शुक्रवार, 6 मई 2011

चैनलों के लिए आचरण संहिता


मनोरंजन चैनलों की अराजक मानसिकता और अश£ीलता को लेकर हम लोग बहुत चर्चा करते हैं। सिनेमा का मसला तो ऐसा है कि यदि आप सिनेमाघर जाकर उसे देख रहे हैं तो पूरे समय आपको जो दिखाया जा रहा है, वह आपको भुगतना ही है, भले आप उससे सहमत हों या न हों, पसन्द आये या न आये। पैसा खर्च किया है तो उठकर आने का मन नहीं करेगा।

आधा सिनेमा देखकर लौटने की कुण्ठा भी अलग ही होती है मगर चैनल का रिमोट तो आप ही के हाथ में होता है। आप चाहे तो बदल सकते हंै, चाहे तो देखते रह सकते हैं। जो कुछ भी चैनल दिखाते हैं उसके सभी आयामों मेें आपकी सहमति या स्वीकृति है तो फिर वो आपके काम का है ही। यदि सपरिवार या दो-चार लोग मिलकर देख रहे हैं तो राय में भेद हो सकता है, चैनल बदलने की मांग उठ सकती है। बहुमत हुआ तो बदल दिया गया, नहीं हुआ तो यह हुआ कि चलने दो यार, मजा आ रहा है। जो असहमत होगा, वह अपने आपसे सवाल करता रह जायेगा कि अर्चना के अट्टहास में काहे का मजा, कॉमेडी सरकस के विदूषकों की घटिया कॉमेडी में काहे का मजा?

नयी फिल्मों के गाने चैनलों में आते रहना, फिल्मों की पब्लिसिटी का एक अच्छा जरिया है। अब फिल्म बिना किसी सार्थक पटकथा के बनती है, लिहाजा, उसके सशक्त संवादों या दृश्यों के माध्यम से पब्लिसिटी करने से बेहतर आयटम सांग या उसी तर्ज का गाना दिखाना ज्यादा आसान होता है। मुन्नी से लेकर शीला तक हमारे घरेलू दर्शक भी जैसे इन सबके आदी हो गये हैं। भारत सरकार ने मनोरंजन चैनलों के लिए आचरण संहिता बनायी है। जब बनायी जा रही थी तब हमने अपने स्तम्भ में इस विषय में लिखा था। अब जब बनकर तैयार हो गयी है, तब भी हमें इसकी चर्चा लाजमी लगती है।

आपत्तिजनक दृश्यों और संवादों को लेकर समय-समय पर आने वाली शिकायतों के तारतम्य में आई.बी.एफ. ने एक स्वनियामक दिशा-निर्देशक और शिकायत निपटारा पद्धति को मंजूरी दे दी है। ये व्यवस्थाएँ चैनलों को रचनात्मक सुझाव देंगी और उनकी अनुत्तरदायी स्वेच्छारिता पर अंकुश भी लगायेंगी। अब यदि दर्शक चैनलों के विरुद्ध इस तरह की शिकायत करेंगे तो उस पर आई.बी.एफ. कार्रवाई करेगा। निश्चित ही इससे कहीं न कहीं चैनलों को इस बात का बोध होना शुरू होगा कि कहीं न कहीं उनके काम की मॉनिटरिंग हो रही है, उन्हें अपने मनचाहे का स्पष्टीकरण देना पड़ सकता है।





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