बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

दो ध्वस्त फिल्में और एक रोबोट

बीते सप्ताह प्रदर्शित दो फिल्में आक्रोश और नॉक आउट ध्वस्त हो गयीं। दोनों ही फिल्में बड़ी मँहगी बनी थीं। दोनों ही फिल्मों में बड़े सितारे थे। खासा प्रचार दोनों फिल्मों का किया जा रहा था मगर बॉक्स ऑफिस पर दोनों ही फिल्मों का धंधा बिगड़ गया। दरअसल दबंग की कामयाबी और सिनेमाघर में जमकर नोट गिनने वाले थिएटर मालिकों को टिकिट बेचने वालों के लिए यह एक झटका ही था। दो-तीन हफ्ते भरपूर कमाई देकर विदा हुई दबंग के हैंगओवर से सिनेमा मालिक बाहर भी न आ पाये थे कि आक्रोश और नॉक आउट के असफल हो जाने का झटका लगा।

आक्रोश का विषय ज्वलन्त था, प्रियदर्शन फिल्म के निर्देशक थे। अजय देवगन और अक्षय खन्ना तो मुख्य भूमिका में थे ही परेश रावल की भूमिका भी बड़ी सशक्त थी। एक अच्छे कलाकार अतुल तिवारी का रोल भी बहुत अच्छा था, जिनकी चर्चा कम ही हुई। बिपाशा बसु को जरूर अण्डरकैरेक्टर प्रस्तुत किया गया। बिपाशा अपनी जिन ख्यातियों की वजह से जानी जाती हैं, उसके उलट उनको पेश किया गया। कहानी मजबूत होने के बावजूद फिल्म इतनी एकतरफा हो गयी कि वह ठीक-ठीक परिणामसम्मत बनकर सामने नहीं आ सकी। ऐसे में असफल होना ही था। नॉक आउट, अच्छे इरफान खान के बावजूद उम्रदराज होते संजय दत्त और कमसिन कंगना की क्षमतागत सीमाओं के कारण असफल हो गयी। विदेशों में फिल्मांकन कई बार फिल्मों की अपनी अस्मिता को भी मार देता है।

अमेरिका में फिल्म शूट करके अमरीकन फिल्म नहीं बनायी जा सकती, यह हमारे निर्देशक नहीं समझ पाते। अपने देश का मौलिक परिवेश भी किसी सफल फिल्म का प्रबल सबब बन जाया करता है। रमेश सिप्पी की शोले से बड़ा उदाहरण भला और क्या होगा? पिछले सप्ताह की इन्हीं दो फिल्मों के बीच दबंग के जरा बाद आकर अब तक सिनेमाघरों में लगी रहने वाली रोबोट को लेकर सिनेमाघर मालिक आज भी अच्छी राय दे रहे हैं। वे कहते हैं कि आक्रोश और नॉकआउट के बजाय रोबोट पर दर्शक ज्यादा मेहरबान हैं। वे दर्शक रोबोट देखते हुए मजे में हैं जो रजनीकान्त को हमेशा नहीं देखते। देखा जाए तो रजनीकान्त की फिल्म ही बड़े बरसों बाद इस तरफ आयी। हमें जरा इस बात पर विचार करना चाहिए कि आखिर सिनेमा के सन्दर्भ में नयी पीढ़ी के फिल्मकारों की अपनी धाराणाएँ हैं क्या? जिनकी फिल्में बनकर प्रदर्शन की कतार में हैं, वे तो दर्शकों के फैसले पर ऊपर-नीचे हुआ ही करेंगे मगर जिनका काम अब शुरू होगा, क्या वे भी करने जाने के पहले यह तय नहीं करेंगे कि जोखिम किस तरह के हैं?

बहरहाल रोबोट फ्लॉप फिल्मों के झटके को बर्दाश्त करने के लिए थिएटर मालिकों के लिए एक बड़ी राहत का नाम है। सेल्यूट रजनीकान्त साहब......।

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