गुरुवार, 9 सितंबर 2010

अश्लीलता और आधुनिकता की मिलीभगत

अश्लीलता अब कोई मुद्दा नहीं रह गया है हमारे जीवन में, ऐसा विश्वास वक्त-वक्त पर फिल्मों, धारावाहिकों और फैशन शो को देखते हुए पुख्ता होता रहा है। चार प्रतिवाद करने वालों, मुट्ठीभर प्रदर्शन करने वालों, समय-समय पर लेख लिखने और सम्पादकीय लिखने वालों के बीच यह विषय खदबदाकर शान्त होता रहा है। इसका उस व्यवहार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा जिसकी ओर इशारा किया जाता रहा है बल्कि हाथी चले अपनी चाल और मस्त रहो मस्ती में टाइप के जुमले और कहावतें अश्लीलता की अराजकता पर बड़ी मुफीद नजर आयी हैं।

टेलीविजन के एक चैनल पर पहले खतरों के खिलाड़ी नाम पर एक धारावाहिक आता था जिसमें अक्षय कुमार के नेतृत्व में तमाम खतरों के खिलाड़ी अपनी किस्मत और हौसलों का इम्तिहान देते नजर आते हैं। हालाँकि इस धारावाहिक को ज्यादा लोकप्रियता नहीं मिली और अक्षय कुमार की भी बाद में इसमें रुचि कम हो गयी तो यह धारावाहिक एक समय बाद बन्द हो गया लेकिन अब फिर शुरू हो गया है क्योंकि अब प्रोग्राम बनाने वालों को प्रियंका चोपड़ा मिल गयी हैं जो इस धारावाहिक का बीड़ा उठाने को तैयार थीं, सो अब यह एयर पर है।

इसकी एक कड़ी को कुछ देर देखने की खुशकिस्मती हासिल हुई तो एक विशेष किस्म के विरोधाभास पर ध्यान गया। हालाँकि उसको रेखांकित करते हुए बराबर इस बात की झेंप है कि पाठक के मन में आ सकता है कि टिप्पणीकार का ध्यान वहीं क्यों गया, मगर आलोचना की दृष्टि से वह जायज भी था, लिहाजा बताना उचित लगता है।

ध्यान इस बात पर गया कि इस शो में कुछ लड़कियों के साथ उनसे अधिक संख्या में लडक़े नजर आये। विशेष बात यह थी कि प्रियंका चोपड़ा अधिकतम सवा बालिश्त का शॉर्ट्स पहने थीं और उनका ही अनुसरण कुछ और लड़कियों ने किया था, वहीं लडक़े, सभी के सभी इस तरह का बरमूडा पहने थे जिसकी लम्बाई कम से कम घुटने तक तो थी ही। अचरज इस बात पर हुआ कि जोखिम से लडऩे का प्रदर्शन करने के लिए इतना ज्यादा कम्फर्टेबल होने की वाकई इतनी जरूरत है भी कि नहीं? क्यों लडक़े ज्यादा तमीज में दिखे और क्यों प्रियंका दूसरी लड़कियों के साथ इतनी बोल्ड उपस्थिति में।

ऐसा लगता है कि कोई चेक पोस्ट नहीं है, कोई निगरानी करने वाला नहीं है, कोई आँख दिखाने वाला नहीं है। सेंसर निर्वजूद है। सबके घरों में ऐसे खिलाड़ी और खिलाडिऩों के माध्यम से जो खतरा घुसता चला जा रहा है, पता नहीं उसके क्या परिणाम होंगे?

10 टिप्‍पणियां:

S.M.Masoom ने कहा…

परिणाम के बारे मैं जो कहा जाए कम है. अगर एक महिला, लड़की, शोर्ट्स मैं सड़क पे दिखती है, तो मर्द की नजर उसपे जाती ही है. आज कल घेरों मैं लोगों की बेटियां, शोर्ट्स, jeans, slacks मैं रहती हैं. उसी घेर मैं मर्द भी रहते हैं.
आज अश्लील कपडे एक आम बात है . सब चलता है..

