हालाँकि प्रचार के माध्यम से तूफान खड़ा करने की शुरूआत तभी से कर दी गयी थी जब इस फिल्म को एकता कपूर ने बनाने की घोषणा की थी। निर्देशक मिलन लूथरिया के साथ उनकी एक फिल्म वन्स अपॉन टाइम एट मुम्बई को अपेक्षाकृत सफलता मिली थी जो शायद एकता की फिल्म निर्माता के रूप में पहली सफलता थी। मिलन के साथ ही उन्होंने तत्काल ही एक फिल्म और घोषित कर दी जिसके बारे में शुरू में ही प्रचारित कर दिया गया कि यह फिल्म सिल्क स्मिता के फिल्मी कैरियर से प्रेरित है।
हिन्दी दर्शकों के लिए सिल्क स्मिता का नाम इसलिए भी उतना परिचित न था क्योंकि दक्षिण भारत के सिनेमा की यह सेक्स सिम्बल के नाम से अस्सी के दशक में ख्यात वो कलाकार थी जो परदे पर एक-दो गानों के फिल्मांकन तक ही सीमित थी लेकिन अब से तीस साल पहले सिल्क को अंग प्रदर्शन से जरा भी परहेज नहीं था, वह अपनी सीमाओं में ही अतिरेक का पर्याय थी और उस वक्त दक्षिण से वयस्कों का सर्टिफिकेट प्राप्त फिल्मों की एक बाढ़ सी आयी थी, लिहाजा तब के युवा दर्शक कुछ-कुछ सिल्क स्मिता को जानते थे। सिल्क स्मिता के साथ हिन्दी फिल्म जानी दोस्त में एकता कपूर के पिता जीतेन्द्र ने भी एक-दो गानों में ठुमके लगाये थे। हो सकता है, सिल्क को उसकी दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु के सत्रह साल बाद फिल्म बनाकर उसके बहाने अपनी फिल्म को सुर्खियाँ प्रदान करने और कम खर्च में अधिक लाभ कमाने का आइडिया भी एकता को उन्हीं के जरिए मिला हो। बहरहाल मृत्यु के बाद ही लोगों की स्मृतियों से लोप हो जाने वाली सिल्क स्मिता को जानने के लिए अब की पीढ़ी ने इन्टरनेट पर उन्हें खूब सर्च किया और कुछ समय के लिए ही सही ऐसा प्रासंगिक बना दिया, जिसकी कल्पना सिल्क को शायद जीते-जी न हो। हो सकता है कुछ दर्शकों को बालु महेन्द्रु की फिल्म सदमा याद हो जिसमें कमल हसन के साथ उनका एक गाना-डाँस भी बहुत चर्चित रहा था।
द डर्टी पिक्चर, एक सीमित क्षमताओं वाली महात्वाकांक्षी अभिनेत्री की त्रासदी की कहानी कहती है। दक्षिण के एक छोटे से गाँवनुमा कस्बे से एक ऐसी युवती के सपनों की यात्रा शुरू होती है जिसके साथ आरम्भ से ही ग्रहण साये की तरह चल रहा है। वह अपनी माँ का प्रतिकार कर घर से भाग जाती है और फिल्मों में काम करना चाहती है। तीस साल पहले का वातावरण है, सिनेमा की जहाँ शूटिंग हो रही है, वहाँ काम के लिए लड़कियाँ लाइन से खड़ी हैं, उन्हें आवाज़ पर रिजेक्ट और सेलेक्ट किया जा रहा है। यहीं पर रेशमा भी रिजेक्ट होती है। फिल्मों में काम की चाह रखने वाली यह भावी अभिनेत्री कहती है कि वह कुछ भी करने को तैयार है। चयन करने और रिजेक्ट करने वाला व्यक्ति उसे पाँच रुपए देकर कहता है, खाना खा लेना, यहाँ समय खराब मत करना। लेकिन रेशमा उस खाने के पैसे से दोसा खरीदते-खरीदते तब के सुपर स्टार सूर्या की फिल्म देखने टॉकीज में दौड़ पड़ती है। लगातार काम पाने का जुनून उसको अपने चहेते अभिनेता के साथ एक गाने में एक्स्ट्रा कलाकार की तरह एक दिन ला खड़ा करता है, जहाँ से उसके जीवन का सफर शुरू होता है।
