सोमवार, 29 नवंबर 2010

हास्य : स्तरीयता-निम्रस्तरीयता

टेलीविजन पर रोज ही कहीं न कहीं, किसी न किसी चैनल पर हास्य के शो चल रहे होते हैं। स्तर इतना घटिया हो गया है कि बहुत से संजीदा और तहजीब वाले लोगों के लिए यह बर्दाश्त के बाहर हो गया है मगर एक घर में कई मिजाज और आदत के लोग रहते हैं। जरूरी नहीं कि सभी के लिए यह बर्दाश्त के बाहर हो। बहुधा लोगों के लिए यह सदैव आनंद का विषय रहता है। बहुधा इसे मगन होकर देखते भी हैं जब उन्हें फिल्मों की एक फ्लॉप अभिनेत्री दहाड़ें मारकर निरर्थक तेज-तेज आवाज के साथ हँसते हुए दिखायी देती है। उसके आसपास बैठे बीते कल के बड़बोले सितारे अपेक्षाकृत अत्यधिक मुलायम आवाज में हँसते ताल-संगत करते नजर आते हैं।

एक पूरी की पूरी पीढ़ी है जिसमें सभी ऐसे लगभग पुराने कलाकारों के सिर पर अब उगाये हुए बालों का झुरमुट सामने लटका नजर आता है। यथार्थ से यह विफल लड़ाई भी करने से भला कौन बाज आता है, वरना बाल सफेद हो रहे हों तो होने दिया जाये, जा रहे हों तो जाने दिया जाये मगर उम्र के साथ शरीर से खर्च होती स्वाभाविक स्थितियों से भी सिनेमा के लोग तो खैर परदे पर अपनी छबि के कारण समझौता नहीं कर पाते और समाज के लोग अपनी हीरोशिप की वजह से स्वीकार नहीं पाते। चार लोगों के बीच भी हीरो दिखना होता है, भले ही हारा हुआ क्यों न हो। बहरहाल यही हाल पर्सनैलिटी के घटते प्रभाव का भी है। यह वह परम दशा है जब बढ़ती उम्र में भी घटियापन दिखाने और देखने में हा..हा..कार करने में मजा आता है। जनता के बीच मंच के हास्य कवि सम्मेलनों में भी घटियापन जमकर उघडऩर्तन करता है मगर क्या प्रभाव है कि सब हँसते हैं, अपनी हँसाई से भी और जगहँसाई से भी। टेलीविजन में ऐसे शो सरकस और इसी तर्ज के मुकाबले-महामुकाबले की शक्ल में खूब नजर आते हैं।

समाचार चैनलों के पास समाचार दोहराने-तिहराने और चोरहाने के बाद भी इतना समय बच जाता है कि वह इन चैनलों के ऐसे निम्रस्तरीय कार्यक्रमों की झलकियों में आधा-आधा घंटा निकाल दिया करता है। इन सबके मामले में सबके एक जैसे मापदण्ड हैं जिसका कुछ नहीं किया जा सकता। सभी चीजों का मूल्य निर्धारित है, मुफ्त में कोई कुछ नहीं करता है, बाजार की कीमत में सब घटित होता है, घटियापन से ही सही। अभी एक दिन एक ऐसे ही किसी कार्यक्रम में एक मसखरा देह के विभाजन प्रदेशों के आधार पर कर रहा था। जाहिर है, घटियापन चेहरे से टपक रहा था। उसके इस तमाशे पर ताल देने वाले और अच्छे नम्बर देने वाले भी शामिल थे।

देश की शासन व्यवस्था और चीजों को नियंत्रित करने वालों के लिए फिलहाज राखी का इंसाफ और बिग बॉस पर ही लगाम कसना मुश्किल हो रहा है, पता नहीं घटिया कॉमेडी शो के मामले में कब ये लोग चेतेंगे?

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