शनिवार, 26 मार्च 2011

लम्बी कवायद, तैयारी और रॉ-वन


शाहरुख खान की बहुचर्चित फिल्म रॉ-वन की शूटिंग कुछ समय पहले पूरी हो गयी है और उसका पोस्ट-प्रोडक्शन का काम तेजी से जारी है। इस बीच उन्होंने किसी नयी फिल्म का काम भी हाथ में नहीं लिया और अपने आपको पूरी तरह रॉ-वन के सुपुर्द कर दिया। इस बीच उनके स्पर्धी अपनी स्थितियाँ खूब मजबूत कर चुके हैं। शाहरुख स्पर्धा से बाहर जरूर रहे मगर स्पर्धी कलाकारों से उनका मनमुटाव खूब प्रचार माध्यमों की खबर बनता रहा। बयानबाजियाँ जारी रहीं और विश£ेषण तथा आकलन भी।

रॉ-वन को शाहरुख हिन्दी सिनेमा की अब तक की सबसे अद्वितीय फिल्म बनाकर पेश करना चाहते हैं। अनुमान बताया जाता है कि इस फिल्म के निर्माण में लगभग दो सौ करोड़ खर्च हुए हैं। एक फिल्म बनाने में जितनी बड़ी राशि खर्च होती है, उतने ही बड़े मुनाफे की उससे अपेक्षा भी की जाती है। इस हिसाब से रॉ-वन को लागत से कम से कम पाँच गुनी आय तो अर्जित करना ही चाहिए, साथ ही लगभग दो साल परदे से बाहर रहने वाले शाहरुख की मान-प्रतिष्ठा पर भी मजबूत मुहर लगानी चाहिए।

हालाँकि यह सद्इच्छा है मगर आज तक यह माना गया है कि दर्शक की नब्ज पर सही-सही हाथ रखने का हुनर हमारे फिल्मकारों के एक बड़े प्रतिशत को नहीं आया है। तमाम आधुनिकताओं और दुनिया के शनै-शनै बदलते जाने के शगूफे के पहले सक्रिय निर्देशकों में कम से कम अस्सी प्रतिशत निर्देशकों को दर्शकों की नब्ज का पता होता था, चाहे वो मेहबूब खान हो, शान्ताराम हों, बिमल राय हों, राजकपूर हों, बासु चटर्जी हों, ऋषिकेश मुखर्जी हों या इनकी ही तरह दूसरे निर्देशक। आज फिल्म बनाकर प्रदर्शित करने वाला निर्माता-निर्देशक जितना शुक्रवार के भरोसे है उतना ही शुक्रवार से डरता भी है क्योंकि इस दिन फिल्म रिलीज होती है।

यही कारण है कि प्रदर्शन के पहले समानान्तर सौदे होना शुरू हो जाते हैं। रॉ-वन के साथ भी ऐसा ही हुआ है। सोनी चैनल ने अभी से चालीस करोड़ में उसके अधिकार खरीद लिए हैं जबकि अभी फिल्म प्रदर्शन में पूरा साल बाकी है। शाहरुख सचमुच इस फिल्म के जरिए दाँव पर हैं, तनाव में भी जो उनके चेहरे से दिखायी देता है किन्तु वे उतने ही प्रभावी कलाकार भी हैं। रॉ-वन, ऊँचाई भेदने वाला रॉकेट साबित होती है कि नहीं, देखना होगा।

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