मंगलवार, 27 सितंबर 2011

अमृतकण्ठी लता मंगेशकर.. .. ..



28 सितम्बर लता जी का जन्मदिन है। उन पर समय-समय पर इतना कुछ विश्लेषणात्मक ढंग से अनेक जानकारों ने जिस तरह से लिखा और व्यक्त किया है, उस सबके बाद उन पर क्या लिखा जाए, यह अपने आपमें बड़ा असमंजस है। उनके स्वरामृत को कैसे परिभाषित किया जाए, यह अपने आपमें गहरा असमंजस है। सकल जगत के लिए लता जी वो अनमोल पूँजी हैं जो दो सदियों से हमारे बीच में उपस्थित हैं। उन्होंने हमें जो दिया है, वह अनमोल है, अविस्मरणीय है और उससे अधिक कालजयी है। उसमें वो अमरत्व है जो सदियों कायम रहेगा। लता जी का कण्ठ अमृत कुण्ड है और वाणी जैसे अमृत वर्षा।

हम सबको आसमान आश्चर्य से भर देता है, इसलिए क्योंकि उसका कैनवास बेहद विराट होता है। उसका विन्यास ऐसा होता है कि वो हमें हर जगह से दिखायी देता है। उसकी परिधि का अनुमान लगा पाना हम सभी के लिए असम्भव होता है। जिस तरह हम अपनी धरा पर गर्व करते हैं, जिस तरह हम धरा को सन्तुलित करने वाले आसमान पर गर्व करते हैं, जिस तरह हम वेगवान पवन पर गर्व करते हैं, जिस तरह हम हिमालय पर्वत पर गर्व करते हैं, जिस तरह हम अपनी धरा पर भरपूर अस्मिता के साथ प्रकट होते समुद्र और पवित्र नदियों पर गर्व करते हैं, उसी तरह हम लता मंगेशकर पर भी गर्व करते हैं। अपने विराटपन के बावजूद जो विनम्रता और शालीनता हमें अपनी धरा में, आसमान में, वेगवान पवन में, पर्वतराज हिमालय में, समुद्र और नदियों में दिखायी पड़ती है, वही विनम्रता और शालीनता हमें लता मंगेशकर में भी दिखायी देती है।

हमारे लिए यह अत्यन्त मुश्किल काम होता है कि हम उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को अक्षरों, वाक्यों और पन्नों में रेखांकित कर पाएँ। हमारे लिए असम्भव जान पड़ता है उनके बारे में बोल पाना। उनकी दिव्यता, उनकी आभा और आभा मण्डल में जिस तरह का सम्मोहन और अचम्भा हमें प्रतीत होता है, वह एक तरह से हमको अवाक् किए रहता है, ऐसे में कैसे और क्या कहा जाए, समझ में नहीं आता।

देश-दुनिया ने लता जी को अनेक सम्मानों से विभूषित किया है। इसमें पद्मविभूषण और दादा साहब फाल्के अवार्ड से लेकर भारत रत्न तक शामिल हैं। उन्हें तीन बार राष्टï्रीय फिल्म पुरस्कार मिले हैं। फिल्मफेयर ने उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेन्ट अवार्ड से सम्मानित किया है। महाराष्टï्र और मध्यप्रदेश की सरकारें उनके नाम पर हर साल एक सम्मान बरसों से कलाकारों को देती आ रही हैं। यह सब सम्मान और सम्मान स्थापित किए जाने के काम करके दरअसल देश और समाज स्वयं ही अपना मान बढ़ाता है। लता मंगेशकर अपने व्यक्तित्व में एक प्रकार से वट वृक्ष हैं जिनकी सरपरस्ती, प्रेरणा और ऊर्जा से मंगेशकर परिवार की अनेक प्रतिभाएँ प्रकाश स्तम्भ बनीं, फिर चाहें वो आशा भोसले हों या ऊषा मंगेशकर, हृदयनाथ मंगेशकर हों या मीना मंगेशकर, सभी ने संगीत की साधना जिस तन्मयता के साथ की वह एक मिसाल ही मानी जाएगी।

