शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

किरदार में तब्दील होती काया

प्रकाश झा की फिल्म आरक्षण में अमिताभ बच्चन एक प्राचार्य का किरदार निभा रहे हैं। विषय, फिल्म के नाम के अनुकूल आरक्षण का है। कहानी समाज और शिक्षा के साथ-साथ परिवेश के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म में अमिताभ बच्चन के साथ-साथ सैफ अली खान, मनोज वाजपेयी, दीपिका पादुकोण और तन्वी आजमी भी अहम भूमिकाएँ निबाह रहे हैं। सहयोगी कलाकारों में मुकेश तिवारी, यशपाल शर्मा, चेतन पण्डित, सौरभ शुक्ला आदि शामिल हैं। प्रकाश झा की फिल्म का क्राफ्ट अपनी तरह का होता है। बहुतेरे दूसरे फिल्मकार अपनी फिल्मों की रचनात्मकता को अपनी दृष्टि से विकसित करते हैं मगर प्रकाश झा, ज्वलन्त विषय उठाते हैं, राजनीति का सिनेमा और सिनेमा की राजनीति दोनों को ही पिछले तीन दशक में बखूबी समझ लेने वाले झा से, यदि यह कहा जाये कि सिनेमा, उनका सिनेमा, नब्ज के साथ नियंत्रित होता है तो कोई अतिश्योक्ति न होगी।

आरम्भ में या प्रगति लेती फिल्म में प्रकाश झा की फिल्म की कहानी को समझ पाना मुश्किल होता है। वे स्वयं भी जाहिर करना पसन्द नहीं करते। यही गम्भीरता और गोपनीय बनाये रखकर बरती जाने वाली एकाग्रता, फिल्म को विशिष्ट बनाती है। दामुल से लेकर पिछली फिल्म राजनीति और बन रही फिल्म आरक्षण तक यही तरीका उनका काम करने का रहा है। वे इस बात को लेकर खुशी जाहिर भी करते हैं कि उनके आसपास बहुत बड़े प्रतिशत में इस बात को आसानी से समझ लिया जाता है और उनको काम करने की स्वतंत्रता बिना व्यवधान के दी भी जाती है। कतिपय कठिनाइयों को कई बार धीरजभर वे वहन भी किया करते हैं। लेकिन इतना तो कहा जायेगा कि जिस तरह की गम्भीरता उनके काम में होती है, वह अब आज के दौर में सक्रिय फिल्मकारों के एक बड़े प्रतिशत में नजर नहीं आती।

आरक्षण में अमिताभ बच्चन के साथ उनका काम करना निश्चित ही महत्वपूर्ण है। कई बार लम्बे समय दो गम्भीर दृष्टि वालों की बैठक नहीं हो पाती और न ही उनमें तादात्म्य स्थापित हो पाता है। हो सकता है इसके अनेक कारण हों मगर सृजन में मील का पत्थर स्थापित होने की बाट समय भी जोहता है और उसके परिणाम भी देता है। अमिताभ बच्चन एक तरह से फिल्म में परदे पर नजर आने वाले कलाकारों और किरदारों दोनों के मुखिया की तरह हैं। फिल्म में उनकी भूमिका निर्णायक है। सही और गलत के फैसले, न्याय और पक्षपात के बीच अपना रुख, तटस्थ भाव या लिए गये निर्णय की आदर्श स्थितियों को लेकर जो उपसंहार आरक्षण फिल्म दर्शक के सामने लायेगी, वह एक सार्थक फिल्मकार, सार्थक कलाकार और सार्थक फिल्म को उसकी सार्थक परिभाषा भी देगी। हमें आरक्षण का इन्तजार इसी अभिलाषा से करना होगा।

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