रविवार, 13 मार्च 2011

देव आनंद की यादगार फिल्म "काला बाज़ार"

इस रविवार हम पचास साल पहले की फिल्म काला बाजार की चर्चा कर रहे हैं जो नवकेतन प्रोडक्शन्स की एक महत्वपूर्ण फिल्म थी। हमारे दर्शक-पाठक देव आनंद को एक महानायक के रूप में बेहतर जानते हैं। उनके छोटे भाई विजय आनंद को शायद कम जानते हों मगर शौकिया अभिनेता और गम्भीर निर्देशक के रूप में उनकी अनेक फिल्में उनकी दृष्टि को प्रमाणित करती हैं। काला बाजार की कहानी, पटकथा और निर्देशन का भार विजय आनंद ने ही सम्हाला था। दोनों के सबसे बड़े भाई चेतन आनंद थे जिन्होंने हकीकत और हीर-राँझा जैसी फिल्मों का निर्देशन किया था। काला बाजार में तीनों ही हैं, खासकर बड़े भाई चेतन आनंद जिन्होंने नायक का मुकदमा लडऩे वाले एक वकील का किरदार निभाया है।

काला बाजार, सिनेमा के सम्मोहन और उसके कारोबार से जुड़े टिकिटों की काला बाजारी में लगे लोगों के जीवन को दर्शाती फिल्म है। इसी माहौल में हम फिल्म के नायक को देखते हैं जो एक पुराने बदमाश को पीट-पाटकर, धमकाकर अपना वर्चस्व कायम करता है। इस फिल्म का एक खूबसूरत मगर दार्शनिक मोड़ यह है कि एकतरफा प्रेम में डूबा नायक, किसी दूसरे से प्यार करने वाली नायिका का पीछा करते हुए ऊटी चला जाता है और लगातार उसे प्रभावित करने, मोहने की कोशिश करता है। उसका प्रेमी विलायत गया है, जिसे बाद में किसी विदेशी लडक़ी से प्यार हो जाता है। प्रेमी की भूमिका विजय आनंद ने निभायी है।

वह लौटकर फिल्म की नायिका को यह बात बताता है, नायिका के मन की देहरी पर नायक खड़ा है, जिसे बस उसकी ओर से अनुमति देने की ही देर है, और फिर गाना है, सच हुए सपने तेरे, झूम ले ओ मन मेरे। वहीदा रहमान इस भूमिका में बड़े गहरे उतरकर अपने किरदार को जीती हैं। काला बाजार का नायक बुराई के रास्ते को छोडऩा चाहता है। वह अपने साथियों के साथ, सफेद बाजार स्थापित करता है और सबको दुकानें दिलवा देता है, एक मसीहा रूप। लेकिन बुराई आसानी से पीछा नहीं छोड़ती, नायक को जेल हो जाती है। उसका मुकदमा वही वकील लड़ता है जिसका कभी उसने नोटों से भरा बैग चुराया था, मगर बाद में आत्मग्लानि में उसे वापस जाकर सौंप दिया था।

शैलेन्द्र, एस.डी. बर्मन, मोहम्मद रफी, आशा भोसले, गीता दत्त, सुधा मल्होत्रा के गाने अनूठेपन के कारण याद हैं, खोया-खोया चांद, रिमझिम के तराने ले के आयी बरसात आदि। न मैं धन चाहूँ, गाना उस वक्त मर्म को छू जाता है जब नायक की माँ, बहन और छोटा भाई भगवान के सामने बैठकर यह गाना गा रहे हैं और नायक घर में कालाबाजारी के धन से सामान लेकर घर में आता है। इस गाने के बीच देव आनंद के चेहरे के भाव असहजता और ग्लानि को प्रभावी ढंग से व्यक्त करते हैं।

एक और गाना, एक रुपए का सिक्का हाथ में लिए नायक गाता है, सूरज के जैसी गोलाई, चन्दा सी ठण्डक है पाई, चमके तो जैसे दुहाई, यह गाना एक कॉमेडियन के साथ दिलचस्प ढंग से फिल्माया गया है। फिल्म कई तरहों से यादगार है, खास एक दृश्य का जिक्र जरूरी है, जिसमें प्रीमियर शो पर नरगिस, अनवर हुसैन, मेहबूब खान, सोहराब मोदी, राजकुमार, मेहताब जैसे यादगार सितारे कार से उतरकर सिनेमाघर में जाते हुए दिखायी देते हैं और हजारों की भीड उनका इस्तकबाल करती है।

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