इस लेखक की एक बार उस समय लता मंगेशकर से बड़ी आत्मीय बातचीत हुई थी जब उनके भाई प्रख्यात संगीतकार हृदयनाथ मंगेशकर को मध्यप्रदेश सरकार ने लता जी के नाम से स्थापित सम्मान से विभूषित किया था। उस समय उन्होंने इस बात को स्वीकार किया था कि निश्चित रूप से लम्बे समय में उन्होंने श्रेष्ठ संगीत निर्देशकों के निर्देशन में यादगार गीतकारों के गीतों को अकेले और अपने साथी कलाकारों के साथ गाया है लेकिन हृदयनाथ मंगेशकर के संगीत निर्देशन में गाना उन्हें सदैव चुनौतीपूर्ण लगा है। उन्होंने कहा था कि हृदयनाथ की सोच बहुत श्रेष्ठï है। म्यूज़िक की उसकी समझ एकदम विलक्षण है। वो जो भी गाने बनाता है, वो सबसे अच्छे होते हैं। हालाँकि उसकी धुनें मुश्किल होती हैं मगर उसका ढंग अलग है। उसके संगीत निर्देशन में गाना एक अलग ही अनुभव से गुजरना होता है जिसमें चुनौती होती है जो बाद में रचनात्मक सन्तुष्टि भी प्रदान करती है।

अपने भाई की रचनात्मकता को सराहते हुए लता जी उस बातचीत में यह भी कहा था कि हृदयनाथ के संगीत निर्देशन में मेरे गाने के अनुभव भी विलक्षण ही हैं। उसका बनाया हुआ गाना गाते हुए डर भी लगता है और अच्छा भी लगता है। जब वो अपना गीत मुझसे रेकॉर्ड करा रहा होता है तब उस वक्त वो म्युजिक डायरेक्टर होता है, मेरा भाई नहीं। बार-बार सुधरवाता है बिना डरे हुए। जब तक वो सन्तुष्ट न हो जाये तब तक गवाता ही रहता है। एक बार मैंने उसको कहा, कितनी बार गवाओगे, तंग आ गयी मैं तो। इस पर बड़े प्यार से पास आकर कहता है, दीदी अभी तो दस-बारह लोग ही सुन रहे हैं। अभी ही ध्यान देना ज्य़ादा जरूरी होता है लेकिन यदि बाद में हजारों-लाखों लोग सुनेंगे फिर कुछ कहेंगे तो अच्छा नहीं लगेगा न? उसकी यह बात सुनकर फिर मैं वही करती हूँ जो वो चाहता है।

लता जी ने इसी बातचीत में कहा था कि चाला वाही देश मेरे गाये हुए सबसे अच्छे भजनों का संकलन है जिसमें मीरा बाई की रचनाएँ हैं। हृदयनाथ ने ही इसे कम्पोज किया था। हृदयनाथ मंगेशकर के संगीत निर्देशन में ही लता जी ने लेकिन फिल्म के गाना यारा सीली सीली बिरहा की रात का जलना, धनवान फिल्म का गाना ये आँखें देखकर हम सारी दुनिया भूल जाते हैं, आदि गाये।
एक गायिका के रूप में लता जी की ख्याति और प्रतिष्ठा सभी के जहन में है लेकिन अपनी मुख्य पहचान से अलग एक संगीत निर्देशक के रूप में, कलाकार के रूप में और निर्मात्री के रूप में जो काम किया उसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। इन आयामों में लता जी की भागीदारी का ज़िक्र इसलिए भी जरूरी है ताकि गायन से इतर उनके कला पक्ष की भी जानकारी लोगों को हो।

