खार में वो उनके अस्थायी ऑफिस का कमरा था, जहाँ अन्तत: हमें प्रवेश करके अपने सारे कौतुहल के चरम पर जाना था। मध्यप्रदेश सरकार का राष्ट्रीय किशोर कुमार सम्मान जीवनपर्यन्त उत्कृष्ट सृजन और निरन्तर सक्रियता के लिए देव आनंद को दिया जाना था। संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकान्त शर्मा, किशोर कुमार की पुण्यतिथि के दिन उनको इस सम्मान से विभूषित करने खास तौर पर मुम्बई गये थे। आपाधापी और चार्जशीट के परिणामों से हुई टूट-फूट के बाद ही अपराजेय देव आनंद ने हरे राम हरे कृष्ण का दूसरा भाग बनाने का ऐलान कर ही दिया था, उनके निकटतम सहयोगी मोहन चूड़ीवाला ने किसी तरह यह समय मुकर्रर करा दिया जिसका साक्षी बनने का अवसर मुझे भी मिला।
समकालीन हिन्दी सिनेमा में विगत छ: दशक से भी अधिक समय की यशस्वी उपस्थिति और निरन्तर सक्रियता के पर्याय श्री देव आनंद की प्रतिष्ठा एक गहरे अभिनेता, प्रतिभासम्पन्न निर्देशक और निरन्तर काम करते रहने वाले निर्माता के रूप में सर्वख्यात और प्रतिष्ठित हैं। उनका जन्म 26 अक्टूबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर जिले में हुआ। पंजाबी यूनिवर्सिटी से कला में स्नातक उपाधि प्राप्त करने के पश्चात उन्होंने मुम्बई में एक कलाकार के रूप मे अपनी शुरूआत की। उनकी सबसे पहली फिल्म का नाम हम एक हैं था जिसका प्रदर्शन काल 1946 का है। इसका निर्माण प्रभात स्टूडियो ने किया था और फिल्म के निर्देशक पी.एल. सन्तोषी थे।
भारत की स्वतंत्रता के पहले का श्वेत-श्याम सिनेमा देश के युवा स्वप्र और कल्पनाशीलता का पर्याय बनकर उभरा था और उस समय श्री देव आनंद एक नायक के रूप में ऐसे युवा के प्रतिनिधि बनकर उभरे थे। दर्शकों ने हिन्दी सिनेमा में एक ऐसे नायक को हम एक हैं के माध्यम से देखा था, जिसमें एक ऊर्जस्व और नैतिक मूल्यों की अस्मिता को समझने वाला आदर्श युवा दिखायी देता था। श्री देव आनंद की शुरूआत सफल थी और इसी क्रम में उन्हें आने वाले दो वर्षों में आगे बढ़ो, मोहन, हम भी इन्सान हैं, विद्या जैसी लोकप्रिय फिल्मों में काम करने का अवसर मिला। दर्शकों ने पहली फिल्म से जो आशा उनके प्रति व्यक्त की थी, वह आगे चलकर सार्थक हुई। प्रख्यात फिल्मकार, अभिनेता गुरुदत्त से मिलने के बाद उनके निर्देशन में आयी सफल फिल्म जिद्दी ने उनकी सम्भावनाओं को विस्तार देने का काम किया।
1949 में श्री देव आनंद ने अपनी स्वयं की निर्माण संस्था नवकेतन की स्थापना की। श्री देव आनंद को लेकर उनके भाई चेतन आनंद और विजय आनंद सहित विख्यात फिल्मकारों गुरुदत्त, राज खोसला, सुबोध मुखर्जी, नासिर हुसैन, शक्ति सामन्त ने समय-समय पर अनेक उल्लेखनीय और सफल फिल्मों का निर्माण किया। अफसर, बाजी, जाल, बादबान, टैक्सी ड्रायवर, हाउस नम्बर 44, इन्सानियत, मुनीम जी, सी.आई.डी., नौ दो ग्यारह, हम दोनों, पेइंग गेस्ट, काला पानी, बम्बई का बाबू, जाली नोट, काला बाजार, हम दोनों, जब प्यार किसी से होता है, तेरे घर के सामने, गाइड, ज्वेलथीफ, जॉनी मेरा नाम, प्रेम पुजारी, हरे राम हरे कृष्ण, तेरे मेरे सपने, बनारसी बाबू, गैम्बलर, वारण्ट, देस परदेस, लूटमार, स्वामी दादा से लेकर हाल ही में प्रदर्शित फिल्म चार्जशीट तक श्री देव आनंद की सृजनशीलता की अनवरत् यात्रा हमारे सामने भारतीय सिनेमा के एक ऐसे महानायक की छबि को गरिमामयी रूप में प्रस्तुत करती है, जिनकी अभिव्यक्ति, क्षमता और इच्छा शक्ति अनूठी और विलक्षण है।
सम्मान अलंकरण का यों कुल वक्त अधिकतम पाँच-दस मिनट होता मगर आधा घण्टा कैसे बीता पता ही नहीं चला। संस्कृति मंत्री ने देव आनंद को चरण स्पर्श करके अलंकरण से विभूषित किया। देव आनंद ने भावविभोर होकर किशोर कुमार को याद किया और कहा कि वह मेरा बहुत अजीज दोस्त था। मेरा और उसका रिश्ता, मेरे और उसके पहले गाने से जुड़ता है। बातचीत में उन्हें नौ दो ग्यारह और टैक्सी ड्राइवर फिल्मों की याद दिलायी। पहली फिल्म का गाना, हम हैं राही प्यार के, हम से कुछ न बोलिए शुरू तो होता है, दिल्ली के इण्डिया गेट से लेकिन बाद में जुड़ता है इन्दौर-धामनोद मार्ग से। इसी तरह टैक्सी ड्राइवर में देव साहब इन्दौर स्टेशन के बाहर खड़े होकर सवारी के लिए आवाज लगाते हैं, महू चार आना। गाइड की अपार सफलता के बाद इन्दौर यात्रा भी जो भरी बरसात में लाखों लोगों के उनका इन्तजार करने और मिलकर खुश होने का स्मरण कराती है।
देव आनंद अस्थायी ऑफिस में मेज पर कागजों, लिफाफों, किताबों का अम्बार लगा था। उसी के पीछे जैसे खुद अपने जतन से सहेजे गये देव साहब का दीदार रोमांच से भरा था। बात करते हुए लगता था जैसे उनकी पूरी देह, उनकी चेतना के साथ दौड़ रही है। ठहरने का उनके पास वक्त नहीं है। चार दिन बाद उन्हें दिल्ली जाना था, एक लाइफ टाइम अवार्ड और लेने के लिए, फिर उसके बाद विदेश जाने की भी तैयारी है। मैं, हम सभी नवासी के इस नौजवाँ को देखकर विस्मित थे, अभी तक विस्मय महसूस करते हैं। सचमुच उनका दिल उसी मकाम पर है, जहाँ गम और खुशी में फर्क नहीं है, जरा भी।
1 टिप्पणी:
rochak, bahut achchhaa.
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