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

महिलाएं सलीके से रहे मैं भी इस बात की वकालात करती हूँ लेकिन एक बात देखकर बहुत ही घृणा होती है और वह है पुरुषों का नंगापन। पहले पुरुष लम्‍बे कच्‍छे पहना करते थे और जब सार्वजनिक स्‍थानों पर स्‍नान करते थे तो वह सहन हो जाता था लेकिन आजकल वी शेप की अण्‍डरवियर का रिवाज है वो भी लो वेस्‍ट। अब आप ही बताइए इनका क्‍या किया जाए? यह बात भी सच है कि ऐसे दृश्‍य देखकर महिलाओं की कोई सी भावना आहत नहीं होती है लेकिन घृणा और आक्रोश तो उत्‍पन्‍न होता ही है।

रचना ने कहा…

अजित जी की बात से पूर्णता सहमत होते हुआ ये भी जोड़ना चाहूंगी कृपा कर वो लिखे जो सही हो . ज़रा अक्षय कुमार का वो विज्ञापन देखे जिसमे वो कहता हैं "बटन खुला हैं " आप कि पोस्ट भी कुछ उसी प्रकार कि हैं . क्युकी शो सेंसर से पास हो कर ही प्रसारित हुआ होगा ये मान ले कि परिधान अब कोई शील अश्लील का पैमाना नहीं हैं और उस पोरोमो को भी देखे जहां सलमान का वाहियात पना दिखता हैं बिग बॉस के विज्ञापन मे . नैतिकता और अश्लीलता केवल नारी मे हैं या उसके पहनावे मे , या उसके काम मे . अगर नहीं तो पोस्ट देते समय उस पर भी लिखे

सुनील मिश्र ने कहा…

मासूम जी, हो सकता है आपको यह आम बात लगती हो मगर यह न्यूनतम प्रतिशत आधुनिक घरों में अविभावकों द्वारा दी गई आज़ादी है, ऐसा मेरा विनम्र ख्याल है।

सुनील मिश्र ने कहा…

अजित जी, आपका गुस्सा जायज़ है। लेकिन असभ्यता का मुक़ाबला कैसे किया जा सकता है? स्त्री, पुरुषों के रहन-सहन से प्रेरित होकर कोई धारणा स्थापित करे इसका समर्थन तो भी नहीं करना चाहेंगी।

सुनील मिश्र ने कहा…

रचना जी, गंभीरता से विचार करेंगी तो शायद आप इस बात से सहमत हों कि पुरुष और स्त्री अश्लीलता में परस्पर कोई मुकाबले जैसी बात तो कभी नहीं बनती।

रचना ने कहा…

रचना जी, गंभीरता से विचार करेंगी
what ever i write i write with complete seriousness and lets talk of equality and not gender bias . lets talk about man who become icons when they promote trash and woman are called by dirty names .
both are equally responsible and lets blame both of them
most article are tilted towards clothes of woman why ????? any answer

सुनील मिश्र ने कहा…

बहुत सारे लोगों के लिखने और उसमें शामिल विचारों का अपना मनोविज्ञान होता है. एक ही तराजू में सभी को रखकर तुलना नहीं की जा सकती रचना जी.

राजन ने कहा…

main ajit ji aur rachna ji se sahmat hun.par ye aapse kisne kaha ki akshay ka show flop ho gaya u tha?

सुनील मिश्र ने कहा…

कोई कहता नहीं है, नज़र आता है राजन जी. उस समय चैनल ने इसी कारण उसे विस्तार नहीं दिया और आकलन किया. सिनेमा पर लिखने के ढाई दशक के सतत अनुभवों के आधार पर भी मैंने यह सोचा. मेरी ये टिप्पणियां "पत्रिका" अख़बार ग्रुप में रोज़ प्रकाशित होती हैं. उसके बाद यहाँ देता हूँ. आपकी सजग टिप्पणी और प्रश्न के लिए आभारी हूँ.