शनिवार, 8 जनवरी 2011

जिन्दगी की शाम में एक बुजुर्ग शायर : इन कस्टडी

मर्चेन्ट आयवरी प्रोडक्शन की फिल्म इन कस्टडी का प्रदर्शन काल 1993 का है। प्रदर्शन के दो साल पहले इस फिल्म की शूटिंग भोपाल में हुई थी। दरअसल यह वह पूरी फिल्म है, जो भोपाल में बनी पहली मुकम्मल फिल्म कही जा सकती है। इस्माइल मर्चेन्ट ने यह फिल्म बनायी थी। लगभग बीस साल पहले, भोपाल का माहौल, एक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की अंग्रेजी और उर्दू में बनने वाली फिल्म की गहमागहमी शशि कपूर, शाबाना आजमी, ओम पुरी, परीक्षित साहनी, नीना गुप्ता, सुषमा सेठ जैसे कलाकारों का भोपाल लगातार रहना, खासे रोमांच और आकर्षण का विषय था। मरहूम फजल ताबिश, पूरे भोपाल भर के दोस्त, प्रोफेसर, तत्समय उर्दू अकादमी के सचिव और खासे मिलनसार, इस फिल्म के सारे इन्तजामों से जुड़े थे।

मुख्यत: गौहर महल में यह फिल्म शूट हुई जो शायर नूर शाहजहाँबादी बने शशि कपूर का घर बना, साथ में हाथीखाना, ओम पुरी का घर, मोती मस्जिद, पुराने भोपाल की मजबूत और यादगार इमारतों में हम एक शायर की जिन्दगी की शाम को गहरी निराशा और अवसाद में दिन-दिन व्यतीत होते देखते हैं। ओम पुरी ने एक प्रोफेसर की भूमिका की है जो भुला-बिसरा दिए गये शायर नूर का छोटी उम्र से मुरीद है। उसकी मंशा, अकेलापन और दर्द भोग रहे शायर से एक बार मिलना, उनसे बातचीत करना और उनके कलाम को लोगों तक पहुँचाने की है। कॉलेज में उसकी मदद होती है, वीडियो कैमरा खरीदना चाहता है मगर किसी तरह एक पुराने टेप रेकॉर्डर खरीदने की मदद मिलती है।

प्रोफेसर प्रयास करता है कि वह उनकी बातचीत रेकॉर्ड करे मगर हर बार नाकाम होता है। कभी नूर साहब का मूड कुछ और होता है तो कभी उनके खुशामदगीर आकर लम्बा वक्त बरबाद करते हैं और उनके साथ दावतें उड़ाकर उनको थका दिया करते हैं। कभी टेप कर रहा सहायक सो जाता है कभी माइक की लीड ही वो टेप में लगाना भूल जाता है। आखिर बहुत सारी जद्दोजहद के बाद सारी टेप आपस में उलझ जाती है। प्रोफेसर निराश होता है। अपने छात्रों की सहायता लेता है मगर वह भी उसके मन्तव्य को मखौल में उड़ा देते हैं। एक दिन उसके घर नूर साहब का भेजा पार्सल आता है, नूर साहब ने अपने बेशकीमती कलाम उसको सौंप दिए हैं ताकि उसका मंसूबा पूरा हो सके। वह उनका शुक्रिया अदा करने उनके घर जाता है मगर देखता है कि शायर का इन्तकाल हो चुका है और जनाजा जा रहा है।

ओम पुरी उस आखिरी दृश्य में बड़े प्रभावित करते हैं, जब वे पार्सल खोलकर शायर का खत पढ़ते हैं, उस मेहरबानी पर उनकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। शशि कपूर उस समय ही बहुत भारी और स्थूल हो गये थे, वे निराश शायर के अन्तिम वक्त को बखूबी जीते हैं। शाबाना ने दूसरी बीवी की भूमिका की है, पहली बीवी सुषमा सेठ हैं। नीना गुप्ता की भूमिका महत्वपूर्ण है जो अपने पति के अरमानों के बीच खुद छोटे-छोटे समझौते करती है मगर झुंझलाती भी नहीं। भोपाल के वरिष्ठ रंगकर्मी रामरतन सेन को शशि कपूर के नौकर अली की भूमिका में कई दृश्य मिले थे। वरिष्ठ रंगकर्मी अलखनन्दन के भी कुछ अच्छे दृश्य ओम पुरी के साथ थे।

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