शनिवार, 18 सितंबर 2010

अपनी फुलवारी थी जहाँ

जो दिए ख्वाब आपने
वही हम ले के चले
सच कहें आपसे हम
ख्वाब कुछ और न पले

बिरवे जो रोपे थे मिलकर
उन्हीं को सहेजा हमने
दिनों में फूल जो खिला
आप ही को भेजा हमने

आप ही भूल गए
फूल की प्यारी सी महक
रंग भी याद न रहा
न वो बिरवे की चहक

वो बगीचा है कहाँ
अपनी क्यारी थी जहाँ
काँटे बिखरे हैं पड़े
अपनी फुलवारी थी जहाँ

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