गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

ग्राहक भी जागे और कलाकार भी

ग्राहकों को जागरुक बनाने वाले कुछ विज्ञापन हाल ही में विभिन्न चैनलों में दिखायी दिए। खासतौर पर इशारा कुछ ऐसे विज्ञापनों की तरफ था, जो काले से कोरा हो जाने वाली क्रीम या दवा के प्रचार में दिखाए जाते हैं। उन विज्ञापनों के लिए भी था जो कद बढ़ाने की बात कहते हैं, चरबी घटाने की बात कहते हैं, तमाम बीमारियों से बड़ी जल्दी निजात दिलाने की बात कहते हैं। जागो ग्राहक जागो, श्रृंखला के ये विज्ञापन दिलचस्प हैं। ऐसा नहीं है कि ग्राहक सो रहा है या नीम बेहोशी में है लेकिन इस तरह की जागरुकता वाले विज्ञापन उस भर्रेशाही की तरफ इशारा जरूर करते हैं जो चैनलों में विज्ञापन व्यावसाय के नाम पर जारी है और जिस रोकने वाला कोई नहीं है।

कुछ चैनल ऐसे हैं जिसमें ये विज्ञापन अन्तहीन अवधि में चलते ही रहते हैं। विदेशी विज्ञापनों को हिन्दी डब करने वाले विज्ञापन भी ऐसी ही श्रेणी का हिस्सा हैं। उनके पास जैसे हर मर्ज का रामबाण इलाज है। शिल्पा शेट्टी एक शेम्पू का विज्ञापन आजकल बड़ी चतुर किस्म की साफगोई से करने लगी हैं। एक समय था जब अमिताभ बच्चन ने विज्ञापन करना शुरू नहीं किए थे और एक प्रायवेट बैंक ने किसी तरफ उनको अपने लिए सहमत कर लिया था, तब उनकी शर्त यह थी कि वो कोई वैचारिक शाश्वत बात कहेंगे पर बैंक के पक्ष में एक शब्द भी नहीं कहेंगे। बैंक उस पर भी तैयार हो गया था और विज्ञापन उन्होंने किया था। बाद में अमिताभ बच्चन विज्ञापनों की दुनिया के भी महानायक बन गये। फिर तो उन्होंने एक तेल बनाने वाली कम्पनी के विज्ञापन में यह तक कह दिया कि पच्चीस-तीस सालों में इतनी मेहनत-मशक्कत करते हुए सिर दर्द होने पर उन्होंने उसी तेल से हर वक्त निजात पायी।

रुद्राक्ष, ताबीज, रक्षा यंत्र आदि तमाम स्वास्थ्य, सम्पत्ति, शान्ति और वैभव लाने वाले विज्ञापनों का भी खूब बाजार गर्म है। इन दिनों उन सहित दो-तीन बड़े सितारों को हम बड़े साधारण किस्म के मोबाइल फोन का विज्ञापन करते देख रहे हैं जो कि बहुत ही अजीब सा लगता है। इस समय बड़ी कम्पनियों के बरक्स ऐसी लोकल कम्पनियाँ खूब आ गयी हैं जिनके मोबाइल आज के कई लोकप्रिय सितारे अपने हाथ में पकड़े दिखायी देते हैं। सचमुच ऐसा लगता है कि अब जिस तरह की आम इन्सानी मूच्र्छा का लाभ लिए जाने की भारी कवायद चल रही है, उसमें ग्राहकों जगाने के लिए अलग से विज्ञापन अपरिहार्य हो गये हैं।

हाँ, पिछले कुछ समय से उस विज्ञापन को लेकर भी प्रबुद्धों में बड़ी आपत्ति व्यक्त की गयी है जिसमें पचास रुपए मात्र में गर्भ की जाँच हो जाने का प्रचार है और वह भी एक किशोरी के चेहरे के साथ। नासमझ उम्र में स्वच्छन्दता का अस्त्र देकर आखिर किस रास्ते पर बेपरवाह कदम बढ़ाने का दुस्साहस प्रदान कर रहा है ये विज्ञापन?

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