मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

सिनेमा में काशी का अस्सी

प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर सिंह केे छोटे भाई काशीनाथ सिंह की अपनी सृजन-भाषा है। बरसों से बनारस में रह रहे काशीनाथ सिंह ने इस शहर, शहर की संस्कृति से लेकर राजनीति और समाज को एक सर्जक के नजरिए से बड़े गहरे देखा है। बनारस में अस्सीघाट है। काशीनाथ सिंह ने इस पूरे परिवेश और अस्सीघाट की अपनी व्यवहारिक महिमा का परिप्रेक्ष्य अपने कहानी संग्रह काशी का अस्सी पुस्तक में रचा है। इस संग्रह में पाँच कहानियाँ हैं, देख तमाशा लकड़ी का, संतों घर में झगरा भारी, संतों असंतों और घोंघाबसंतों का अस्सी, पांड़े कौन कुमति तोहे लागी और कौन ठगवा नगरिया लूटल हो।

जब काशीनाथ सिंह ने इस कृति की शुरूआत की थी, तब इसके कुछ अंश एक अखबार में सिलसिलेवार प्रकाशित हुए थे। तभी इनको काफी चर्चा मिली थी, लोगों में रसमग्रता के साथ-साथ विवाद का हिस्सा भी बने थे क्योंकि भाषायी शिष्टाचार के खिलाफ इसमें आम बोलचाल का जैसा भदेस इस्तेमाल किया गया था, वह विवाद खड़े करने वाले को भी भीतर ही भीतर मनोरंजित करता था। आवरण में तो खैर सभी शालीन होते हैं। बहरहाल चाणक्य धारावाहिक के मुख्य किरदार और इसी के निर्देशक डॉ. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी को काशीनाथ सिंह की यह किताब अपनी फिल्म के लिए महत्वपूर्ण लगी और उन्होंने इस पर फिल्म बनाने के लिए श्रेष्ठ पटकथा के स्तर पर व्यापक शोध किए। डॉ. चन्द्रप्रकाश के सृजनात्मक सरोकार बड़े सूक्ष्म और गहरे हैं।

कम काम करने के बावजूद हम उनकी सक्रियता के बीस साल के लगभग इस समय को निरन्तरता में सार्थक मान सकते हैं क्योंकि पिंजर फिल्म भी उन्होंने बड़ी तन्मयता के साथ बनायी थी जिसे बहुत सराहा गया था। डॉ. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी पटकथा के स्तर पर शोध और सृजन को व्यापक आवृत्ति और मुकम्मल समय देने और लेने के पक्षधर हैं। एक-दो परियोजनाएँ उन्होंने तय करके भी इसीलिए बन्द कर दीं कि वे उनसे सन्तुष्ट नहीं थे। काशी का अस्सी, किताब उन्हें अन्तत: अपने उस काम के लिए प्रासंगिक और अनुकूल लगी जिसका आरम्भ हो चुका है और अंजाम तक उसे पहुँचना है।

फिल्मकारों को वक्त-वक्त पर बनारस बहुत आकर्षित करता रहा है। दिलीप कुमार की फिल्म संघर्ष पाठकों को याद होगी। बाद में दीपा मेहता ने वाटर और भावना तलवार ने धर्म जैसी महत्वपूर्ण फिल्में बनारस की पृष्ठभूमि पर बनायीं। अब डॉ. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी ने एक अहम और ज्वलन्त विषय अपने हाथ में लिया है। सनी देओल इस फिल्म में मुख्य भूमिका में हैं। वे संस्कृत के शिक्षक बने हैं।

काशी का अस्सी, हो सकता है अन्तिम रूप से फिल्म का तय नाम हो, न हो मगर यह फिल्म समकालीन परिदृश्य में हमें आकर्षित जरूर करेगी, यह डॉ. चन्द्रप्रकाश के भरोसे एक तरह की आश्वस्ति ही है।

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