गुरुवार, 27 जनवरी 2011

समय और काल से पराजय

फिल्म जगत में सक्रियता के अपने मायने होते हैं। सक्रियता जवान रखती है, चुस्त और फुर्तीला रखती है, आपको ऊर्जा दिए रहती है। कहा जाता है कि रोज गड्ढा खोदकर पानी पीने की यह एक ऐसी जगह है जहाँ पक्की नौकरी किसी की नहीं होती। रोज काम करना पड़ता है और रोज के लिए कमाना पड़ता है। इसीलिए यहाँ लचीलापन और विनम्रता के साथ-साथ दक्षता फायदेमन्द होती है। अकड़ और ठसक के समय और आवृत्तियाँ बड़ी सीमित होती हैं। जो इसके फेर में पड़ता है, वह लाइन हाजिर हो जाता है। जो समन्वयकारी होता है, उसका समय देर तक चलता है। आखिरकार स्थितियाँ एक न एक दिन सभी को रिटायर करती हैं मगर वक्त से पहले के रिटायरमेंट, विडम्बनाओं और कुण्ठाओं को जन्म देते हैं।

एक चैनल पर दो दिन पहले एक हास्य धारावाहिक शुरू हुआ है, उसमें कादर खान दिखे सूत्रधार के रूप में। एक लम्बे अरसे बाद उनका दीदार हुआ। एक जमाना था जब जमने के लिए इस गुणी और कुशल आदमी ने बड़ा संघर्ष किया था। बहुत सारी छोटी-छोटी भूमिकाएँ उनकी सत्तर के दशक की शुरूआत में की गयीं, जो याद आती हैं। वे पटकथा और संवाद लेखक के रूप में अपनी जगह बनाने की धुन में थे मगर अभिनय के अवसर भी ले लिया करते थे, भले भूमिकाएँ छोटी हों। अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म अदालत में उनकी पुलिस इन्स्पेक्टर की एक प्रभावशाली भूमिका थी। एक ऐसा किरदार था, जिसकी तरक्की इसलिए नहीं हो पाती क्योंकि पुलिस डिपार्टमेंट में इस बात का शक बना रहता है कि यह नायक अपराधी से मिला हुआ है और उसकी मदद कर रहा है। कादर खान ने इस भूमिका में जान डाल दी थी।

समय रहते ही कादर खान की भूमिकाओं को विस्तार मिला। वे सकारात्मक चरित्रों के साथ-साथ खलनायक बनकर भी आते रहे। मरहूम अमजद खान से छूटी भूमिकाएँ कई बार उनको मिल जाया करती थीं। अस्सी के दशक में कादर खान लेखक के रूप में बड़े प्रतिष्ठित हुए। हर दूसरी फिल्म के लिए डायलॉग लिखने लगे और उसी दरम्यान दक्षिण की फिल्मों से फूहड़ और द्विअर्थी कॉमेडी का जो प्रदूषण आया, उसके लगभग सर्वेसर्वा बनकर वे उभरे। यह समय भी कादर खान ने लम्बा व्यतीत किया। बाद में भावुक चरित्र भूमिकाओं में वे नये आयाम के साथ दाखिल हुए और फिर कई वर्ष सक्रिय रहे। उन्होंने एक फिल्म शमाँ बनायी थी जो फ्लॉप हो गयी। अमिताभ बच्चन से अच्छी दोस्ती रखने वाले किशोर कुमार, अमजद खान और कादर खान उनको हीरो लेकर खुद अपनी फिल्म बनाना चाहते थे। कादर भी जाहिल फिल्म बनाना चाहते थे मगर तीनों की इच्छाएँ पूरी न हो सकीं जिसके मलाल तीनों को रहे।

बहरहाल, कादर खान एक बड़ी रेंज के कलाकार, लम्बे समय से परदे से दूर रहे, अब उनको छोटे परदे पर सूत्रधार की महत्वहीन भूमिका में हम देख रहे हैं। जाने, किस कृतज्ञता में वे बरसों बाद इस तरह दीख रहे हैं?

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