रविवार, 5 दिसंबर 2010

शादियों के जश्र और सिनेमा-गीत

शादी-विवाह के जश्र का फिल्मों से कैसा गहरा रिश्ता है, इसका उल्लेख पिछले दिनों कौन बनेगा करोड़पति में अमिताभ बच्चन ने किया और खासतौर पर बी.आर. चोपड़ा की फिल्म नया दौर के, ये देश है वीर-जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का, इस देश का यारों क्या कहना, को याद किया। चोपड़ा की यह फिल्म अपने समय की ही नहीं वरन हर समय की एक बड़ी प्रेरक और अहम फिल्म है। इसके मूल्याँकन मेें सभी पक्षों को सौ में से सौ नम्बर ही मिलते हैं। जिस गीत की बात अमिताभ बच्चन कर रहे थे वह परदे पर दिलीप कुमार और अजीत के साथ खूब सारे जूनियर कलाकारों के ऊपर फिल्माया गया था। इस गाने की मस्ती आज भी देखते बनती है। मोहम्मद रफी ने अकेले ये गीत बराबर के दो किरदारों के लिए गाया था। हिन्दुस्तान के युवा को जोश और गर्मी से भर देने वाला यह गीत, कैसे बहुत ही मस्ती भरे नाच और खासकर चलती-चढ़ती बारात का गीत बन गया, कुछ पता नहीं। साहिर लुधियानवी और ओ.पी. नैयर के गीत-संगीत की यह कालजयी खूबी बारातों की जैसे अपरिहार्यता ही बन गयी। शायद ही कोई बारात हो जो इस गीत के बगैर निकले।

हिन्दी फिल्मों में वक्त-वक्त पर ऐसे बहुत से गीत बने जो शादी-ब्याह के विभिन्न अवसरों के लिए बड़े मुफीद साबित हुए। संगीतकार रवि को इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने दो फिल्मों नीलकमल और आदमी सडक़ का के लिए ऐसे गीत कम्पोज किए जो शादियों से सम्बन्धित ही थे। एक था नीलकमल का, बाबुल की दुआएँ लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले। इस गीत में भावुकता और संवेदना गजब की है। मोहम्मद रफी इस गीत को गाते हुए कैसे डूब जाते हैं, गीत को सुनकर अन्दाजा लगाया जा सकता है। कहा जाता है कि इस गीत की रेकॉर्डिंग उन्होंने भरे गले से ही करायी थी। आज के समय में हम इतने गहरे गायकों की कल्पना ही नहीं कर सकते। एक दूसरा गीत, आज मेरे याद की शादी है भी मोहम्मद रफी ने ही गाया था। यह फिल्म आदमी सडक़ का, का गीत था जो शत्रुघ्र सिन्हा पर फिल्माया गया था जो अपने मित्र विक्रम की बारात में नाचते हुए गाते हैं।

एक गीत, बहारों फूल बरसाओ, मेरा मेहबूब आया है, भी ब्याह-बारात में बड़ा लोकप्रिय है मगर इसका महत्व नाच में देखने में नहीं आता। यह लगभग द्वारचार के बाद भीतर जाती बारात और समेटे जाते बैण्ड बाजे का उपसंहार गीत होता है। शादी-ब्याह के और गीतों में पी के घर आज प्यारी दुल्हनियाँ चली, डोली चढ़ के दुल्हन ससुराल चली, जब तक पूरे न हों फेर सात, मेरे हाथों में नौ-नौ चूूडिय़ाँ हैं, डोली सजा के रखना, मेंहदी लगा के रखना जैसे गीतों की एक लम्बी सूची है जो शादी-ब्याह के घरों में सब याद कर-करके नाचते-गाते हैं। सिनेमा हमारे जीवन के सबसे बड़े उल्लास और परम्परा में कितना गहरा रचा-बसा है यह इन बातों से प्रमाणित होता है।

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