मंगलवार, 10 मई 2011

सफलता-विफलताओं के अग्निपथ


कुछ ट्रेड मैगजीन ने हाल में लगातार असफल हो रही फिल्मों को लेकर खासी चिन्ता व्यक्त की है। पिछले दो-तीन माहों में जिस तरह की फिल्में आयीं, वे बहुत बड़े बजट, बहुत बड़े कलाकार, बहुत बड़े फिल्मकार या बहुत बड़े दावों वाली फिल्में नहीं थीं मगर जिस तरह उन फिल्मों में कुछ लीक से अलग हटकर चेहरे नजर आ रहे थे, उसको देखकर लगता था कि सम्भवतः बनाने और काम करने वालों को उनके तेवर और अव्यक्त मगर प्रतीत होते दावों के अनुरूप सफलता मिल ही जाये। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और सभी फिल्में एक-एक करके गिरती चली गयीं चाहे फिर वो शोर इन द सिटी हो या चलो दिल्ली।

एक तरफ एक भी बड़ी फिल्म का न आना और जिन छोटी फिल्मों के अच्छे कारोबार का भरोसा था, उनका ध्वस्त हो जाना, एक अलग तरीके निराष माहौल को सामने ले आया है। दिलचस्प यह है कि इन सबके बावजूद रोज ही मायानगरी मुम्बई में बी और सी ग्रेड फिल्मों के मुहूरत हो रहे हैं। इन दिनों एक बात और देखने में यह आ रही है कि भोजपुरी फिल्मों का बाजार भी अब ठण्डा पड़ गया है। भोजपुरी फिल्मों के सो-काल्ड महानायक रविकिषन और मनोज तिवारी दूसरी धाराएँ तलाष कर रहे हैं। मनोज तिवारी तो खैर किस्मत के धनी थे कि उनको एक साथ ऐसी सफलताएँ मिलीं कि रविकिषन का उठा बाजार भी प्रभावित हो गया। मनोज तिवारी के पहले रविकिषन भोजपुरी सिनेमा के स्वयंभू मसीहा जैसे बने रहा करते थे। वे अपनी बातचीत में भी गर्व से यह कहा करते थे कि उनकी सक्रियता और सहभागिता से ही भोजपुरी सिनेमा बुलन्द हुआ है और उसी वजह से लाखों लोगों के घर की रोजी-रोटी चल रही है।

इधर लगातार एकरसता और सफल फार्मूले को उबाऊपन की हद तक दोहराये-चोहराये जाने के कारण उत्तरपूर्व के दर्षक भोजपुरी सिनेमा से भी उकता गये। यही कारण है, कि अब भोजपुरी फिल्मों को दर्षक नहीं मिल रहे। इसका नुकसान दो हीरो को हुआ, हीरोइनों का वजूद यहाँ भी नहीं बन पाया था, सो उनकी कोई कहानी नहीं बन सकी। वाकई सफलता और विफलता का माध्यम जिस अग्निपथ से होकर गुजरता है, उसे फिल्म बनाने वाले या काम करने वाले जानकर भी नहीं जानते। सिनेमा का बाजार सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। फिल्में अपनी गारण्टियाँ खुद खो रही हैं। दर्षक ने टेलीविजन से लेकर अपने मोबाइल के स्क्रीन तक गानों और झलकियों को रिड्यूज़ कर लिया है। यह सूक्ष्मता सिनेमा के लिए कितनी हानिकारक है, यह अभी सिनेमा बनाने वाले शायद जान न पायें।

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