सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

किशोर-स्मृति : चिरस्थायित्व के प्रश्र

स्वर्गीय किशोर कुमार की पुण्यतिथि के मौके पर इस बार खण्डवा में वाकई कुछ महत्वपूर्ण एवं सराहनीय उपक्रम दिखायी दिए। बहुत सा ऐसा काम जिसे चींटी चाल से चलते एक दशक हो गया था, उसमें से बहुत सा परिणाम रूप में सामने आया दीखा। अब किशोर कुमार की समाधि और पूरा परिसर एक अच्छे, सुरम्य वातावरण में तब्दील हो गया है। उससे पहले किशोर स्मारक बन गया है जहाँ एक बड़ा आँगन है, पानी के झरने-फव्वारे हैं, केन्द्र में किशोर कुमार की बहुत परफेक्ट तो नहीं पर एक प्रतिमा स्थापित हो गयी है। ठीक इसके नीचे एक मिनी थिएटर बना दिया गया है जहाँ बैठने के लिए सीढिय़ाँ बनी हुई हैं। पच्चीस-तीस लोग एक साथ बैठ कर कोई फिल्म देख सकते हैं।

साल में दो बार 4 अगस्त और 13 अक्टूबर को यहाँ भावुक वातावरण रहता है। खण्डवा के किशोर प्रेमी यहाँ पूरे दिन आते-जाते-रहते हैं। गाने हुआ करते हैं और श्रद्धांजलि दी जाती है। यह खण्डवा शहर में प्रवेश करने से पहले दायीं ओर उस स्थान का परिचय है जहाँ अब से तेरह वर्ष पहले किशोर कुमार का अन्तिम संस्कार किया गया था। ठीक इसके विपरीत खण्डवा शहर के भीतर रेल्वे स्टेशन के पास उनका पैतृक मकान है, जहाँ उनका जन्म हुआ था। यह मकान तमाम दुकानों से ऐसा घिरा हुआ है कि सिवा दरवाजे के और कुछ नजर नहीं आता। पुराने लोहे के दरवाजे में गौरी कुंज लिखा हुआ है जो कि किशोर की माता गौरा देवी और पिता कुंजी लाल के नाम पर शीर्षित है। इसी नाम का एक सभागार नगर निगम ने अच्छा सा बनाकर पूरा कर दिया है, बस जरा काम बाकी है।

13 अक्टूबर को जब किशोर कुमार सम्मान अलंकरण समारोह में यश चोपड़ा को सम्मानित करने के बाद संस्कृति मंत्री इस बात पर दुख व्यक्त कर रहे थे, कि लाख प्रयास के बावजूद किशोर कुमार के परिवार का कोई सदस्य इस बात में रुचि नहीं लेता कि कैसे किशोर कुमार की स्मृतियों को अक्षुण्ण बनाया जाए तथा यह भी कि यदि पुश्तैनी मकान परिवार के जिस किसी भी व्यक्ति के मालिकाना हक में हो, वह सरकार को दे दे तो यह काम बड़ी आसानी से सरकार कर सकती है। संस्कृति मंत्री की इस लगन और सकारात्मक उत्साह का एक बड़ा लाभ खण्डवा को मिल सकता है।

कुछ लोगों की राय थी, कि यदि पुश्तैनी घर को लेकर भी परिवार यह उदारता नहीं दिखाता तो एक अलग ट्रस्ट बनाकर ऐसे लोगों को सरकार एक बड़ा संग्रहालय पृथक से बनाकर सौंप दे, जो गम्भीर, सार्थक और सुरुचिवान रचनात्मक अभिरुचि के बड़े, बुजुर्ग और शहर के सम्मानित हों, जिन्हें श्रेय लेने, नाम, चेहरे के साथ प्रचारित होने का शौक-शगल न हो, तो एक गम्भीर काम फलीभूत हो सकता है। मगर इस तरह की पहल हो तो बड़ी सावधानी और चिन्ता की भी जरूरत रहेगी। संग्रहालय में किशोर कुमार की अभिनीत ही नहीं वे भी फिल्में जिनके गाने उन्होंने गाये हों, आडियो-विजुअल संग्रह-सन्दर्भ आदि सब इक_ा करना अपरिहार्य लेकिन दुरूह काम होगा।

कोई टिप्पणी नहीं: