शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

जहाँ नहीं चैना, वहाँ नहीं रहना



किशोर कुमार का एक गाना है, दुखी मन मेरे, सुन मेरा कहना, जहाँ नहीं चैना, वहाँ नहीं रहना। अपने प्रशंसकों के बीच उनका व्यापी स्वरूप तो एक खिलन्दड़े और मसखरे व्यक्ति का ही रहा है। एक ऐसा विचित्र व्यक्ति जो कला जगत के शीर्ष पर रहा है। हिन्दी सिनेमा में पाश्र्व गायक की सबसे ज्यादा लोकप्रिय जगह और फिर उसी के साथ-साथ शौकिया अभिनय, उसमें भी कहीं-कहीं बिल्कुल विलक्षण और असाधारण उपस्थिति दूसरा अन्य अनेक जुड़े हुए आयामों पर भी अपनी जिद के साथ मौजूद रहने का शगल, जैसे गीतकार हो गये, संगीतकार हो गये, निर्देशक हो गये और जो कुछ छूटता दीखा वो भी हो गये।

किशोर कुमार अपनी एकाग्रता और जीवन में, कहा जा सकता है कि सब जगह वे पीठ करके खड़े रहे, सामने मुँह उसी तरह-उसी तरफ रखा जहाँ उनका मन रमा। उनके दोस्त, उनकी दुनिया खुद उनकी गढ़ी हुई, बाकी तो खैर सब जग है ही एक कलाकार का। चेतन आनंद की बड़ी पुरानी फिल्म फण्टूश का यह गाना, जिससे यह टिप्पणी शुरू हुई, बड़ा मौजूँ लगता है, उन पर। यह गाना देव आनंद पर फिल्माया गया है अलग-अलग सिचुएशनों में। फिल्म में देव आनंद की परदे पर कायिक उपस्थिति के साथ इस गाने को देखो-सुनो तो उनके चेहरे पर किशोर कुमार का बेचैन मन चेहरा कहीं धुंधले में महसूस होता है। वैसे किशोर कुमार इतने दुखी मन भी नहीं थे, कि सब जगह से यह कहते हुए पलायन कर जायें कि जहाँ नहीं चैना, वहाँ नहीं रहना।

यह फलसफा, उनका एक तरह का अपनी जिन्दगी जीने का फैसला, बड़ा निजी सा, अनुभवों से भरा हुआ और लगभग खारिज कर देने वाले भाव की तरह ज्यादा लगता है, वे अपनी जिन्दगी में यदि ये लाइनें लागू करते भी होंगे तो रो कर नहीं, चिढक़र कि, जहाँ नहीं चैना, वहाँ नहीं रहना।

पाठकों को शायद दिलचस्प लगे यह जानना कि खुद किशोर कुमार ने जो फिल्में बनायीं उनमें से कई के नामों में दूर शब्द का बड़ा प्रयोग हुआ है, दूर का राही, दूर गगन की छाँव में, दूर वादियों में कहीं। सोच सकते हैं कि उनके भीतर जहाँ नहीं चैना के साथ ही, ये दूर वाला फलसफा भी गहरे मायनों के साथ मौजूद था। वे इस दूर में भी अपने मन की शान्ति और चैन देखते थे, चैन आये मेरे दिल को, दुआ कीजिए।

कलाकार किशोर कुमार की जगह कोई नहीं ले सकता और किसी की भी जगह कोई भी ले नहीं सकता। अमित कुमार जैसे किशोर-पुत्र अपने दिवंगत पिता के जन्मदिन पर पेट भरकर केक खाते हैं मगर पिता की स्मृतियों के लिए कुछ नहीं करना चाहते। उन्हें अपने पिता के जन्म स्थान से बड़ा भय लगता है, खण्डवा के प्रश्रों के उत्तर जो नहीं हैं उनके पास। बड़े बेहतर हैं वे बड़े दूर के जो किशोर कुमार जैसे हरफनमौला को आज के दिन और उनकी पुण्यतिथि के दिन 13 अक्टूबर को मन भरके याद करते हैं।

1 टिप्पणी:

saritaek nadi ने कहा…

jahaan nahi chai.... poora padha. badhia