लता जी ने सबसे पहले 1950 में मराठी फिल्म राम राम पाहुना का संगीत तैयार किया था। इस फिल्म के निर्देशक दिनकर डी. पाटिल थे। यह श्वेत-श्याम फिल्म थी। उस जमाने के महत्वपूर्ण कलाकारों दामूअण्णा मालवणकर, चन्द्रकान्त, बाबूराव अठाणे, रत्नमाला, कुसुम देशपाण्डे, मधु भोसले, शकुन्तला भोमे, सुशीला देवी और कुसुम सुखतणकर आदि ने इस फिल्म में काम किया था। साठ के दशक में उन्होंने चार फिल्मों का संगीत निर्देशन किया। ये फिल्में थीं मराठा तितुका मेळवा, मोहितयांची मंजुळा, साधि मानस और ताम्बड़ी माटी। यह भी शायद किसी की जानकारी में न हो कि उनको साधि मानस फिल्म के लिए महाराष्ट्र राज्य सरकार का बेस्ट म्युजिक डायरेक्टर का अवार्ड मिला था। इसी फिल्म के एक गीत को भी बेस्ट गीत का अवार्ड प्राप्त हुआ था। इस फिल्म के निर्देशक महान मराठी कलाकार भाल जी पेंढारकर थे। इस फिल्म में जयश्री गडकर, चन्द्रकान्त, मास्टर विट्ठल, सुलोचना, राजशेखर, चन्द्रकान्त गोखले आदि कलाकारों ने काम किया था। अपने समय की यह एक चर्चित फिल्म मानी जाती है। संगीतकार के रूप में लता जी ने अपना नाम न देकर आनंदधन नाम दिया था।

लता मंगेशकर ने सिनेमा में अपनी सक्रियता की शुरूआत एक कलाकार के रूप में की थी, यह भी जानकारी बहुत कम लोगों को होगी। तेरह वर्ष की उम्र में 1942 में वे एक मराठी फिल्म पहिली मंगलागौर में आयीं। इसके बाद लगभग हर साल उनकी एक फिल्म बतौर कलाकार आयी। चिमुकला संसार, माझे बाळ, गजाभाऊ फिल्में मराठी में थीं। बाद में एक हिन्दी फिल्म जीवनयात्रा की। उसके बाद फिर सुभद्रा, मन्दिर, छत्रपति शिवाजी में उन्होंने काम किया। राजकुमार सन्तोषी निर्देशित बोनी कपूर की फिल्म पुकार में लता जी एक गाने के साथ विशेष रूप से उपस्थित हुई थीं। ये गाना था, एक तू ही भरोसा। जहाँ तक निर्माण की बात है, लता जी ने चार फिल्मों का निर्माण किया। ये फिल्में हैं, वडाळ, झांझर, कंचन और लेकिन। गायन के अलावा लता जी की सक्रियता के इन आयामों का ज़िक्र इसलिए किया गया ताकि हम एक महान गायिका की बहुआयामीयता के बारे में भी जान लें।

लता मंगेशकर के गाये गीतों के चाहनों वालों की संख्या गिनना आसान नहीं है और न ही यह जानना आसान है कि किसे कौन सा गीत पसन्द होगा? यह भी सम्भव नहीं है कि हम तय कर पायें कि कौन सा गीत ज्य़ादा श्रेष्ठï है और कौन सा गीत कम क्योंकि यह एक कठिन काम है। अक्सर उनसे यह पूछा जाता रहा है कि अपने गाये तमाम गानों में उन्हें खुद कौन से गाने पसन्द हैं? स्वयं लता जी के लिए भी यह काम आसान नहीं रहा है लेकिन समय-समय पर उन्होंने शुरूआत से अब तक गाये अपने ह$जारों गानों में से कई गानों को अपनी पसन्द का बतलाया है। पाठकों को भी लता जी की पसन्द के, लता जी के गाये गाने जानने में निश्चित ही आनन्द महसूस होगा। 1948 में उन्होंने पद्मिनी फिल्म के लिए संगीतकार गुलाम हैदर के निर्देशन में एक गाना गाया था, बेदर्द तेरे प्यार को, इस गाने को वो अपने लिए एक मील का पत्थर मानती हैं। इस गाने की ट्यून रात भर में तैयार हुई थी और लता जी अपनी छोटी बहन के साथ स्टुडियो में धडक़ते दिल से गुलाम हैदर के इस महत्वपूर्ण ऑफर पर रोमांचित हो रही थीं।

