शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

सितारों की रंग-सक्रियताएँ

अभिनेता, निर्देशक सतीश कौशिक हाल ही में पुणे में अपना नाटक सेल्समेन रामलाल का मंचन करके लौटे हैं। वो बतलाते हैं कि नाटक को देखने हॉल पूरा भरा हुआ था और रंग-प्रेमियों ने नाटक का खूब आनंद लिया। सेल्समेन रामलाल, सतीश कौशिक का वो नाटक है जो वे तकरीबन दो दशकों से देश के विभिन्न मंचों पर खेलते आ रहे हैं। सतीश कौशिक की पहचान का यथार्थ किसी सपने से कम नहीं है।

करोलबाग, नई दिल्ली के सतीश, अपने आपमें व्यापक रचनात्मक ऊर्जा समेटे एक ऐसे अनूठे कलाकार हैं, जिनका उनकी क्षमताओं के अनुकूल मूल्याँकन आज तक नहीं हो पाया। दरअसल उनमें जितना स्पार्क है, उसको व्यक्त करने वाले माध्यम सिनेमा में अब तक ऐसा कोई काम सामने नहीं आ सका है, जिसमें वे अपने आपको साबित कर सकें। हमेशा ही उनकी अभिव्यक्ति, परिवेश से ज्यादा सशक्त होकर, अचम्भित करते हुए व्यक्त होती है। सतीश कौशिक की सरलता अद्भुत है और उनका शत्रु कोई नहीं।

सेल्समेन रामलाल के साथ ही सतीश कौशिक की सृजन यात्रा भी परवान चढ़ी है, वह सदा-प्रासंगिक, मौलिक और श्रेष्ठ हास्य की फिल्म जाने भी दो यारों की पटकथा और संवाद लेखन के मूल में रहे हैं। तमाम काम जो वे अब तक कर आये, वो गिनाना यहाँ जरूरी नहीं है। अवसर मिलने पर नाटक के लिए अपने आपको खुद तत्पर और तैयार रखने वाले सतीश कौशिक के भीतर सेल्समेन रामलाल जैसे मुकम्मल जिन्दगी और संघर्ष को जीता-जागता है।

फिल्मों के ऐसे बहुत से सितारे हैं जो नाटक के अपने पूर्वआधार से परदे तक पहुँचे हैं। इनमें से बहुत से ऐसे कलाकार हैं जिनके पाँव, अपनी जड़ों से पूरी तरह उखड़े नहीं हैं। यह बात अलग है कि इन सभी कलाकारों का रंगकर्म, अब हर जगह भार सहने लायक इसलिए नहीं होता क्योंकि इनकी सिनेमाई शख्सियत उस पर हावी रहती है और सब कुछ बड़ा मँहगा सा हो जाता है। हालाँकि यह भी दिलचस्प है कि ऐसे सितारों का रंगकर्म वे लोग ज्यादा तादात में देखते हैं जो केवल इनकी सिनेमाई पहचान से ही वाकिफ हैं और नजदीक से इनको देखकर अन्त:-तृप्त होना चाहते हैं। बहरहाल इनका रंगकर्म उनको तो जरूर ही नजदीक से आनंदित करता है जो इनकी क्षमताओं को बखूबी जानते हैं।

यही कारण है कि नसीरुद्दीन शाह, शाबाना आजमी, टॉम आल्टर, अनुपम खेर, नाना पाटेकर, रत्ना पाठक शाह आदि अनेक कलाकार दोनों आयामों में अपनी आवाजाही से आकृष्ट करते हैं। हम यहाँ पर लेकिन खासतौर पर खासे रंग-प्रतिबद्ध दिनेश ठाकुर का जिक्र करना चाहेंगे जिन्होंने सिनेमा के बाद नाटक में वो जगह बनायी कि सिनेमा ही भूल गये। पिछले दिनों वे गहरे बीमार रहे हैं। उनकी सक्रियता को लेकर पुन: बड़ी आशाएँ हैं।

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