रविवार, 24 अक्तूबर 2010

धर्मेन्द्र : किस्से अरबों हैं....

बीकानेर के प्रीतम सुथार नवम्बर के आखिरी सप्ताह में साइकिल से मुम्बई के लिए निकलेंगे और 8 दिसम्बर को सदाबहार अभिनेता धर्मेन्द्र को जन्मदिन की शुभकामनाएँ देंगे। यों बरसों से हर साल 8 दिसम्बर को मुम्बई पहुँचकर शुभकामनाएँ देना उनका दस्तूर है मगर इस बार तीन योग मिलने से वे विशेष रूप से उत्साहित हैं लिहाजा रेल के बजाय साइकिल से दो हफ्ते की यह कठिन और जटिल यात्रा करने का इरादा उन्होंने बनाया है। तीन योग हैं, उनके अपने धर्मेन्द्र कलर लैब की स्थापना को पच्चीस साल, धर्मेन्द्र के कैरियर के पचास साल और धरम जी की उम्र के पचहत्तर साल पूरे होना। प्रीतम, धरम जी के आसक्त भक्त की तरह हैं। बीकानेर में एक छायाकार के रूप में उनका कैरियर शुरू हुआ। आगे चलकर कलर लैब बन गया। घर में मन्दिर बनाकर बरसों से रोज धरम जी की पूजा करने वाले प्रीतम मानते हैं कि उनके भाग्य का सितारा धरम-भक्ति से प्रबल हुआ। अपने-अपने विश्वास हैं।

धर्मेन्द्र की पहली फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे का प्रदर्शन काल 1961 का है। इस लिहाज से आ रहा साल कैरियर के स्वर्ण जयन्ती वर्ष का है। धर्मेन्द्र इन दिनों दो बड़ी फिल्मों को पूर्ण कर रहे हैं जिनमें से एक उनकी अपनी होम प्रोडक्शन फिल्म यमला पगला दीवाना है जिसमें सनी और बॉबी भी काम कर रहे हैं और दूसरी फिल्म हेमा मालिनी निर्देशित टेल मी ओ खुदा है जिसमें वे पहली बार बेटी ऐशा के साथ काम करने जा रहे हैं। यमला पगला दीवाना तो दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह में प्रदर्शित की जायेगी, हो सकता है टेल मी ओ खुदा आगामी वर्ष में सिनेमाघर पहुँचे। जाहनू बरुआ की एक फिल्म हर पल भी पूरी है जिसमें धर्मेन्द्र ने विशेष सराहनीय भूमिका अदा की है, वह भी रिलीज जल्द होगी।

धर्मेन्द्र अपने समय को बड़ा उल्लेखनीय मानते हैं। उनकी जिन्दादिली, सक्रियता और चुस्ती-फुर्ती हमेशा की तरह है। एक्सरसाइज और फिटनेस का बड़ा ध्यान रखने वाले धर्मेन्द्र पाँच दशक के अपने कैरियर को अपने लिए स्वर्णिम मानते हैं। उनकी यह खासियत रही है कि उन्होंने अपने समय के श्रेष्ठ निर्देशकों के साथ काम किया है। बिमल राय, हृषिकेश मुखर्जी, चेतन आनंद, मोहन कुमार, अर्जुन हिंगोरानी, रघुनाथ झालानी, राज खोसला, जे. ओमप्रकाश, सुभाष घई आदि अनेक ऐसे निर्देशक हैं जिनके साथ उनकी यादगार फिल्में आयी हैं।

वे फूल और पत्थर जैसी अनेक सशक्त फिल्मों के नायक रहे हैं जिनकी वजह से अज्ञात कुलशील निर्देशक भी नाम वाले हो गये थे। अपने लम्बे सफल कैरियर में एक कलाकार और एक इन्सान के रूप में धर्मेन्द्र भीतर-बाहर एक से हैं। वे इतने सहृदय हैं कि अपने घर में चोरी की नीयत से घुसे चोर को भी पिटने से बचाते हैं और पुलिस को नहीं देते उल्टा खाना अलग खिलाते हैं। उनकी पारदर्शिता, संवेदनशीलता, भावुकता के किस्से अरबों हैं।

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