फिल्म में शुरूआत में ही एक कुण्ठित निर्देशक भी परिचित करा दिया जाता है जिसकी निगाहों में ऐसी लड़कियों का कोई वजूद नहीं है। वह शूट किया हुआ एक दृश्य भी फिल्म से हटा देता है। ऐसे में जब फिल्म को दर्शक नहीं मिलते तब निर्माता उस हटाये हुए उत्तेजक गाने को जोडक़र फिल्म दोबारा प्रदर्शित करता है और फिल्म चल निकलती है। यही निर्माता रेशमा को ढूँढता है और खोज निकालता है। सबसे पहले भरपेट खाना खिलाता है फिर अपनी इच्छा की भूमिका देता है, जिसके लिए वह भी खुशी-खुशी तैयार है। वही रेशमा को सिल्क नाम देता है। सिल्क स्मिता के साथ भी यह कहानी जुड़ी है कि चार दिनों की भूखी सिल्क को उससे मिलने वाले पहले निर्माता ने भरपेट खाना खिलाया था, जिसके बाद ही वह उसकी जरूरत के अनुकूल फिल्म में काम करने को राजी हो गयी थी। द डर्टी पिक्चर की सिल्क भी इस घटना के बाद कामयाबी की सीढिय़ाँ चढऩे लगती है मगर उसकी भी कीमत चुकाते हुए। छोटी सी उम्र से ही मन ही मन सूर्या नाम के एक्टर से प्यार करने वाली रेशमा, अब सिल्क होने के बाद उसकी नजदीकी है। दोनों के रिश्तों को लेकर गॉसिप लिखने वाली एक महिला पत्रकार है जो हर वक्त सिगरेट पिया करती है। सूर्या का छोटा भाई है, वह भी सिल्क के प्रति आकर्षित है। दूसरी तरफ पहली फिल्म से ही सिल्क को नापसन्द करने वाला निर्देशक, हमेशा ही उसे निकृष्ट मानता चला आ रहा है उसके वर्चस्व को स्वीकार नहीं कर पा रहा है।
एक मुकम्मल फिल्म में अपनी सीमित जगह के बावजूद अपने सेक्स सिम्बल वजूद से लोगों की नींद हराम कर देने वाली सिल्क आखिरकार अपने सभी चहेतों की आँखों की किरकिरी बनने लगती है। सूर्या से लेकर उसका भाई और दूसरे निर्देशक उससे किनाराकशी कर लेते हैं। वह कुण्ठा और काम न होने की स्थितियों में शराब का सहारा लेती है। कुछ बुरे फिल्म बनाने वालों की संगत में उसे बेइज्जती और अपमान का शिकार भी होना पड़ता है। गहन अवसाद में बड़े नाटकीय ढंग से वह निर्देशक उसके करीब आता है जो उससे हमेशा नफरत करता है मगर सिल्क एक दिन सुबह अपने घर मृत पायी जाती है। पास में नींद की गोलियों की शीशी खुली पड़ी है। एक कहानी खत्म होती है, वो जो एक ग्रहण आरम्भ से सिल्क के साथ चल रहा होता है, यहाँ अधिक स्याह रूप ले लेता है। यह दृश्य बहुत भारी भी हो जाता है।
द डर्टी पिक्चर, सिल्क स्मिता से जोडक़र प्रचारित किए जाने के अपने निरर्थक तरीके के बावजूद मिलन लूथरिया की एक अच्छी और महत्वपूर्ण फिल्म है। हालाँकि इसे इस तरह अच्छा या महत्वपूर्ण कहना यह प्रश्र खड़े कर सकता है क्योंकि फिल्म में लगातार घटिया और आपसी अन्तरंग रिश्तों को इस तरह रस लेकर संवादों की रचना की गयी है कि सिनेमाहॉल में भी दर्शक उसका आनंद खूब समर्थन करते हुए उठाते हैं लेकिन फिल्म में एक सीमित क्षमताओं वाली