बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

स्वाभिमान से खड़े होने वाले खाँटी

सिनेमा माध्यम अजब ही है। जाने कितने भेद, जाने कितने भेदिए। कितनी ही तरह के किस्से। मान-अपमान से लेकर गल्प और यथार्थ तक। खाक से फलक तक जाने और वापस खाक पर आने का जीता-जागता, देखा-दिखायी देता दस्तावेज। शुभचिन्तकों से लेकर चाटुकारों और खुशामदगीरों की दुनिया। वक्त के साथ आते-जाते रहने वालों की दुनिया। बुरे वक्त में छोडक़र जाने और कभी-कभी नहीं जाने वालों की दुनिया। मिट चुकने के बाद पुनर्जन्म की गवाह दुनिया। भीड़ से मुहाने पर ला-खड़ा करने वाली किस्मत। शोहरत में भी मुलायम बने रहने के प्रमाण। दुर्गति को प्राप्त होने के बावजूद तनी रीढ़ के अहँकार में जीते चेहरे। पता नहीं कितना अजब-गजब।

बहरहाल, चलता सब है। हिन्दी सिनेमा का भारत के दूसरे तमाम बेहतर और बुरे सिनेमा से अलग ही संसार है जिसमें बहुत सारे पेचोखम मौजूद होते हैं। जिस तरह शिक्षा से लेकर नौकरी और राजनीति से लेकर तमाम दूसरे क्षेत्रों में जमे पैरों पर अपनी विरासत को जमाने की जुगत होती है, वैसी यहाँ भी। चांदी का चम्मच लेकर जन्म लेने वाले बहुतेरे उदाहरण यहाँ मौजूद होते हैं मगर यह भी किस्मत का फेर है कि बहुत सारे चमचमाते चेहरों की आगे की पीढ़ी डफर साबित होती है, वहीं बिना किसी मालिक या पिता के, बिना किसी बड़े समर्थन के अचानक कोई सामने आकर अपना कद बड़ा करता हुआ हमें दीखता है।

कई बार किस्मत बड़ी गजब होती है। सत्तर के दशक में दवाओं की विज्ञापन फिल्म में काम करने वाले सुरेश ओबेरॉय की अच्छी आवाज हमने पहली बार प्रकाश मेहरा की फिल्म लावारिस में सुनी। मेहरा, सुरेश ओबेरॉय के काम से इतने प्रभावित थे कि अपनी एक फिल्म घुंघरू की वो भूमिका उनको दी जो अमिताभ बच्चन को ध्यान में रखकर लिखी गयी थी। सुरेश ओबेरॉय सामान्य भूमिकाओं में चलते रहे मगर उनके बेटे विवेक ने पहली फिल्म से ही अपनी पहचान बनायी। बाद में भले वे भटकाव के शिकार हुए मगर उनकी आमद दुरुस्त थी। राकेश रोशन कभी बड़े सितारे नहीं रहे मगर जब उनके बेटे हिृतिक हीरो बने तो शाहरुख खान को पसीना आ गया। शाहिद कपूर भी अपनी मेहनत से आगे आया होनहार कलाकार है। टिप्स ने शाहिद को ब्रेक दिया। उससे पहले वे सुभाष घई की फिल्म ताल में एक्स्ट्रा कलाकार की तरह एक गाने में पीछे नाच रहे थे।

शाहरुख खान भी कुन्दन शाह, अजीज मिर्जा, राज कँवर जैसे निर्देशकों के माध्यम से मुम्बइया सिनेमा में आये और बहुत सारे सितारों पर भारी पड़े। आज भी वे अपनी जगह कम नहीं हैं मगर इन दिनों उनकी ऊ र्जा खुन्नस और उसके तनाव को भोगने में ज्यादा व्यतीत हो रही है। अभिषेक बच्चन, अपने बूते सरकार में जरा बेहतर लगे थे लेकिन बाद में लगातार उनका काम खराब हुआ। उम्र बढऩे और रणवीर तथा नील जैसे सितारों में अधिक ऊर्जा दिखायी देने के साथ ही उनका भविष्य खास नजर नहीं आता। हम इरफान खान के रूप में इसी दौर में अपने स्वाभिमान और असाधारण प्रतिभा से भरे कलाकार को देखते हैं, तो अचम्भित रह जाते हैं।

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