सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

स्वर-सम्प्रेषण का आध्यात्म और येसुदास

गांधी जयन्ती के दिन तिरुअनंतपुरम में प्रतिष्ठित पाश्र्व गायक के. जे. येसुदास, एक लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित हुए। यह खबर एक छोटी सी जगह में प्रकाशित की गयी थी मगर उस अखबार को धन्यवाद कि येसुदास का नाम पढक़र एक साथ उनके कई गीत स्मृतियों में एक-एक लाइनों के साथ कौंधना शुरू हुए। हिन्दी सिनेमा को बनाने वाले, हिन्दी सिनेमा के देखने वाले बहुतेरे येसुदास को भूल चुके होंगे। नयी पीढ़ी, जो शान, सोनू और सुखविन्दर के शोर में अपनी मस्ती का शोध करके मस्त होती है, उसे येसुदास से कुछ लेना-देना न होगा मगर आखिरकार येसुदास, येसुदास हैं।

सत्तर साल के येसुदास को शास्त्रीय संगीत में उनके विलक्षणपन के लिए तो हम जरा भी नहीं जानते। राजश्री प्रोडक्शन्स, दादू रवीन्द्र जैन को इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने दक्षिण के इस महान गायक को हिन्दी फिल्मों के दर्शकों से परिचित कराया और सौ-पचास ऐसे गाने रचे जिनको कभी-कभार सुनते हुए अपने आपको उस समय के आसपास खड़ा हुआ महसूस कर सकते हैं हम।

कोचीन में जन्मे येसुदास मलयाली सिनेमा के प्रख्यात गायकों में शुमार होते रहे हैं। साठ के दशक में उनका सिनेमा में एक गायक के रूप में आना हुआ। छोटी उम्र से उन्होंने शास्त्रीय संगीत की गहन शिक्षा प्राप्त की थी। अपने पिता के साथ वे भजन संध्याओं, पारम्परिक आयोजनों में गाने जाया करते थे। उनकी आवाज में ऐसी रस-माधुरी घुली थी कि कम उम्र से ही उनको प्रशंसा और सराहना प्राप्त होने लगी थी। उनकी आवाज को श्रोता डूब कर सुनते थे। भक्ति संगीत में उनका अटूट समर्पण था। उनकी गायी रचनाएँ अपने आसपास बड़ी संख्या में संगीत रसिकों को प्रभावित करती थीं। स्वर-सम्प्रेषण के आध्यात्म का रहस्य कह लें या मार्ग, येसुदास ने गहन समर्पण से ही प्राप्त किया।

दक्षिण में अपनी गायन क्षमता और प्रतिभा से प्रतिमान रचने वाले येसुदास ने जब बासु चटर्जी निर्देशित फिल्म चितचोर के लिए गीत गाये तो हमने जाना कि मुम्बइया सिनेमा में तत्कालीन समय के प्रचलित स्वरों में एक विनम्र और सम्प्रेषणीय सुरीली प्रतिभागिता येसुदास के रूप में बढ़ी है। सत्तर के दशक में प्रदर्शित इस फिल्म में, जब दीप जले आना, गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा, आज से पहले आज से ज्यादा खुशी आज तक नहीं मिली, तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले, जैसे गानों ने अच्छे संगीत के मुरीदों को जो रसपान कराया, वह अच्छे समर्थन से खूब परवान चढ़ा।

यहीं से शुरू एक और आयाम-विस्तार में फिर सावन कुमार की साजन बिना सुहागन तक, मधुबन खुश्बू देता है जैसे गीतों ने येसुदास को हम सभी के मन में आदरसम्पन्न स्थान पर प्रतिष्ठापित किया है। बीच में बहुत सारी फिल्में और गाने हैं, किसे खबर कहाँ डगर जीवन की ले जाए, जानेमन-जानेमन तेरे दो नयन, सुनयना इन नजारों को तुम देखो, कहाँ से आये बदरा आदि, याद किए जाएँगे तो याद आता जाएगा।

कोई टिप्पणी नहीं: