बुधवार, 8 सितंबर 2010

मुकाबले के मुगालते गढऩे वाली समझ

चौबीस घण्टे सिनेमा की खबरों के माध्यम से मनोरंजन का बीड़ा उठाने वाले एक चैनल की कुछ खबरें देखने का वक्त मिल पाया तो जाना कि अलग-अलग तरह के कार्यक्रमों से जुड़े, अलग-अलग तरह के शो को होस्ट करके भी मुकाबला किया जाता है। आप अपनी-अपनी दक्षता अपने काम में नहीं दिखाते वरन मुकाबला करते हैं। आश्चर्य हुआ, इस बात को जानकर कि अब ऐसा मुकाबला अमिताभ बच्चन और सलमान खान के बीच होने जा रहा है। मुकाबला या टक्कर, कैसे हुई यह समझ में नहीं आया।

अपनी जानकारी, और दोनों को ही जानने वालों की जानकारी भी यही है कि दोनों ही पहलवान नही हैं। दोनों की परस्पर शत्रुता भी नहीं है। दोनों ने साथ, एक-दो बार जब भी काम किया है, अच्छा काम किया है। रवि चोपड़ा की बागवान इस बात का प्रमाण भी है। दोनों में श्रेष्ठता और वरीयता का भी फर्क है। आज के समय को दोनों ही अपने-अपने प्रभाव और छबि के हिसाब से एन्जॉय भी कर रहे हैं। उम्र के मुताबिक किरदार की सीमाओं में अपने को क्षमताभर सिद्ध करने वाले बच्चन को किसी से मुकाबला करने की जरूरत नहीं है।

सलमान खान भी ऐसी खराब स्थिति में नहीं हैं कि असुरक्षित हों और मुकाबला करने या टक्कर देने को आतुर हों। ओपनिंग में आज भी सलमान खान सबसे ज्यादा भीड़, हंगामा और कोलाहल खड़ा करने वाले कलाकार हैं। दर्शक उनकी फिल्मों का इन्तजार करते हैं। जिस तरह का आत्मविश्वास उनके अभिनय में नजर आता है, वे किरदार को जीते हुए भी उससे ज्यादा प्रभावी नजर आते हैं। दबंग, फिल्म इस बात का उदाहरण है, जिसके प्रोमो ही दिलचस्प और आकर्षक बन गये हैं। इसी के साथ-साथ जिस तरह की संवेदनशीलता सलमान में उम्र और परिपक्वता के साथ आयी है, वह भीतर से बड़ी सच्ची और नैतिक है। इन सब बातों के बीच कैसे यह टक्कर या मुकाबला हो गया, समझ से परे है।

एक शो को अमिताभ बच्चन होस्ट कर रहे हैं और एक शो को सलमान खान। सुरुचि और आकर्षण के लिए दोनों ही शो को बनाने वालों, उसकी स्क्रिप्ट लिखने वालों ने मुकम्मल योजना भी बनायी होगी। पता नहीं क्यों विशेषज्ञों, जानकारों और पूर्वाभासियों ने इसे मुकाबले का जामा पहनाना चाहा है। मुकाबले के मुगालते गढऩे वाली ऐसी समझ पर ताज्जुब है। पता नहीं, हमारे माध्यम कब संजीदा और गम्भीर होना शुरू करेंगे? चैनल घरों में घुसे हुए हैं मगर कई बार उनकी प्रस्तुतियाँ और बरताव बेहद अव्यवहारिक हो जाते हैं।