मंगलवार, 31 मार्च 2015

मछलीघर की मछलियाँ



हमारी परिवेश और स्मरणों में कुछ महत्व या कम महत्व की चीजें भी इस तरह मौजूद रहती हैं कि हमारा उनकी तरफ यदि बहुत ध्यान न भी गया हुआ तो उसका विशेष फर्क उन अर्थों में नहीं पड़ता कि वे अपनी गति से ही सही चलायमान हैं। यदि यह गति मंथर भी है तो कुछ मुश्किल नहीं है और यहाँ तक कि उनमें ठहराव भी आ गया है तो उससे कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ जा रहा। उनको खड़े हुए देखना भी बुरा नहीं लगता।

भोपाल का मछलीघर भी इसी तरह की एक पहचान था, शहर की पहचान और शायद चालीस से अधिक वर्षों से स्थापित एक ऐसा देखने जाने योग्य स्थान जहाँ जाने का लोभ संवरण भोपाल आने वाला कोई भी नहीं कर पाता था। मुझे अपनी याद है जब मछली घर के बारे में बहुत बचपन में जानने के बाद, उस समय की अपनी उम्र और क्षमताओं में बड़ी दूर होने पर भी वहाँ जाना अच्छा लगता था। शायद चार-आठ आने के टिकिट पर उस मछली घर में पली हुई रंग-बिरंगी, किस्म-किस्म की मछलियों को देखना बड़ा सुहाता था। छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी मछलियाँ। अनेक प्रजातियों वाली मछलियाँ। उन्हें इठलाकर तैरते देख अच्छा लगता था। वहाँ मौजूद निगरानीकर्ता के लाख कहने के बावजूद हम काँच को छूकर मछलियों को महसूस करते थे, हमारे स्पर्श से उनका इधर-उधर भागना बड़ा सुहाता था।

भोपाल के बाहर कानपुर अपनी ननिहाल या ग्वालियर बुआ के यहाँ जाने पर और वहाँ लोगों के पूछने पर कि भोपाल में क्या है, देखने लायक, हम प्रायः मछलीघर का ही नाम लिया करते। बिड़ला मन्दिर से लगे-लगे मछलीघर का नाम आ जाता। छुटपन से बड़े होने तक पैदल, बस से, सायकल से, लूना और स्कूटर से अपने परिजनों, रिश्तेदारों, भैया, भाभी सबको ही मछलीघर दिखाया। जिसे नहीं दिखा पाये एक बार उसे अगली बार दिखाया क्योंकि वे इस बात का बुरा भी मानकर जाते थे कि मछलीघर देखना तो रह ही गया।

रोशनपुरा की ढलान से नीचे राजभवन को जाते हुए मुड़ने पर मछली के ही मुँह जैसे अग्रभाग का सफेद पुता हुआ विशालकाय भवन मछलीघर की पहचान था। समय-समय पर उसको जिस तरह के परिवर्तन, परिष्कार और आधुनिकीकरण की जरूरत थी वैसा उसके साथ नहीं हुआ सो वह धीरे-धीरे अपनी पहचान खोता गया। हालाँकि उसके बावजूद वह जिस हालत में चलता रहा, कुछ न कुछ लोगों का आकर्षण उसके प्रति बना ही रहता था और लोग जाया करते थे।

मध्यप्रदेश सरकार ने अब उस मछलीघर को बन्द कर दिया है। इस आशय का निर्णय तो पहले ही हो चुका था। 31 मार्च को अन्तिम रूप से इस निर्णय पर मुहर लग गयी और मछलीघर में ताला लगा दिया गया। हम सब सूचित हुए हैं कि यह भूमि और भवन पर्यटन विभाग को हस्तांतरित कर दिया गया है। पर्यटन विभाग इसका कुछ बड़ा महात्वाकांक्षी उपयोग करेगा। यहाँ पली मछलियों के बारे में पता चला है कि उन्हें भदभदा स्थित मत्स्य विभाग के नवीन भवन के एक्वेरियम एवं पोखरों में रखा जायेगा। मछलियों का क्या है, वे क्या जाने किस विरासत को विस्मृत करके वे जा रही हैं। उनका नया पड़ाव कहाँ है। 

चार दशकों से भी ज्यादा समय में किस तरह मछलियों शान्त और सुहावनी गतियों से देखने वाले आनंदित हुआ करते थे। पलक रहित चमकदार आँखों के साथ उनको पानी में कभी बहना, कभी तैरना, कभी नृत्य करना, कभी इठलाना, खेलना और खिलखिलाना, वह सब जो बचपन से महसूस होता रहा था, अब वह आनंद जाता रहा है। एक याद है जो मिटते हुए भावुक कर रही है। भोपाल में क्या देखने योग्य है, यह बताते हुए अब ध्यान रखना पड़ेगा कि मछलीघर का नाम न आये..................

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