बुधवार, 15 अगस्त 2012

अन्तत: टायगर परदे पर देखा गया...........

एक था टायगर को लेकर दर्शकों में बड़ी जिज्ञासाएँ थीं, बॉडीगार्ड के बाद सलमान खान की फिल्म का बेसब्री से इन्तजार किया जा रहा था। फिल्म प्रदर्शन के सुनिश्चित दिन शुक्रवार की परिपाटी से अलग दो दिन पहले स्वतंत्रता दिवस के दिन इस फिल्म को रिलीज किया गया है। दो कार्यदिवस के बाद फिर ईद तक तीन दिन छुट्टी के हैं। आज सिनेमाघर के आँगन का जो हाल देखा उससे लग गया है कि एक सप्ताह में फिल्म लागत पार करके मुनाफे की भी अच्छी स्थिति प्राप्त कर लेगी।

भोपाल का रंगमहल सिनेमा सुबह से गुलजार है, परिसर में खासी भीड़ और अरसे बाद अनुशासन बनाने के लिए पुलिस की लाठियाँ भी किसी सिनेमाघर में बाहर निकलीं, सौ-पचास लोग सिनेमाघर के बाहर खड़े रहकर भीड़ के अचम्भे को देख रहे हैं, रह-रहकर सिनेमाघर के माथे पर लगे फिल्म के पोस्टर पर सलमान खान को देखकर फिर भीड़ की तरफ निहारते हुए। भई, गजब का आकर्षण इस हीरो के प्रति। सिनेमाघरों में ऐसी भीड़ दुर्लभ है क्योंकि ऐसा क्रेज केवल इसी सितारे के लिए आकर इकट्ठा होता है।

दर्शक बस यह जानता है कि यह सलमान खान की फिल्म है। प्रभाव ऐसा है, कि यशराज बैनर भी दबा हुआ है, निर्देशक कबीर खान का नाम किसी को जानने की जरूरत नहीं। ज्यादा से ज्यादा इतना पता कर लिया कि कैटरीना कैफ हीरोइन है। कहानी भारत और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों रॉ और आय एस आय के दो प्रतिनिधियों की प्रेमकथा है। शुरूआत में नैरेशन में जब कहा जाता है कि देश की सुरक्षा के सवाल पर बहुत सी सच्चाइयाँ छुपा दी जाती हैं तब हम सोचते हैं कि पता नहीं फिल्म में ऐसी कौन सी सच्चाई देखने को मिलेगी जिसको पूरा या आधा हम जान पायेंगे लेकिन वह किस्सा मोहब्बत का होता है। जोया, कैटरीना कैफ आय एस आय और टायगर रॉ के प्रतिनिधि होते हैं।

कबीर खान एक कल्पनाशील और काबिल निर्देशक हैं। सलमान खान परदे पर पहली बार किस तरह और कैसे आये, सबसे बड़ा दिमाग निर्देशक को इसके लिए लगाना होता है। पन्द्रह मिनट का लम्बा सीन जिसमें हीरो स्पायडर मैन की तरह दीवार पर चढ़ता, जम्प करता है, खलनायकों को तबीयत से मारता है और फिर सबके धराशायी होने पर गमछा लपेट कर शान से चल देता है, ओफ्ओह...........हॉल में दर्शक इतना हल्ला करते हैं, सीटियाँ और शोर मचाते हैं कि संवाद सुनायी ही नहीं देते। यह विकट जादू है जो अरसे बाद किसी सितारे को हासिल हुआ है, परदे पर सलमान को देखकर दर्शक जैसे सुध-बुध खो देता है।


एक था टायगर की पटकथा रोचक है। हालाँकि कहानी की तार्किकता कहीं-कहीं भटकती दिखायी देती है। कथ्य कई बार गौण होकर समाप्त हो जाता है मगर फिल्म की गति तेज होने से तुरन्त दर्शक ऐसी विसंगतियों को नहीं जान पाता। मोहब्बत के लिए हर जोखिम उठाया जा सकता है, इसे फिल्म में हम हर पन्द्रह मिनट बाद देखते हैं। टायगर को उसके बॉस शेनॉय, गिरीश कर्नाड एक ऑब्जर्वेशन मिशन सौंपते हैं जिसमें उन्हें एक शोधकर्ता, रोशन सेठ की गतिविधियों को देखकर रिपोर्ट करना है, लेकिन वहाँ से कहानी मोहब्बत की राह पर चल पड़ती है। यह फिल्म हमें हाँगकांग, डबलिन, इस्तांबुल, बैंकाक, हवाना से दिल्ली तक की सैर कराती है, खूबसूरत देश, जबरदस्त एक्शन यह सब हम असीम मिश्रा की सिनेमेटोग्राफी से बड़े प्रभावी ढंग से देख पाते हैं। फिल्म का अन्त कल्पनातीत है। जिस समय क्लायमेक्स में दर्शक किसी सशक्त और सराहनीय अन्त की उम्मीद लगाकर बैठा हो, उस वक्त फिर हम एक नैरेशन सुनते हैं जिसमें बता दिया गया है कि टायगर और जोया अपनी दुनिया बनाकर किसी अनजान मुल्क में सुकून से रह रहे हैं।

अब यह एक अजीब सी विवशता ही कहिए कि सलमान केन्द्रित फिल्म में सलमान के काम के लिए क्या लिखा जाये, क्योंकि उनकी अपनी खूब एक्शन उनके अनुकूल है, इससे कमतर हो भी नहीं सकता। डाँस में वे खूब पसन्द किए जाते हैं। एक खासियत उनकी लगातार यह बढ़ रही है कि वे हिन्दी बहुत अच्छी बोलते हैं और संवादों में अच्छे शब्दों का प्रयोग होता है। उनकी फिल्में देखने परिवार आये इसलिए इन्टीमेट सीन भी उनकी फिल्मों में वैसे नहीं होते जैसे आजकल दूसरी फिल्मों में बहुत आम हुआ करते हैं। कैटरीना के लिए बस इतना कह देना कि वे सुन्दर लगती हैं या गुडिय़ा की तरह दीखती हैं, काफी नहीं है, इस फिल्म में उन्होंने बहुत अच्छे एक्शन सीन किए हैं। रणवीर शौरी का काम अच्छा है, गिरीश कर्नाड और रोशन सेठ जैसे जीनियस सितारे हैं मगर रोशन सेठ के लिए अच्छी भूमिका नहीं लिखी जा सकी।


बहरहाल, एक था टायगर उस तरह से सुपरहिट होगी, जिसका सीधा सरोकार बाजार से है। आपके पास इस फिल्म की ऐसी समीक्षा करने का कोई आधार बचता नहीं जिसमें आप तार्किकता की आधारभूत संरचनाओं में इसे परखो। हाँ यह समझ में नहीं आया कि फिल्म का सबसे हिट गाना माशाअल्लाह फिल्म के अन्त में उस वक्त क्यों रखा गया जब शेष टायटल दिखाये जा रहे होते हैं क्योंकि सिनेमाघर वाला बाहर जाने का रास्ता दिखाने के लिए गेट खोल देता है और फिल्म बन्द कर देता है। यह एक बड़ी खामी है....................