शनिवार, 28 अप्रैल 2012

मौसम और मस्तक


हमारी मानसिकता पर मौसम का प्रभाव बड़ा मायने रखता है। अक्सर हम मानसिकता को अपने शरीर और उसके आकार-प्रकार से भी आँकते हैं। लोग कहा करते हैं कि दुबले दिखाई देने वाले व्यक्ति को गुस्सा बड़ी जल्दी आता है। अच्छे सेहतमंद और कमोवेश मोटे लोगों को क्रोध नहीं आता या कम आता है या कम से कम उन्हें अपने क्रोध पर काबू रखना तो ज़रूर ही आता है। 

मैं अभिनेता और निर्देशक सतीश कौशिक को विलक्षण क्षमताओं वाला कलाकार मानता हूँ। मैं पहले उनका मुरीद हुआ फिर मित्र भी। ऐसा नहीं कि यह धारणा मित्र-भाव या मुरीद होने के कारण बनी हो, वास्तव में उनका स्वभाव ही उनके करीब लाने की वजह साबित हुआ। उनसे अक्सर बात हुआ करती है, एक बार जब वे “बधाई हो बधाई” नाम की फिल्म बना रहे थे, तब उसमें उन्होने अभिनेता अनिल कपूर को लेकर एक तरह का गल्प-लोक रचा था और कुछ समय के लिए उन्हें ख़ासा मोटा दिखाया था। इस प्रयोग पर बातचीत करते हुए उन्होंने कहा था कि मोटे लोग दिल के बड़े साफ़ होते हैं, उनमें सहनशीलता औरों की अपेक्षा ज़्यादा हुआ करती है। उन्होने यह भी जोड़ा कि ऐसा नहीं है कि मैं मोटा हूँ इसलिए यह बात कह रहा हूँ, मगर मेरा अपना तजुरबा है कि कठिन परिस्थितियाँ, ख़तरे, दुख, तनाव, परेशानियाँ, विफलताएं आने पर भी जाने कहाँ से संयत रहने का मंत्र मिलता है। 

सतीश कौशिक कहते हैं कि मेरा किसी से विवाद नहीं होता। किन्हीं कारणों से विवाद खड़े भी हुए तो अपने आप उनका रास्ता निकल गया। शायद दो साल पहले की बात होगी, उन्होंने एक फिल्म अंजना मुमताज के बेटे रुसलान और साधना सिंह की बेटी को लेकर बनाई। उसमें संगीतकार अनु मालिक को साइन किया। अनु ने तीन गाने सतीश कैशिक को बनाकर दिये, जिनसे वे संतुष्ट न हो सके, इस पर उन्होंने किसी नई संगीतकारों की जोड़ी से वे गाने करवा लिए। अनु मालिक नाराज़। वकील का नोटिस भेज दिया। सतीश कौशिक इस बात से बड़े दुखी हुए। कहने लगे, अनु मेरा इतना पुराना दोस्त है, घर आकर लड़ लेता, नोटिस देने की क्या ज़रूरत आन पड़ी? अब वकील कोर्ट, कचहरी से क्या हासिल होगा? कहने लगे, इतना अच्छा दोस्त है और ऐसा किया। हालांकि सतीश कौशिक ने अनु मालिक को पूरा मानदेय दिया, लेकिन इस व्यवहार से दुखी हुए। बाद में उन्होंने ही पहल करके अनु को मनाया और मुक़दमा वापिस हुआ। 

बहरहाल, हम मौसम की बात कर रहे थे। मौसम और मस्तक का भी एक-दूसरे के परस्पर आवेगों से बड़ा रिश्ता है। इन दिनों भरपूर गर्मी का मौसम चल रहा है। जिस तरह मौसम का पारा चढ़ता-उतरता रहता है वैसे ही आदमी के दिमाग का भी। सुबह से ही सूरज चढ़ने लगता है। मनुष्य का भी कई बार मौसम के साथ ही तापमान बढ़ जाया करता है। गर्मी बर्दाश्त करने की क्षमता हर एक में एक जैसी नहीं होती। बेचैनी में तुरंत पंखा चाहिए होता है, तुरंत कूलर की ज़रूरत पड़ती है, तुरंत एसी चालू करना होता है, अन्यथा मूड पर उसका तुरंत प्रभाव पड़ता है। बात बर्दाश्त के बाहर गई तो फिर किसी के भी लेने के देने पड़ सकते हैं। सरे राह सड़क पर आते-जाते गाड़ी-घोड़े में जल्दबाज़ी और अफरा-तफरी से छोटी-मोटी भिड़ंत, रगड़ खा जाने वाली घटनाएँ तुरंत एक-दूसरे का गिरेबान हासिल करने में मददगार साबित होती हैं। 

ऐसे मंज़र देखकर कई बार लगता है, हर तरह के उधर लौटाने से बचने वाला हर आदमी यहाँ जैसे तत्काल परस्पर चुकता करने में देर नहीं करना चाहता। मौसम का मस्तक पर यहाँ अजब ही प्रभाव देखने में आता है। जीवन में ऐसे बहुत सारे मसले होते हैं, जिनके समाधान का परिवेश मानसिक और वैचारिक शीतलता की अपेक्षा करता है। जीवन बेतकल्लुफ़ी में हम जिये चले जाते हैं, अगर जीवन को पढ़ते हुए, जीते चलें तो एक अच्छी दुनिया गढ़ने में हम सबके साथ हो सकते हैं, वह भी मिलकर............

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सकारात्मक सार्थक लेख. यूँ मौसम और वजन का सम्बन्ध कितना मायने रखता ये तो नहीं मालूम लेकिन सर्दियों में भी गुस्सा आ जाता है और मोटे लोगों को भी आता है. :-) अच्छे लेख के लिए बधाई.

सुनील मिश्र ने कहा…

dhanyvad jenny jee.