शनिवार, 6 नवंबर 2010

भूमिका में त्रासद आयाम रचती जि़न्दगी

रविवार एक यादगार फिल्म को उसकी विशिष्टताओं के साथ याद करने का हमारा दिन होता है। इस बार हम स्वर्गीय स्मिता पाटिल की अविस्मरणीय फिल्म भूमिका को चुन रहे हैं जिसका निर्देशन प्रतिष्ठित फिल्मकार श्याम बेनेगल ने किया था। आज हम जिस तरह से सत्तर के दशक की नकल पर बन रही फिल्मों का हौव्वा-तौबा देख रहे हैं, भूमिका उसी दशक की एक सार्थक फिल्म है जिसे 1977 में प्रदर्शित किया गया था। इस फिल्म की कहानी को लेकर यह बात छुपायी नहीं गयी थी कि यह मराठी फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री हंसा वाडकर के जीवन पर बनी है। भूमिका, हंसा वाडकर की आत्मकथा सांगते एका, पर आधारित थी।

सत्तर का दशक बेशक अपने आपको प्रबुद्ध साबित करने वालों के सिनेमा का समय था, जिसमें अमिताभ बच्चन जैसे एंग्रीयंग मैन का उदय हुआ मगर यही दशक सार्थक सिनेमा आन्दोलन के परवान चढऩे का भी था जिसमें श्याम बेनेगल, गोविन्द निहलानी, केतन मेहता और प्रकाश झा जैसे लोग फिल्में बनाकर अपनी एक अलग, समानान्तर मगर मोटी लकीर खींच रहे थे, जो अच्छे सिनेमा के जिज्ञासु और जानकार दोनों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनी थी। भूमिका की पटकथा लिखने में श्याम बेनेगल के साथ अभिनेता, निर्देशक और रंगकर्मी गिरीश कर्नाड और पण्डित सत्यदेव दुबे ने भी सहयोग किया था। इस फिल्म की नायिका ऊषा एक अभिनेत्री है, जिसका जीवन द्वन्द्व और झंझावातों से भरा है। एक अधेड़ आदमी उसका पति है जो उसकी माँ का कभी प्रेमी रहा था और उससे दस साल की उम्र में चार आने के बदले विवाह का वचन कुटिलतापूर्वक ले लेता है। यह भूमिका अमोल पालेकर ने बखूबी निभायी है।

अमोल, एक शोषक पुरुष के रूप में अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय करते हैं वहीं ऊषा की भूमिका निबाहने वाली स्मिता पाटिल, भावाभिव्यक्ति से शोषण, पीड़ा और इस सबके बावजूद भीतर-बाहर से इन तमाम विरोधाभासों से लडऩे वाली स्त्री के रूप में गहरा प्रभाव छोड़ती हैं। यह स्त्री, अपने आसपास के परपीडक़ और शोषक परिवेश के बीच अपने जीवट के साथ खड़ी रहती है और सफलता, सम्पन्नता और प्रतिष्ठा अर्जित करती है।

इस ऊषा में अपनी सन्तुष्टि और आराम का जीवन जिए जाने की भी हिम्मत और हौसला अब आ गया है। नायिका के जीवन में और भी पुरुष आते हैं मगर अपनी भूमिका में वह शोषित होने या किए जाने की दयनीयता से उबर चुकी है। फिल्म के उत्तरार्ध में स्मिता पाटिल, अपने किरदार में जिस तरह विद्रोही चरित्र को प्रस्तुत करती हैं, वह सचमुच उन्हीं के द्वारा निभाया जा सकना सम्भव था। नसीरुद्दीन शाह, अमरीश पुरी, अनंत नाग फिल्म के अहम कलाकार हैं।

इस फिल्म का कैमरा वर्क गोविन्द निहलानी का है। चौथे-पाँचवें दशक के परिवेश के अनुरूप गीत रचना मजरूह सुल्तानपुरी और वसन्त देव ने की थी। वनराज भाटिया ने भूमिका का उसी मिजाज़ का संगीत भी तैयार किया था। श्याम बेनेगल की फिल्मोग्राफी की यह एक सशक्त फिल्म है, जो अपने आपमें अविकल्प और अकेला उदाहरण है उत्कृष्ट सिनेमा का।

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