सोमवार, 18 अप्रैल 2011

दम लगाओ दम अभिषेक

हाल ही में एक समाचार चैनल इस बात के लिए खास चिन्तित दिखा कि अभिषेक बच्चन के लिए उनकी शीघ्र प्रदर्शित होने वाली फिल्म दम मारो दम, एक तरह से आखिरी मौका है अपने आपको साबित करने के लिए। इस बात की बाकायदा फिक्र करके उसने एक लम्बी-चौड़ी स्टोरी बनायी और देर तक दिखायी। स्टोरी में अभिषेक की पिछली विफल फिल्मों की बातें कही गयी थीं। उनके पूरे कैरियर का आकलन किया जा रहा था। खास मणि रत्नम की रावण से बात शुरू होकर गेम से होती हुई बार-बार दम मारो दम पर आकर ठहर जाती थी।

वास्तव में यह एक बड़ी विडम्बना है कि महानायक के पुत्र को अपने आपको साबित करने के लिए लगातार मेहनत करनी पड़ रही है और बावजूद इसके वो सफलता नहीं मिल पा रही है, जिसकी उनको जरूरत है। जे.पी. दत्ता की रिफ्यूजी से कैरियर की शुरूआत करने वाले अभिषेक, देखा जाये तो एक फिल्म भी अपनी क्षमताओं के बल पर सफल नहीं दे पाये। यह बात गौरतलब है कि अभिषेक को लेकर सभी बड़े और प्रतिभाशाली निर्देशकों ने फिल्में बनायीं। और इन सभी की वे फिल्में फ्लॉप होती चली गयीं। इस सितारे के लिए हर बैनर, हर चर्चित निर्देशक तत्पर दीखा, चाहे वो यशराज फिल्म्स हो या धर्मा प्रोडक्शन्स। मणि रत्नम हों या आशुतोष गोवारीकर, रामगोपाल वर्मा हों या जे.पी. दत्ता।

रमेश सिप्पी के बेटे रोहन सिप्पी, रमेश बहल के बेटे गोल्डी बहल, करण जौहर और भी कई नाम इसी सन्दर्भ में जेहन में आते हैं। लगातार विफलताओं ने अभिषेक बच्चन के स्वभाव में भी एक तरह की खिन्नता का स्थायी भाव ला दिया है। रावण के प्रदर्शन के पहले वे विभिन्न शहरों के पत्रकारों, दर्शकों से एक चैनल के जरिए सीधे बात कर रहे थे, जिसमें वे संयत जवाब दे पाने में असमर्थ लग रहे थे और झुंझलाहट ज्यादा थी। अभी एक चैनल में तीन महिला पत्रकार उनसे प्रश्र कर रही थीं, उस वक्त भी वे इस बात को लेकर खीज रहे थे कि दोस्ताना से लेकर पा तक कितने ही अच्छे काम किए पर उसके श्रेय या तो जॉन को गये या बच्चन साहब को, मैंने तो कुछ किया ही नहीं।

यह खिन्नता उनको सामान्य बर्ताव से दूर ले जा रही है। हिन्दी सिनेमा में इस समय नायकों का जो परिदृश्य है, उसमे स्पर्धा वरीय लोगों सलमान, शाहरुख और आमिर में जबरदस्त है। अक्षय कुमार का कोई स्पर्धी नहीं है मगर वह अपने आपमें नुकसानरहित है, निर्माताओं के लिए। हिृतिक, नील, रणवीर का अपना बड़ा मार्केट है। ऐसे में अभिषेक अपनी क्षमताओं को समृद्ध किए बगैर चल नहीं सकते और असहजता बरतने से तो और दूर हो जायेंगे वे सफलता और लक्ष्यों के। क्या कोई सच्चा शुभचिन्तक उनको समझा पायेगा?

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