते हैं।

राजेश आसपास का वातावरण देखता है, वह समझ जाता है कि माधव और देवीदीन उसे सहारा देकर पास के वृद्धाश्रम ले आये हैं, वहीं ये सब रहते हैं, उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। गायत्री चाची दवा लगा चुकती हैं तब राजेश उनके पैर छूता है। तब गायत्री चाची कहती हैं-
बेटा डिब्बी में थोड़ी दवा और दे देती हूँ। दो दिन रात में सोते हुए लगा लेना, सब ठीक हो जायेगा।
गायत्री चाची एक डिब्बी ले आती हैं, राजेश को दे देती हैं। राजेश सभी को नमस्ते करके वहाँ से जाने को होता है। जाते-जाते माधव के पास आता है, कहता है -
माधव काका, यहाँ आकर मेरी चोट अपने आप ठीक हो गयी है लेकिन एक बड़ी सी चोट मन में बन गयी है जो यहाँ हमेशा आते रहने पर ही ठीक होगी.........
माधव जान नहीं पाते, बात का मतलब क्या है। राजेश उन सभी से एक बार फिर नमस्ते करके निकल जाता है।

तीसरा दृश्य

वृद्धाश्रम का दृश्य है। अर्धचन्द्राकार घेर में पाँच-सात लोग बैठे हैं। महिलाएँ सुई-धागे से कोई कपड़े में तुरपायी का काम कर रही हैं, कोई आटे से चैकी-बेलन की सहायता से खुरमे-मठरी की डिजाइन बेलकर काट रही है। इनमें पुरुष बुजुर्ग किताबों पर कवर चढ़ाने का काम कर रहे हैं, एक बुजुर्ग के पास एक बच्चा यूनीफाॅर्म पहने बैठा है, वे उसे टाई बांधना सिखा रहे हैं, एक छोटा सा गीत होगा-

नहीं चाहिए नहीं चाहिए
हम सबको उपकार किसी का
हमें किसी से क्या लेना है
बना रहे संसार सभी का

हमें न बीता कल समझो तुम
चुका हुआ न फल समझो तुम
रीत हमारी सीख पुरानी
पा कर देखो प्यार सभी का

हमें छोड़कर छूट गये हो
देखो अन्दर टूट गये हो
खुद अपने से पूछ कर देखो
क्यों बिखरा परिवार सभी का

फिक्र भले हम करते सबकी
पर न करना फिक्र हमारी
फूल फूल माला हैं हम तो
बना रहे त्यौहार सभी का

चौथा दृश्य

वृद्धाश्रम में राजेश अपनी पत्नी के साथ आया है, दोनों भद्र हैं। अपने साथ कुछ सामान लाये हैं, खाने-पीने का। बाहर से दस्तक देने पर माधव बाहर आते हैं। राजेश उनको नमस्कार करता है, पत्नी का परिचय कराता है। वो उसको अपने साथ ले जाकर बैठाते हैं। पूछते हैं, अरे ये साथ में क्या लाये हो?
माधव काका, खाना लाये हैं, आज छुट्टी का दिन था। सुधा ने कहा कि खूब सारा खाना बनाने का मन है तो मैंने कहा जरूर बनाओ पर हम एक खूबसूरत स्थान पर चलकर खाना खायेंगे, राजेश ने कहा।
सुधा ने पूछा, कहाँ ले लाओगे तो मैंने बताया नहीं, मैंने यहाँ ले आना ठीक समझा। माधव काका, मेरे यहाँ आने से आपको असुविधा तो नहीं हुई?
माधव कहते हैं, नहीं-नहीं बिल्कुल असुविधा नहीं हुई। आज तो छुट्टी का दिन है। आज सब आराम से उठे हैं। मैं सभी को बुला लेता हूँ। सबके नाम ले कर आवाज लगाते हैं। आवाज लगाते ही सब आना शुरू हो जाते हैं और अर्धचन्द्रकार बैठ जाते हैं।
सुधा सभी को कुछ न कुछ खाने को देती है, माधव और देवीदीन को भी, राजेश और खुद भी। सब मिल कर खा रहे हैं।