आयेगा, आने वाला, उनकी पसन्द का दूसरा गीत है जो बॉम्बे टॉकीज की फिल्म महल का है। खेमचन्द प्रकाश इस फिल्म के संगीतकार थे। सज्जाद हुसैन के संगीत निर्देशन में हलचल फिल्म के लिए 1951 में रेकॉर्ड कराया उनका गीत आज मेरे नसीब ने मुझको, भी उन्हें बहुत पसन्द है। इसी प्रकार बिमल राय की फिल्म दो बीघा जमीन के लिए सलिल चौधरी के निर्देशन में उन्होंने आ री आ निंदिया, गाया था जिसे वो बहुत याद करती हैं।

हाउस नम्बर 44 उनकी वो फिल्म थी जो 1955 में प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म का गाना फैली हुई हंै सपनों की राहें, सचिन देव बर्मन ने लता जी से रेकॉर्ड कराया था। लता जी ने कहा है कि दादा एक बार समझाकर पूरी आजादी दे दिया करते थे। सलिल दा के ही निर्देशन में लता जी ने मधुमति के लिए, आजा रे परदेसी और परख के लिए ओ सजना बरखा बहार आयी, गाने गाये थे। नौशाद के संगीत निर्देशन में कालजयी फिल्म मुगले आजम का गाना, प्यार किया तो डरना क्या, वे कभी भी नहीं भुला सकतीं। लता जी को विश्व विख्यात सितार वादक पण्डित रविशंकर के निर्देशन में अनुराधा फिल्म का गीत, कैसे दिन बीते, गाने का अवसर 1960 में मिला था। लता जी इस गीत के समय भी रोमांचित थीं क्योंकि फिल्म के निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी के लिए यह विशेष फिल्म थी, दूसरी बात एक महान कलाकार इसे संगीतबद्ध कर रहे थे। अल्ला तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम, सबको सम्मति दे भगवान गीत का महत्व लता जी के लिए बहुत ज्य़ादा है। जयदेव हम दोनों फिल्म के संगीत निर्देशक थे, जिसका कि यह गाना था।

हेमन्त कुमार के निर्देशन में बीस साल बाद फिल्म का गाना जो लता जी ने गाया था वो, कहीं दीप जले कहीं दिल, का महत्व लता जी के लिए इन अर्थों में भी था कि वो एक लम्बी बीमारी के बाद ठीक होकर, मगर भारी शारीरिक कमजोरी लिए इस गाने को रेकॉर्ड कराने आयीं थी वो भी डॉक्टर की लाख चेतावनी के बावजूद। फिल्म रुस्तम सोहराब का, ऐ दिलरुबा, सज्जाद हुसैन के निर्देशन में, मदन मोहन के संगीत निर्देशन में फिल्म जहाँआरा का, वो चुप रहें तो, को भी लता जी सृजनात्मक कारणों से नहीं भुला सकतीं क्योंकि दोनों ही संगीत निर्देशकों की कल्पनाशीलता की रेंज गजब की थी।

मदन मोहन के साथ लता जी ने जितने खूबसूरत गाने गाये, उनकी संवेदना का ज़िक्र तो अनेक जगहों पर हुआ है। वो कौन थी फिल्म का गीत, नैना बरसे रिमझिम रिमझिम, उन्हीं मदन मोहन के संगीत निर्देशन में लता जी ने गाया था। आकाशदीप फिल्म 1965 में आयी थी, चित्रगुप्त के संगीत निर्देशन में लता जी ने इस फिल्म में, दिल का दिया जला के गया ये कौन मेरी तन्हाई में, गाया था। रोशन के संगीत निर्देशन में फिल्म बहू बेगम का गीत, दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें, राहुल देव बर्मन के संगीत निर्देशन में बहारों के सपने फिल्म का गीत, क्या जानू साजन, लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल के संगीत निर्देशन में शार्गिद फिल्म का गीत, दिल-विल प्यार-व्यार, उन्हीं के निर्देशन में मेरे हमदम मेरे दोस्त फिल्म का गीत, चलो सजना जहाँ तक घटा चले, राहुल देव बर्मन के संगीत निर्देशन में पड़ोसन फिल्म के, भई बत्तूर गानों का भी अपना अन्दाज है और अपना कमाल जिनको आज भी सुनो तो मन मीठा हो जाता है।

लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल के संगीत निर्देशन में ही दो रास्ते फिल्म का गाना, बिन्दिया चमकेगी और इन्तकाम फिल्म का गाना, आ जाने जाँ भी लता जी के लिए श्रेष्ठï है वहीं पाकीजा फिल्म का गाना, चलते-चलते यूँ ही कोई मिल गया था, गुलाम मोहम्मद के संगीत निर्देशन में उनका अविस्मरणीय गीत है। लता जी सलिल दा के संगीत निर्देशन में अन्नदाता फिल्म के, रातों के साये घने, राहुल देव बर्मन के संगीत निर्देशन में अनामिका फिल्म के बाहों में चले आ और हृदयनाथ मंगेशकर के निर्देशन में चाला वाही देस को भी अपने लिए बेहद स्मरणीय मानती हैं।

सत्यम शिवम सुन्दरम फिल्म का शीर्षक गीत लता जी के लिए आत्मा से अभिव्यक्त होने वाली आराधना है। लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल इस फिल्म के संगीतकार थे। खय्याम के संगीत निर्देशन में बा$जार फिल्म का गीत, दिखायी दिये यूँ, उन्हीं के संगीत निर्देशन में रज़िया सुल्तान फिल्म का गीत, ऐ दिले नादाँ भी उनके दिल के करीब रहने वाले गीत हैं वहीं श्रीनिवास काळे के संगीत निर्देशन में 1985 में उनकी गायी भक्ति रचनाएँ श्रीराम भजन और श्याम घनश्याम बरसो भी उनके लिए यादगार हैं। लता जी राम लक्ष्मण के संगीत निर्देशन में गाये मैंने प्यार किया फिल्म के गीत, दिल दीवाना बिन सजना के माने ना, को भी अपना पसन्दीदा गीत मानती हैं। भाई हृदयनाथ मंगेशकर के संगीत निर्देशन में लेकिन फिल्म के लिए उनका गाया गीत, सुनियो जी अरज म्हारी तो उनके लिए विशिष्टï है ही। वे राहुल देव बर्मन के संगीत निर्देशन में 1942 ए लवस्टोरी का गीत कुछ न कहो, को भी अपने लिए उतना ही खास मानती हैं और नयी पीढ़ी के प्रतिभाशाली संगीतकार ए.आर. रहमान के साथ फिल्म दिल से के गीत, दिया जले, को भी उतना ही पसन्द करती हैं।

दरअसल लता जी के सुरों का खजाना हमें अचम्भित कर दिया करता है। हम जिस गाने को याद करते हैं, उसी को गुनगुनाने लगते हैं और वही गाना हमें श्रेष्ठ प्रतीत होता है। हर दिल में कोई कलाकार इस तरह प्रतिष्ठापित हो, यह बात बहुत मायने रखती है। जाहिर है, किसी कलाकार के लिए भी यह सब आसान नहीं होता। निश्चित रूप से लता मंगेशकर जैसी महान गायिका के लिए भी नहीं। उनकी इस प्रतिष्ठा के पीछे जो संघर्ष है, समय की एक बड़ी आवृत्ति है घटनाओं से भरी, आत्मविश्वास के पल-पल समृद्ध होने और परास्त होने के बीच का जो स्पेस है, उसको जरा संवेदना के साथ महसूस करके देखें, फिर शायद यह समझ पाना सहज प्रतीत हो कि यशस्वीयता कैसे किसी काया में समाविष्ट होती है, कैसे वह उस काया को धीरे-धीरे यशस्वी बनाती है।

हमारे लिए यह जानना आसान हो कि वाणी किस तरह अमृत बनकर हम पर इस तरह बरसती है कि आत्मा को शुद्ध कर देती है, उनकी वाणी, जिन्हें लता मंगेशकर कहा जाता है, जिनका चरण छूना किसी बड़े पुण्य से कम नहीं है...........।


1 टिप्पणी:

संध्या ने कहा…

sundar lekh hai!latajika amrutmayee swar hamesha yaad rahega!kuchh marathi shabda vyakaran ki drushtise [spellings]galat likhe gaye hai,krupaya usame sudhaar kare.picture ke naam ke spelings me galateee hai.dhrushtataa ke liye maafi chahatee hu|