शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

जि़न्दगी के सबक और तीन कसमें

एक साथ कई गुणी और परस्पर एक-दूसरे की क्षमता पर विश्वास करने वाले मिलकर जब एक साथ कोई काम करते हैं तो वह विलक्षण और अविस्मरणीय होता है, इस बात को कोई भी मानेगा। वह भी मानेगा जिसने अपने जीवन में तीसरी कसम फिल्म देखी होगी। स्वर्गीय बिमल राय स्कूल के एक कल्पनाशील और आगे चलकर प्रायोगिक सिनेमा की अपनी एक अलग लकीर खींचने वाले शिष्य फिल्मकार बासु भट्टाचार्य के निर्देशन की यह पहली फिल्म थी। फणिश्वरनाथ रेणु की कहानी पर, नबेन्दु घोष की पटकथा पर गीतकार शैलेन्द्र ने इस फिल्म का निर्माण अपने अनन्य सखा राजकपूर को नायक बनाकर किया था। वहीदा रहमान फिल्म की नायिका थीं।

1966 में बनी यह फिल्म व्यावसायिक रूप से एक विफल प्रयोग थी जिसके तनाव का मूल्य फिल्म के निर्माता और गीतकार शैलेन्द्र ने अपनी जान देकर चुकाया मगर उनके नहीं रहने के बाद से आज तक यह फिल्म यथार्थ के सबसे नजदीक, सार्थक और बड़ी गहरी मानी जाती है। शंकर-जयकिशन तीसरी कसम के संगीतकार थे।

फिल्म का नायक हीरामन एक सीधा-सादा जवान है जो अपनी भाभी के साथ रहता है और बैलगाड़ी से सामान-असबाब ढोकर जीवनयापन करता है। हीरामन देखने में बिल्कुल भोला है। अपने आपमें एक मुकम्मल बुद्धू इन्सान को जीते हुए वह एक बार सिपाहियों से मार खाता है और एक भाग किसी तरह बैल दौड़ाकर भागता हुआ अपनी जान बचाता है। वह दो बार कसमें खाता है। फिल्म के आरम्भ के दस मिनट में ही वह दोनों कसमें खा लेता है। तीसरी कसम वह फिल्म के अन्त में खाता है कि बैलगाड़ी में किसी नाचने वाली बाई को नहीं बिठाएगा।

हीरामन को दूसरे गाँव पहुँचाने की जवाबदारी पर एक सवारी मिलती है जिसके साथ सफर लम्बा है। नौटंकी में नाचने वाली हीराबाई को सफर तय करने के बाद भी कुछ देर वह देख-जान नहीं पाता। उसकी पायल की आवाज़, पैर पर चढ़ते हुए चींटे को देखते हुए जब वो अचानक उसका चेहरा देखता है तो उसे परी नजर आती है। इसके बाद एक सफर शुरू होता है।

सजन रे झूठ मत बोलो, पिया की पियारी भोली भाली रे दुल्हनियाँ, दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समायी, सजनवा बैरी हो गये हमार जैसे गाने सुनते-देखते खुद हमें अपनी जिन्दगी का सच शीशे में सामने दिखायी देता प्रतीत होता है। जीवन का दर्शन अद्भुत और मर्मस्पर्शी ढंग से प्रस्तुत करते हैं ये गीत। हीराबाई की नौटंकी में उसका गाया गीत, पान खाये सैंया हमारो, एक अलग दुनिया की बानगी पेश करता है जिसको हीरामन समझ ही नहीं पाता।

फिल्म का अन्त तकलीफदेह है। हीरामन के प्रति हीराबाई का आकर्षण, जमींदार की हीरामन को जान से मारने की धमकी से आक्रान्त हो एक अलग फैसला देता है और हीरामन बैलों को जोर से चाबुक मार दौड़ाता है और कसम खाता है कि अब किसी नौटंकी वाली बाई को बैलगाड़ी में नहीं बैठाएगा।

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