रविवार, 20 फ़रवरी 2011

स्वाभिमान और सम्मोहन की समस्याएँ

ग्लैमर, अपने आपमें एक बड़ा और भव्य सा ऐसा शब्द है जिसके अपने व्यापक विस्तार हैं। बहुत सारे लोकप्रिय माध्यमों में काम करने वाले इस वैभवशाली शब्द के केन्द्र मेंं होते हैं और उनके सामने तमाम संख्या विभिन्न कारणों से उनकी मुरीद। एक तरफ बिना सोचा-समझा आकर्षण है तो दूसरी तरफ अपनी निजता और व्यवहारिक समस्या की फिक्रें। जो ग्लैमर के केन्द्र में है, वह लगातार लम्बे समय ऐसे यश-वैभव को जीते हुए अपना स्वभाव निर्मित करता है।

धरातल दो तरह के होते हैं। एक तरफ जो मुरीद हैं वो हर लोकप्रिय चेहरे को जानते हैं। यह देशव्यापी प्रभाव होता है। दूसरी ओर सम्मोहन के वशीभूत मुरीद लोगों को वो बिल्कुल नहीं जानते-पहचानते जो लोकप्रियता का आइकॉन बन चुके होते हैं। एक तरफ हार्दिक उदारता की अपनी सीमा या संकीर्णता है, कि आप लोगों से मिलो या नहीं मिलो, कितना और कैसा तथा किस सीमा तक मिलो, उनकी भाषा में कहें तो, बर्दाश्त करो। दूसरी तरफ भीड़, समूह या समाज का अपना आकर्षण आपको चैन नहीं लेने देना चाहता। या तो उसके हाथ में आपकी उंगली आयेगी नहीं, जिसके लिए वह जी-जान एक किए हुए है और यदि आ गयी तो फिर वह उसे छोड़ेगा नहीं भले ही टूट कर वह उसके हाथ में क्यों न आ जाये। हो सकता है, दीवानगी उसे भोलेपन में इतना निर्मम बना दे।

बहरहाल सिनेमा की दुनिया में ऐसे उदाहरण बहुत होते हैं। भोपाल में अब फिल्में बनने लगी हैं, या कह लें खूब बन रही हैं, और यह शहर अभी अपने मुरीदों के धीरज के इम्तिहान का किस्म-किस्म के किस्सों से रूबरू हो रहा है। प्रकाश झा की फिल्म आरक्षण की शूटिंग इस बार और अधिक अनुशासित ढंग से हो रही है, उसकी अपनी गोपनीयता, सख्ती और एकाग्रता है मगर निष्प्रभावी से लेकर प्रभावी तक सभी के एकसूत्रीय लक्ष्य विभिन्नताओं के साथ कई आयामों में सक्रियता लिए हुए हैं। सबसे बड़ा कारण अमिताभ बच्चन हैं जिनके दीदार तक को लोग तरसे हुए हैं। उनका चेहरा जब तक देख न लें, उनसे एक बार मिल न लें तब तक जीवन व्यर्थ सा है। तमाम तरह प्रयास और प्रभाव हैं, समूह से लेकर अकेले में मिलने की ख्वाहिशें। एक सामूहिक समझदारी केवल जी-कड़ा करने से ही आ जायेगी। काम करने वालों को काम करने देना चाहिए।

दर्शकों ने पूरा जीवन अमिताभ बच्चन को फिल्म में देख-देखकर ही महानायक बनाया है, मेल-मुलाकात या दीदार कोई अपरिहार्यता नहीं रही कभी। आरक्षण भी एक न एक दिन सिनेमाघर में आयेगी ही। अपने ब्लॉग में भोपाल और भोपाल के लोगों की तारीफ करने वाले अमिताभ बच्चन चाहें तो एक बड़े दिल का निर्णय इस फिल्म की शूटिंग या अपना काम समाप्त होने के बाद यह पहल करके कर सकते हैं कि वे लाल परेड ग्राउण्ड में पूरे भोपाल को आधा घण्टा सम्बोधित कर दें, मध्यप्रदेश शासन के समन्वय और परस्पर विचार से। मध्यप्रदेश सरकार भी चाहे तो उनका नागरिक अभिनंदन वहाँ कर सकती है और वे उसके लिए च्डिजर्वज् भी करते हैं। उनका और भोपाल, दोनों का मान रह जायेगा।

कोई टिप्पणी नहीं: