वे अक्सर हालचाल पूछने या कई बार कुछ कहने के लिए फोन कर लिया करते हैं। मेरे लिए उनका फोन आना बहुत मायने रखता है। पहले सोच यही जाता हूँ कि वो जो कहने जा रहे हैं या कहने जा रहे होंगे, उसे निबाह पाना मेरी क्षमताओं के बाहर न हो। मैं उनसे डरता भी हूँ। डरता इस तरह हूँ जैसे अपने बड़े भाई से डरा जाता है यद्यपि वे भीतर-बाहर बेहद साफ हैं, भरपूर संवेदनशील होने के साथ।
ध्रुव भाई साहब (कवि, कथाकार, आलोचक ध्रुव शुक्ल) आज मुझे सड़क पार करते हुए दीखे। उनके हाथ में एक छोटा, पतला सा डण्डा था। बच्चों ने सचेत किया, ताऊ जी जा रहे हैं, उन्हें छोड़ दीजिए जहाँ तक वे जाने को हैं। मैंने कहा, वो घूमने निकले हैं, घूमते हुए घर जायेंगे, पूछूँगा तो भी मना कर देंगे। यह बात मैंने उनके और अपने पच्चीस वर्ष के सान्निध्य और परिचय पर कही।
ध्रुव भाई साहब का रचनाकर्म मुझे बहुत सम्प्रेषणीय लगता है। खासतौर पर वे अपना लिखा जिस सम्मोहक प्रभाव और ग्राहृयता के साथ बाँचते हैं वो अनूठा है। समय-समय पर उनका लिखा देखने पर पढ़ न लिया होऊँ ऐसा कभी नहीं रहा। वे यदि शहर में कुछ सुना रहे होते हैं तो भी सारी तथाकथित मसरूफियाँ छोड़कर सुनना अच्छा लगता है। उनकी कविताएँ, उनके उपन्यास, उनका प्रवचन, कई बार गा-कर गीत को बाँचना और इसके अलावा और भी अनौपचारिक रूप से मिलना बहुत सुहाता है।
मेरे जीवन पर उनका बहुत उपकार है। यह बात लिखते हुए थोड़े आँसू आ गये आँख में पर इन्हीं से उपकार की पुष्टि भी होती है यद्यपि उन्होंने कभी इस बात को सोचा भी नहीं होगा। जीवन में लिखने-पढ़ने की शुरूआत तो कर ली थी पर शऊर सीखने उनके सान्निध्य में ही गया। उन्हीं ने भारत भवन सम्भावनाओं की खिड़की खोलकर दिखायी, आती हुई हवा का आभास कराया। उनके मिलने के बाद ही उन्होंने साहित्य और कला के क्षेत्र के मेरे सम्मानित अग्रजों सर्वआदरणीय मदन सोनी, हरचन्दन सिंह भट्टी, अखिलेश, उदयन वाजपेयी, यूसुफ, राॅबिन डेविड और उनके मार्गदर्शन की ड्यौढ़ी तक पहुँचाया। मदन सोनी पहले ऐसे अधिकारी थे जो कहते थे कि काम न हो तो कुर्सी पर बैठे रहने की जरूरत नहीं है। गैलरी देख आया करे, वागर्थ में चले जाया करे, अच्छी किताबें पढ़ा करे.....।
ध्रुव भाई साहब और मदन सोनी जी के सामने बैठकर खूब प्रूफ मिलान कराना याद है, आलोचना की पत्रिका पूर्वग्रह का। भट्टी जी का किया आकल्पन, उस समय जतन से बनाये जाने वाले कवर, प्रेस में प्रकाशन सामग्री की कम्पोजिंग, मास्किंग, छपाई, बाइण्डिंग सब कुछ। ये भाई साहब लोग ऐसे थे कि बाइण्ड होने के बाद किताब की कटिंग को लेकर भी बड़े बारीक और संवेदनशील होते थे। देखने में एक किताब सुडौल भी किस तरह हो, इसकी भी बड़ी फिक्र क्योंकि उन सबसे अधिक बारीक और संवेदनशील आदरणीय अशोक वाजपेयी जी के पास प्रारम्भ में पाँच काॅपी कटवाकर, बाइण्ड कराकर वे ही उतने समय तक खड़े होते और सुनते थे जब तब अशोक जी पहले से लेकर आखिरी पेज तक न आ जायें।
