शुक्रवार का दिन सिनेमा के लिए खास हुआ करता है। इस दिन फिल्में रिलीज होती हैं। सफलता-असफलता का मापदण्ड रचती हैं। एक फिल्म का फैसला उससे जुड़े हर व्यक्ति के भाग्य का फैसला करता है। यह फैसला दर्शकों के हाथ में होता है। मेरे लिए भी पहली बार शुक्रवार का दिन आज कुछ खास हो गया है जब अपने कैरियर की पहली फिल्म पीकू रिलीज होने जा रही है।
यह कहना है भोपाल के वरिष्ठ रंगकर्मी बालेन्द्र सिंह का जो आज प्रदर्शित हो रही फिल्म पीकू में एक अहम किरदार निबाह रहे हैं। बालेन्द्र के लिए फिल्म सम्भवतः पहला बड़ा तजुर्बा है तथापि रंगमंच से वे पिछले पच्चीस वर्षों से जुड़े हुए हैं और शहर के प्रतिभाशाली निर्देशक तथा अभिनेता के रूप में अपनी पहचान भलीभाँति रखते हैं। ऐसी पहचान कि शहर संजीदगीपूर्वक काम करने के लिए उनको बखूबी जानता है।
बालेन्द्र बताते हैं कि इस फिल्म के लिए मेरा चयन अपनी खुशकिस्मती मानता हूँ जब मेरा साक्षात्कार हुआ, यह अन्दाजा नहीं था कि किसी फिल्म के लिए हो रहा है, वह भी शुजित सरकार की फिल्म जिसमें मुख्य भूमिका महानायक अमिताभ बच्चन करने जा रहे हैं। इसके लिए मैं जोगी जी और मनोज जोशी का आभार मानता हूँ। चयन होने के बाद मुझे मालूम हुआ कि मेरे स्तर पर जाने-अनजाने मैं आने वाले समय में सिनेमा में एक अच्छी आमद का हिस्सा हुआ। बाकी सब फिल्म की सफलता, दर्शकों की पसन्दगी पर निर्भर है, मेरे अलावा फिल्म में बड़े कलाकार हैं, दीपिका पादुकोण, इरफान, मौसमी चटर्जी, रघुवीर यादव वगैरह।
इस फिल्म की कहानी एक ऐसे बुजुर्ग की बैचेनी को बयाँ करती है जो हाजमे से जुड़ी है और यह समस्या चैबीस घण्टे जाग्रत रहती है। बेटी या किसी के पास भी इसका इलाज नहीं है। छुटपन से साथ रह रहा घरेलू नौकर बुधन सोते-जागते भास्कर बैनर्जी की मुसीबतों को दूर करने के विफल प्रयत्न करता रहता है।
बालेन्द्र ने बताया कि फिल्म की शूटिंग मुम्बई, कोलकाता, बनारस और नईदिल्ली में हुई है। शूटिंग के तजुर्बे मेरे लिए जीवन के यादगार अनुभव है। शायद मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि छः माह का एक बड़ा समय ऐसे विलक्षण कलाकारों के साथ काम करते, सीन शेयर करते, शाॅट खत्म हो जाने के बाद अनौपचारिक बातचीत, महत्व की बातें, जरूरी विषयों पर चर्चा का फिर ऐसा मौका नहीं मिल सकता है। सौभाग्यशाली हूँ कि इतने बड़े कलाकारों ने मुझ जैसे नये आर्टिस्ट के साथ अच्छा बरताव किया और शूटिंग भर किरदार के नाम से ही बुलाते रहे।
बालेन्द्र रोमांचित हैं, वे विनम्र और भले इन्सान हैं, बच्चन साहब के साथ काम करने का कोई अतिरिक्त गर्व उनकों नहीं है। उन्होंने बातचीत में उतना ही बताया जितना यथार्थ था। बढ़-चढ़कर बताने के औरों के शगल से दूर उनमें ऐसे एहसास छू तक नहीं गये। बालेन्द्र कहते हैं कि वास्तव में पीकू एक मनोरंजक फिल्म है, बुजर्गों की स्वास्थ्यजनित समस्याओं से उनको होने वाली परेशानी को व्यक्त करती है। हमें भी अपने परिवार के बुजुर्गों को संवेदनशीलता और सदाशयता के साथ महसूस करना चाहिए। पीकू का यही सन्देश है। इस फिल्म को जूही चतुर्वेदी ने जिस तरह से लिखा है, उनकी सराहना की जानी चाहिए।
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