शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

धर्मेन्द्र को सदाबहार क्यों कहा जाता है.......!!

किसी भी कलाकार के हम क्यों मुरीद हो जाते हैं, आकर्षण के पीछे हमारा क्या मन्तव्य रहता है इस पर प्रायः हमारे पास कोई ऐसा उत्तर नहीं होता जो सामने वाले को सन्तुष्ट ही करे किन्तु उसको लेकर भी कोई विशेष चिन्ता हमें नहीं होती क्योंकि पसन्द-नापसन्दगी हमारी निजता का विषय है, किसी सलाह या प्रभाव का उससे कोई सरोकार नहीं होता। धरम जी मुझे पसन्द बचपन से, सत्यकाम अपनी चेतना की पहली फिल्म फिर योगवश और भी अनेक फिल्में देखते हुए उनसे एक पक्का किस्म का अनुराग बन गया। रामानंद सागर जिनका जन्मशताब्दी वर्ष है यह, उनकी निर्देशित आँखें तो कितनी ही बार देख सकता हूँ, इण्डियन जेम्सबाॅण्ड धर्मेन्द्र, ऐसे ही प्रचारित किया गया था उनको, गोल्डन जुबली फिल्म, फिर फूल और पत्थर ओह..........क्या फिल्म। फिर तो हर फिल्म ही देखता रहा। रफ्ता-रफ्ता देखो आँख मेरी लड़ी है, कहानी किस्मत की सुपरहिट फिल्म, फिर उस समय यादों की बारात जिसमें धरम जी की कोई नायिका ही नहीं थी।

धरम जी को लेकर निर्देशकों ने सचमुच अच्छी फिल्में बनायीं। उनके रूप में नायक जिस तरह गढ़ा जाता था, धरम जी उसी का पर्याय नजर आते। एक पारिवारिक आदमी की उनकी छबि का बनना उनके लिए बहुत महत्व रखता था। एक लम्बे इण्टरव्यू में मैंने पूछा था उनसे कि आपको स्वयं अपनी इस प्रतिष्ठा के पीछे क्या कारण दीखता है, आप फिल्में करते रहे, निर्देशक के बताये किरदार में रंग भरते रहे। तब उन्होंने कहा था कि यह मेरा सौभाग्य रहा कि मेरे दर्शकों में माताओं ने मुझमें अपना बेटा देखा, बहनों ने अपना भाई..............इसमें धीरे से सावधानीपूर्वक मैंने जोड़ा और युवतियों ने............इसके उत्तर में वे जिस तरह शरमा गये, वह मुद्रा कमाल की थी। सच है, मुझे अपने शहर के अखबार नवभारत में फिल्म प्रतिज्ञा के विज्ञापन में वो दो लाइनें आज भी याद हैं, रक्षाबन्धन के दिन पूरे गाँव की लड़कियों ने अजीत को राखी बांधी लेकिन राधा ने नहीं, क्यों, जानने के लिए देखिए..........मुझे उस फिल्म का गाना याद आता है - परदेसी आया देस में, देस से मेरे गाँव में.......

धरम जी ने एक नायक के रूप में दर्शकों के बीच पारिवारिक छबि बनायी। यह नायक जब कहानी किस्मत की में पहलवान को हरा कर रुपए जीतता है तो साडि़यों की दुकान जाकर बहन के लिए साड़ी खरीदता है फिर राखी बंधवाता है। ऐसे ही रेशम की डोरी में बड़े भावुक दृश्य हैं। उसका गाना बहना ने भाई की कलाई पे..............एक अन्तरा देखिए..........सुन्दरता में जो कन्हैया है, ममता में यशोदा मैया है, वो और नहीं दूजा कोई, वो तो मेरा राजा भैया है........। निरूपाराॅय, सुलोचना, पूर्णिमा, इन्द्राणी मुखर्जी, सीमा देव उनकी माँ अनेक फिल्मों में बनीं हैं। माँ के प्रति प्रेम, आदर और माँ के लिए बहादुरी और चुनौती के साथ किसी भी सीमा तक जाना धर्मेन्द्र नायक की बड़ी पहचान है। धर्मेन्द्र के निर्देशकों ने उनको अनेक बार शेर से लड़वाया, ऐसे दृश्य उनके ही बस के रहे हैं। उस दौर के गुण्डे-खलनायक शेट्टी जिनके चेहरे पर क्रूरता के अलावा कोई भाव ही नहीं आते थे, धर्मेन्द्र के साथ कितनी ही फिल्मों में अच्छी खासी फाइटिंग.............। धर्मेन्द्र का मुक्का, चीते के पंजे जैसा हाथ कमाल का है। अनेक फिल्मों में फूल और पत्थर से लेकर यादों की बारात तक में वे पुल से चलती रेल पर भी क्या कूदे हैं।

नायिकाओं के साथ उनके दृश्यों के भी दिलचस्प उदाहरण रहे हैं। परदे पर अनेक अभिनेत्रियों के साथ उनके रोमांस, गाने और नजदीकी दृश्य बड़े मर्यादित रहे हैं। ऐसी नायिकाओं में वहीदा रहमान, शर्मिला टैगोर, आशा पारेख, मीना कुमारी, स्मिता पाटिल आदि शामिल हैं। इसके विपरीत हेमा मालिनी, जयाप्रदा, श्रीदेवी, अनीता राज, जीनत अमान, अमृता सिंह, परवीन बाॅबी के साथ काम करने वाले धर्मेन्द्र थोड़ा बोल्ड भी हो जाते हैं। धर्मेन्द्र की खासियत उनका सहज होना है। यह गौर करने की बात है कि वे एक समय में उन अभिनेत्रियों के भी नायक रहे हैं जो सनी की नायिकाएँ रहीं। उनके साथ काम करने के लिए हर अभिनेत्री लालायित रहीं हैं। व्यक्तिशः मुझे उनकी पिछली फिल्म अपने बहुत ही प्रभावित करती है। वे निरन्तर सक्रिय हैं। दो साल पहले पद्मभूषण से सम्मानित होने वाले dharmendra को दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिलना चाहिए। हालाँकि पुरस्कारों सम्मानों की बात पर वे कहते हैं कि मुझे अपने चाहने वालों से जो मिला, उससे बड़ा मान-सम्मान-पुरस्कार कुछ नहीं है........................