युवती के दुस्साहस और सिनेमा की पुरुषप्रधान दुनिया में सारी हकीकतों को जानते-बूझते उसे अपनी शर्तों पर शरणागत करके रख देने वाले जीवट का प्रदर्शन बड़ा प्रबल है। यह बात बड़ी सार्थक और सच है कि यह विद्या बालन की फिल्म है क्योंकि सिल्क की भूमिका उन्होंने की है। सिल्क स्मिता, सुन्दर नहीं थीं, साँवली थीं, वे अभिव्यक्ति में केवल एक सुघढ़ देहयष्टि थीं लेकिन विद्या बालन उनसे बहुत आगे हैं। विद्या ने रेश्मा से सिल्क तक भूमिका बिना कोई छबि या पहचान, अपने दिमाग में रखे निभायी है। छरहरी विद्या ने इस भूमिका को चुनौती की तरह लिया है। शायद उन्हें अगले किरदार बड़ी मुश्किल से ऐसे कोई मिल पायें जिससे वे और दर्शक दोनों उनकी छबि से निजात पा सकें ।
फिल्म में शेष कलाकारों में ले-देकर बस तीन नाम हैं, नसीरुद्दीन शाह, इमरान हाशमी और तुषार। नसीर इस फिल्म में सुपर स्टार सूर्या की भूमिका में हैं मगर साठ पार के इस प्रतिभाशाली कलाकार का चयन इस फिल्म और इस किरदार के अनुकूल नहीं लगता। वे हर दृश्य में चेहरे से हाल ही में सो-कर उठे हुए से लगते हैं। इमरान हाशमी का किरदार फिल्म में लगातार ग्रे-शेड में है जो फिल्म की नायिका से सीधा जुड़ता है लेकिन अन्तिम दो रीलों में वे सहानुभूति वाली अपनी छबि में ही दरअसल कमाल करते हैं। वह दृश्य महत्वपूर्ण है जब सिल्क को बाहों में लिए वे उसकी नब्ज देखते हैं जिसमें जीवन का कोई संकेत नहीं है। यही किरदार, सिल्क का अन्तिम संस्कार उसकी माँ की उपस्थिति में करता है। द डर्टी पिक्चर, इमरान के किरदार के आत्मकथ्य से शुरू होकर उसी के पूर्ण विराम पर पूरी होती है। यह फिल्म एक बार इस नाते जरूर देख लेनी चाहिए क्योंकि यह एक कठिन सफर की चेतावनियों को भी अपने साथ लेकर चलती है। यद्यपि फिल्म को पूरा देखना और पास बैठे कुछ दर्शकों की राय में बर्दाश्त करना आसान भी नहीं है। चौथाई भरे हॉल में कुछ दर्शक फिल्म खत्म होने के पन्द्रह मिनट पहले से ही जाने भी लगे थे। हिम्मत करके ऐसी फिल्म को पूरा देख लेना चाहिए, भले ही यह बहुत विशिष्ट फिल्म न हो।
हाँ, तुषार अपनी बहन की इस फिल्म में सबसे मामूली भूमिका में हैं, पटकथा लेखक की। फिल्म के दो गाने चर्चित और हिट जैसे ही हैं, हमारे दर्शक सुन ही रहे हैं प्रोमो में। एक निर्देशक के रूप में मिलन लूथरिया को इस फिल्म के सशक्त पक्षों के लिए पूरा श्रेय है। तीस साल पहले के समय को वे बड़ी वास्तविकता के साथ सामने लाते हैं, माहौल, लोग, प्रवृत्तियाँ और कृपण सी भीड़भाड़ जिसमें जूझती है, जिन्दगी कोई, सिल्क सी...................
4 टिप्पणियां:
sach ke bahut kareeb hai aapki yah sameeksha.
par kya sach naheen hai shashiprabha jee? kareeb se aashay, sach na hone jaisa bhee hai..
sunilji mera aashay glamour world se tha. aapne apni rachna me is sachchai ko rekhankit kiya hai.
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