बुधवार, 10 अगस्त 2011

आरक्षण, सुर्खिया, उम्मीदें-नाउम्मीदें



अपने पाठकों के बीच एक बार जैसी कि चर्चा हुई थी, 12 अगस्त यों तो प्रकाश झा की बहुचर्चित फिल्म आरक्षण के प्रदर्शन का दिन है लेकिन इसी फिल्म के साथ-साथ लगभग पाँच-सात छोटी और मझौले किस्म की फिल्में भी इसी दिन प्रदर्शित होने जा रही हैं।

प्रकाश झा की पिछली कुछ फिल्मों से जिस तरह प्रदर्शन पूर्व प्रायोजित किस्म के प्रतिवाद-विवाद और सुर्खियाँ दिखायी देने लगी हैं, वैसी ही आरक्षण के साथ भी पिछले एकाध माह से अखबारों में छोटी-बड़ी खबरों के रूप में नजर आ रही हैं। अपहरण के साधु यादव वाले विवाद से लेकर राजनीति में कैटरीना की छबि या आरक्षण में विषय का ही मूल मुद्दा बनना कितना यथार्थपरक है, कितना फिल्म के पक्ष में माहौल के लिए, इसकी चर्चा प्रबुद्ध करते हैं।

कभी खबर यह बनती है कि लखनऊ में बच्चन साहब को छात्रों के बीच सम्बोधित करने की अनुमति नहीं मिली, कभी उत्तरप्रदेश में ही इस फिल्म के लिए फिल्म के दूसरे सितारों के साथ की जाने वाली यात्रा को प्रोत्साहित नहीं किया गया बल्कि व्यवधान पेश किए गये। चार दिन पहले अखबार में छपा कि कि बच्चन साहब और प्रकाश झा पर पटना में मुकदमा दर्ज हुआ। आरक्षण फिल्म विरोधी हवा उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र से बिहार तक पहुँच गयी है।

वैसे यह दिलचस्प है कि प्रकाश झा भोपाल में फिल्म पूरी बना लेने के बाद भोपाल या मध्यप्रदेश छोड़ शेष भारत में कलाकारों के साथ जाने के लिए आतुर और उत्सुक हैं, उन जगहों में जहाँ तार से तार रगडक़र स्पार्क से फुलझड़ी का मजा लिया जा सके। फिल्म जहाँ बनी, वो जगह, राजनीति फिल्म के समय की तरह ही उपेक्षित है।

जब राजनीति फिल्म का प्रदर्शन हुआ था तब यह अपेक्षा की जा रही थी कि निर्देशक और सितारे भोपाल में उन तमाम कलाकारों के साथ इस खुशी को सबसे पहले बाँटेंगे जो एक झलक से लेकर एक सीन के छोटे-बड़े हिस्से थे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। भोपाल से जो हाइप इस फिल्म को प्रदर्शित होने पर मिला, उसका प्रभाव व्यापक रहा और फिल्म को उस तरह की व्यावसायिक सफलता मिल गयी, जिसने प्रकाश झा के अपहरण और गंगाजल वाले आत्मविश्वास और और समृद्ध कर दिया। झा, भोपाल उन दिनों तब आये जब फिल्म प्रदर्शित हुए चार-पाँच हफ्ते हो चुके थे। आरक्षण में हालाँकि राजनीति की तरह हजारों कलाकार मध्यप्रदेश के नहीं हैं मगर फिर भी जो हैं वे एक-एक दिन गिन ही रहे हैं। जाने इस बात भी उनकी इच्छा पूरी हो पाती है या नहीं।

आजकल सिनेमाघरों में जिस तरह फिल्मों को चढ़ाने और उतारने का चलन आम हो गया है, उसमें कम समय में अधिकतम लागत वसूल करके अगली फिल्म लाने-लगाने की तैयारी की जाने लगती है, ऐसे में पता नहीं भोपाल में आरक्षण का प्रीमियर हो सकेगा कि नहीं, कलाकारों के साथ विशेष शो हो सकेगा कि नहीं या हफ्ते-दस दिन निर्देशक या कोई सितारा, भोपाल के कलाकारों के साथ खुशी बाँट सकेगा या नहीं, कहा नहीं जा सकता।

कोई टिप्पणी नहीं: