शनिवार, 16 जून 2012

लाख की नाक

रचनात्मक उपक्रमों से समाज का जुडऩा बड़ा जरूरी होता है। हालाँकि यह बहुत कठिन भी है। लेकिन इसके बावजूद इस काम में लगे लोग बिना इसकी फिक्र या इसके लिए चितिन्त हुए, अपना काम किया करते हैं। बड़े शहरों का परिप्रेक्ष्य तो ऊपरवाला जाने, लेकिन अपेक्षाकृत छोटे शहरों में यह जुनून प्रबल ढंग से देखने मिलता है।

रंगकर्मी मित्र प्रेम गुप्ता के आग्रह पर कल दोपहर भोपाल से चार घण्टे दूर दो साल पहले जिले में तब्दील हो गये शहर हरदा मेरा जाना हुआ। प्रेम ने ही भोपाल के ही एक और महत्वपूर्ण रंग-निर्देशक के. जी. त्रिवेदी से भी इस मित्रवत संगत के लिए अनुरोध किया था, वे भी साथ चले। प्रेम भोपाल में पच्चीस-तीस सालों से बच्चों का रंगकर्म कर रहे हैं, भाभी वैशाली गुप्ता कोरियोग्राफर और रंग-निर्देशक हैं, वे भी उनके साथ कद से कद मिलाकर उनके जुनून में सहभागी हैं। प्रेम ने हरदा में अपनी संस्था चिल्ड्रन्स थिएटर अकादमी की ओर से वहाँ के रंगकर्मी संजय तेनगुरिया को एक कार्यशाला का रचनात्मक भार सौंपा था। संजय ने इस काम को बखूबी निभाया। पिछले माह लम्बा बीमार पड़ जाने के बावजूद उन्होंने बच्चों के साथ आखिरकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के नाटक लाख की नाक को तैयार किया, जिसका लगभग पच्चीस मिनट का मंचन देखकर बहुत आनंद आया।

जिस उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के हॉल में प्रस्तुति थी, वहाँ आयोजन शुरू होने के एक-डेढ़ घण्टे तक परीक्षा चली थी और आज सुबह से फिर परीक्षा थी। संजय ने अपने सहयोगियों के साथ शाम की परीक्षा सम्पन्न होने के बाद हॉल खाली किया और आयोजन सम्पन्न होने के बाद अगली सुबह के लिए फिर परीक्षा कक्ष को तैयार किया। कुर्सी-मेज हटाना-जमाना जैसा काम।

बहरहाल सुखद प्रस्तुति के क्षण थे। बच्चों का रंगमंच और आज का समय पर हम सबके वक्तव्य भी हुए। हरदा शहर की विनम्र और व्यवहारकुशल नगरपालिका अध्यक्ष जी गरिमापूर्ण उपस्थिति इस अवसर पर थी। बच्चों के साथ रंग-संसार गढऩा बलुआ मिट्टी से खिलौने बनाने जैसा आनंद देता है मगर वह उतना ही चुनौतीपूर्ण भी है। माता-पिता की निगाह में बच्चे का मतलब जब बहुत ज्यादा रूप से मेरिट और प्रतिशत का अर्थात या पर्याय हो जाये तो चित्रकला, संगीत, नृत्य या नाटक के लिए बच्चों को कौन खुशी-खुशी अनुमति देगा? अतिउत्साही और अपसंस्कृति में संस्कृति की परिभाषा से सहमत कतिपय अविभावक चैनलों के प्रतिस्पर्धी शो तक ही अपनी दृष्टि की इति-श्री मान लेते हैं। ऐसे वक्त में हरदा में बच्चे खेलते हैं, लाख की नाक नाटक।

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