शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

जुबानी अश्लीलता, थर्टी प्लस, दिल तो बच्चा आदि

सिनेमा की झलकियाँ दिखाने और सिनेमा सम्बन्धी कार्यक्रमों के प्रति पूर्णतया समर्पित एक चैनल में एक फिल्म टर्निंग थर्टी का प्रोमो देखने का मौका मिला। यह फिल्म प्रकाश झा प्रोडक्शन्स की दिखायी दी जो उनके प्रोडक्शन हाउस की सहायक ने निर्देशित की है। ध्यान देने वाली बात यह लगी कि उसके छोटे से, शायद कुछ सेकेण्ड के प्रोमो में इतने अश्लील शब्द थे कि वहाँ पर चैनल ने बीप का प्रयोग किया था। बावजूद इसके जो संवाद सुनने में आ रहे थे, सुनकर लगता था कि तमाम जगह बीप चस्पा करना छूट भी गया है। गुल पनाग नाम की बोल्ड मगर फिलहाल कैरियर में मुकम तलाशती अभिनेत्री की यह फिल्म जब इतने छोटे से प्रोमों में अपने शाब्दिक अर्थों में ऐसी दिखायी दी तो फिल्म जाने कैसी हो?

आश्चर्य इस बात का लगा, जो बहुत ज्यादा सुखद भी था कि चैनल भी शरमाया और उसने सभी गन्दे, कमोवेश यौनिक संवादों वाले दृश्यों पर बीप चिपकायी। लेकिन बाजार का मामला है, विज्ञापन होगा, चैनल क्यों न दिखाये, इतने बीप के साथ ट्रेलर देखकर नयी पीढ़ी के कुछ दुस्साहसी आधुनिकजन बीप के भीतर के शब्द और शब्द के साथ-साथ पूरी फिल्म के लिए सिनेमाघर जायेंगे। स्वाभाविक है सिनेमाघर को अश£ील संवादों पर बीप का प्रयोग करने की अपरिहार्यता नहीं है और न ही नैतिकता के वशीभूत वह इससे बँधा ही है।

हालाँकि जिस तरह की यह फिल्म है, महानगरों के मल्टीप्लेक्स में ही यह नजर आयेगी, मगर अपने आपमें यह बड़ा तथ्य है कि आजकल फिल्मों में महिला फिल्मकारों, खासकर युवा महिला फिल्मकारों में ऐसी बोल्ड आमद भी हुई है। तभी हमें एकता कपूर की फिल्म लव सेक्स और धोखा देखने में आती है तभी अलंकृता को भी अपने कैरियर की शुरूआत करने के लिए अपने एक बड़े निर्देशक का नाम और बैनर, ऐसी फिल्म के लिए अपरिहार्य होता है। चूँकि फिल्म बन गयी है और वयस्कों के सर्टिफिकेट के साथ प्रदर्शित भी हो जायेगी लिहाजा अब यह प्रश्र उपस्थित नहीं होता कि किस धरातल पर इस फिल्म के बारे में सोचा गया, किस धरातल पर इसकी सार्थकता का पूर्वाकलन किया गया।

एक और फिल्म जिसके निर्देशक मधुर भण्डारकर हैं, दिल तो बच्चा है जी, उसके प्रोमो भी बीप से भरे हैं। ऐसा लगता है, कि प्रोमो को खास इस असावधानी से बनाना और फिर बीप का प्रयोग लोकप्रियता और आकर्षण का एक अलग तरह की रसिकता को प्रभावित करे, इसका भी विचार अब पहले कर लिया जाता होगा। खैर भटकाव के इस दौर में हिन्दी सिनेमा एक अलग तरह के भटकाव का शिकार है, इस बात में दो राय नहीं है।

इस पूरे सिनेरियो में विधि कासलीवाल की तारीफ करने को जी चाहता है जिन्होंने अपने मामा के प्रोडक्शन हाउस राजश्री में इसी लाइफ में जैसी प्यारी फिल्म बनायी है और वे इस फिल्म पर बात करते हुए बड़ी आश्वस्त भी नजर आती हैं।

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