शुक्रवार, 4 मार्च 2011

सिनेमा तकनीक और व्यवहार का शब्द-ज्ञान

प्रसिद्ध कला निर्देशक जयन्त देशमुख से एक बार लम्बी बातचीत हो रही थी, उस वक्त उन्होंने अपनी एक बड़ी आकाँक्षा बतायी। उन्होंने कहा कि मेरी हार्दिक इच्छा है कि वक्त मिलने पर मैं एक ऐसे काम को जरूर करूँ या उस काम में मदद करूँ जिसके माध्यम से सिनेमा के विविध आयामों में नये आने वाले, आकर काम करने वालों को व्यवहार में प्रयोग होने वाले शब्दों की जानकारियाँ हों। हमारे बीच सिनेमा एक ऐसा आकर्षक माध्यम लगातार बना हुआ है जिससे हर वो आदमी जुडऩा चाहता है जो इसे गम्भीरता से अपनी जीविका बनाना चाहता है, साथ ही वे लोग भी जुडऩे के मोह से अपने आपको दूर नहीं रख पाते जिन्हें फौरी, सामयिक या एक भाषा में कहें तो शौकिया शगल के चलते यह माध्यम जुडऩे के लिए सुहाता है।

जयन्त देशमुख का यह विचार या प्रस्ताव वास्तव में मौलिक है और इस तरह के प्रयोग अब तक हुए नहीं हैं। भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय का एक संस्थान नई दिल्ली में है, विज्ञान एवं तकनीकी शब्दावली आयोग। इस आयोग में कुछ महती काम हुए हैं। दस वर्ष पहले आयोग ने देश भर के सिने-विशेषज्ञों, लेखकों एवं व्यवहारिक जानकारों के एक समूह को दो बार बुलाकर कार्यशाला का आयोजन किया था, इसका उद्देश्य यह था कि सिनेमा एवं नाटकों मेें प्रक्रियाधीन समय में प्रत्येक पक्ष में परस्पर बोले जाने वाले, आदेशित किए जाने वाले और व्यवहारसंगत शब्दों का एक परिभाषा कोष तैयार किया जाये। उस समिति में मनमोहन चड्ढा, श्रीवर्धन त्रिवेदी, किशोर वासवानी, यह टिप्पणीकार एवं और भी कई जानकार लोग शामिल थे। बाद मे उन्होंने सिनेमा और नाटक के परिभाषा कोषों पर दो पुस्तकें भी प्रकाशित की थीं, जो आयोग में विक्रय के लिए उपलब्ध भी हैं।

एक कला निर्देशक के रूप में जयन्त देशमुख की अपनी एक अलग दृष्टि है। वह मुम्बई में रहते हुए, मुम्बइया सिनेमा में एक आर्ट डायरेक्टर के रूप में काम करते हुए भी एक अलग तरह की रचनात्मकता का गहरा जानकार और अनुभवी है। उनका ऐसा विचार वास्तव में ऐसे अधकचरे लोगों के लिए बड़ा काम का है जो अज्ञान और अल्पज्ञान के चलते अपढ़ साबित होते हैं और उपहास या अपमान का पात्र बनते हैं। जयन्त देशमुख को वास्तव में इस काम को मुख्य रूप से जल्दी ही अपने हाथ में लेना चाहिए। चार रचनात्मक सहायक या लेखक उनकी इस काम में सहायता कर सकते हैं जो वास्तव में जयन्त की परिकल्पना के साथ गम्भीर और प्रतिबद्ध हों। आर्ट डायरेक्शन का क्षेत्र फिल्म में स्क्रिप्ट के अनुकूल परिकल्पना और सर्जना का अहम माध्यम है, इस क्षेत्र में कड़े परिश्रम और एकाग्रता के साथ उत्कृष्टता की चुनौतियाँ हैं मगर साथ ही, श्रेष्ठ परिणाम पर अपने सुख भी कम नहीं हैं।

आरक्षण की प्रेस वार्ता के समय एक सवाल पर प्रकाश झा ने श्रेय से दूर खड़े जयन्त को आवाज देकर बुलाया और अमिताभ बच्चन और दूसरे प्रमुख सितारों सहित अपने पास बैठाया और उनको इस बात का श्रेय दिया कि राजनीति से लेकर आरक्षण तक उनका काम जयन्त ही कर रहे हैं। बहरहाल, एक प्रतिष्ठित कला-निर्देशक को यह सारस्वत काम अंजाम तक पहुँचाना चाहिए।

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