उत्कृष्ट कार्यों के संस्कार बहुत बाद में समझ में आते हैं। कहीं किसी ओर यदि अपने किए और सीखे को कुछ तवज्जो मिलती है तो संस्कारों का स्मरण हो ही आता है। अखिलेश जी प्रदर्शनी अधिकारी थे। याद आता है, एक तरफ कान में सोने की बाली पहनते थे, अपनी तरह के चुस्त और फुर्तीले कलाकार। वे दीर्घाओं में नये काम को लेकर बताते थे। दीर्घाओं के परिष्कार का अवलोकन करने और सीखने की प्रेरणा देते थे। राॅबिन डेविड के रूप में एक बहुत ही सहज और मिलनसार भाई साहब, वे शिल्पकार हैं, मकराना से पत्थर लाकर काम करते थे, अपने काम के प्रति बेहद सुचिन्तित और संवेदनशील भी। यूसुफ भाई ग्राफिक्स में पीढि़यों को दीक्षित और संस्कार प्रदान करने वाले, अब तक जाने कितने कलाकार उनके वर्कशाॅप से निकले।
ध्रुव भाई साहब जब-जब कहीं कुछ हमारा देखा, पढ़ा तो जरूर कहा। हालाँकि मैं यह बराबर जानता था कि जिस आयाम-संसार में मेरा लिखना-पढ़ना है वहाँ ज्यादा बौद्धिकता उस माध्यम के विश्लेषण को ही जटिल बना देगी और सम्प्रेषण के लिए जो भाषा या लहजा मैं चुनता हूँ उस पर श्रेष्ठिवर्ग की कमी नहीं है, दावों और गारण्टियों में। फिर भी ध्रुव भाई साहब ने उस माध्यम में भी अच्छा काम मुझसे करवाया। मध्यप्रदेश सन्देश के सम्पादक रहते हुए उन्होंने महत्व के विषय दिए और सन्तुष्ट होने तक मेहनत करवायी।
ध्रुव भाई साहब और उनके सभी मित्र जिनका जिक्र इस टिप्पणी में आया, इस बात के लिए कभी लालायित नहीं रहे कि उनका धन्यवाद किया करूँ या अतिरिक्त कृतज्ञता के साथ उनके सम्पर्क में लगातार बना रहूँ बल्कि वे हर सम्भावना और महत्व के समय या अवसर पर अपनी दुआएँ और शुभेच्छाओं के साथ ही मिले। जीवन में उनसे जो सीखने को मिला, निरन्तर याद आता है, याद रहता है। सभी के सामने आज भी विद्यार्थी हूँ, सीख रहा हूँ क्योंकि कला और आयामों के साथ सभी अग्रजों को अपने जगत में न केवल देश बल्कि दुनिया तक मान्यता और सम्मान मिला है। साहित्य और आलोचना में मदन जी, धु्रव जी, उदयन जी, कला में राॅबिन डेविड साहब, अखिलेश जी, भट्टी जी का अब का संसार बड़ा व्यापक है। सभी का कृतित्व आज भी मन में जिज्ञासाएँ खड़ी करता है, प्रेरणा देता है और विनम्रता भी...............
कुछ दिन पहले ही धु्रव भाई साहब का फोन आया था। वे इच्छा व्यक्त कर रहे थे कि भोपाल में विशेष बच्चों की संस्था आरुषि के बच्चों के बीच बैठकर समय-समय पर वे कुछ कहानियाँ और कविताएँ सुनाना चाहते हैं, अपनी कुछ किताबें उनको भेंट करना चाहते हैं। इस विषय में संस्था के प्रमुख भाई अनिल मुद्गल को भी बताया था। जिस दिन वह पहल हो जायेगी, सहभागी होने का व्यग्रता से इन्तजार कर रहा हूँ...............
Chandan Bhatty, Akhil Esh, Yusuf Yusuf, Robin David
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