पाँचवा दृश्य

सब खा कर चले गये हैं। माधव और देवीदीन बैठे हैं और राजेश और सुधा। राजेश और सुधा अब जाने की इजाजत लेते हैं, तभी माधव राजेश से पूछते हैं, क्यों राजेश एक बात बताओगे?
राजेश -    पूछिए माधव काका?
माधव -    उस दिन एक छोटी सी घटना हुई, तुम गिर गये, चोट लग गयी। हम दोनों बैठे थे, तुमको यहाँ ले आये। दवा लगायी, खैर लेकिन ऐसी क्या बात हुई जो तुम हमसे इस तरह जुड़ गये?
राजेश -    काका, उस दिन मेरे गिरने पर भी मेरे दोनों साथी मेरे लिए नहीं रुके और आगे बढ़ गये लेकिन आप दोनों तुरन्त ही उठे और पास आये, बिल्कुल पिता की तरह चिन्ता की। माधव काका मेरे माता-पिता नहीं हैं, मैं नहीं जानता वो कब खो गये। न जाने किनके आशीर्वाद से मैं किसी लायक बना लेकिन आप जैसे लोगों को देखता हूँ तो लगता है मेरे पिता भी ऐसे होंगे....................................
माधव -    राजेश बेटा, तुम्हारा सोच बड़ा है, हमारे लिए तो हर बच्चा हमारा बच्चा है, उस दिन तुमको चोट लगी तब भी यही बात थी।
राजेश -    काका, जिस समय गायत्री चाची मुझे दवा लगा रही थीं, उस दिन सचमुच इस धरती पर अपनी माँ के होने का भी एहसास हुआ (रोने लगता है) और पता है आपको उनकी दवा से तीन दिन में मेरी चोट ठीक हो गयी थी।
सुधा -        माधव काका, इन्होंने डिबिया की पूरी दवा जब तक खत्म नहीं हुई, लगाते रहे, कहते थे, गायत्री चाची की मेहनत से बनायी दवा है, बचनी या बेहार नहीं जानी चाहिए।
बात सुनकर माधव और देवीदीन की आँखें भी नम हो जाती हैं। दोनों पास आकर राजेश के कंधे पर हाथ रखकर उसको हिम्मत देते हैं।
सुधा माधव से कहती है कि अगर उसे आने की अनुमति है तो वह रोज वृद्धाश्रम आया करेगी, वो सब चीजें सीखेगी जो सबके बीच से जा रही हैं। पकवान बनाने का हुनर, परम्पराओं के सुन्दर गीत और भजन, घरेलू कामों को दक्षता से किया जाना और इसके साथ-साथ सबकी सेवा से अपने लिए खुशी हासिल करना।
माधव -    क्यों नहीं सुधा बेटी, यह वृद्धाश्रम नहीं वटवृक्ष का बगीचा है, अनुभवों और तजुर्बों का संसार, सबकी अपनी-अपनी देखी हुई दुनिया के अनुभव। तुम जरूर आना और हम सब तुम्हारे साथ मिलकर अपना समय बाँटेंगे, भूली-बिसरी कहानियाँ सुनायेंगे, जीवन की रीत बतायेंगे.....................
सारे बुजुर्ग स्टेज पर आ जायेंगे, सबके चेहरे पर खुशी है.......................
 
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(यह नाटक भाई-मित्र आनंद मिश्रा के द्वारा वृद्धाश्रम के पितृपुरुषों और माताओं के साथ किए जाने के आग्रह पर लिखा, एक संवेदनात्मक पक्ष, जो उनके द्वारा ही प्रस्तुत होगा। ज्यादा अकल नहीं लगायी है पर लिखते हुए संवेदना को यथासम्भव साथ रखा है।)





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