सोमवार, 19 दिसंबर 2011

16 दिसम्बर 2011 - मेहबूब स्टुडियो, मुम्बई


श्रद्धांजलि : देव साहब

हिन्दुस्तानी सिने-प्रेमियों, देव साहब को जानने वाले प्रशंसकों का एक बड़ा वर्ग इस बात से अब तक भी इत्तेफाक नहीं रख पाता होगा कि वे अब हमारे बीच नहीं हैं। हिन्दुस्तान के लोगों के मानस पटल पर उनकी छबि इसी सचाई के साथ अंकित है कि वे अमेरिका विमान से गये हैं। मन में यह भरोसा बना हुआ है कि अमेरिका से हिन्दुस्तान आने वाले जहाज से वे कभी भी लौट आयेंगे। एक महान अभिनेता की कायिक अनुपस्थिति के सच को यही अवधारणा बार-बार झुठलाती है। 

एक द्वन्द्व सा चलता रहेगा उनके चाहने वालों के मन में। इसी सब के बीच जब मालूम हुआ कि देव साहब की श्रद्धांजलि सभा 16 दिसम्बर को शाम पाँच से सात बजे तक मेहबूब स्टुडियो में हो रही है तो मुम्बई एक दिन बाद जाने के बजाय एक दिन पहले जाने की इच्छा को देव साहब के विशेष सहयोगी रहे मोहन भाई के आत्मीय आग्रह से बल मिला। मेहबूब स्टुडियो में कहा जाता है, देव साहब का मनपसन्द मेकअप रूम था। कितनी ही फिल्मों की शूटिंग उन्होंने भारत के महान फिल्मकार मेहबूब खान साहब के बनाये इस स्टुडियो में की थी। 16 दिसम्बर वो दिन था जब यहाँ हम उनकी स्मृतियों को पुष्पांजलि अर्पित करने आये थे।

एक ऐसी अवधारणा थी कि समय से जरा पहले चले जाना चाहिए क्योंकि मित्रों, सहयोगियों, जानने-पहचानने वालों का सैलाब यहाँ टूट पड़ेगा, इसीलिए समय से और एक घण्टे पहले जाकर बैठा। देव साहब की एक बड़ी सी तस्वीर लगी थी। सामने फूलों के गुलदस्तों से एक परिधि बनायी गयी थी। अर्पित करने के लिए फूल-पंखुडियाँ रखे हुए थे। देव साहब के शोकाकुल बेटे सुनील, परिवार के सदस्यों के साथ सभी की संवेदनाओं को ग्रहण कर रहे थे। भावुकजन उनके कंधों और पीठ को थपथपा रहे थे। परिजनों में देव साहब के बड़े भाई चेतन साहब और छोटे भाई विजय साहब के पुत्रगण, भांजे शेखर कपूर शामिल थे। एक तरफ गम्भीर और संवेदन-स्वर में एक महिला गायिका कबीर के भजन धीमे-धीमे गा रही थीं। माहौल में अवसाद था, दुख था लेकिन दुख में सब साथी थे, आपस में एक-दूसरे के, सभी को देव साहब के जाने का गम था।

शम्मी कपूर साहब के बेटे आदित्य राजकपूर आरम्भ से थे और लगातार देर तक रहे। विशिष्टजनों का आना शुरू हुआ तो रात्रि आठ बजे के बाद तक जारी रहा। कबीर बेदी, सिमी ग्रेवाल, मुमताज, बिन्दु, आशा सचदेव, रणधीर कपूर, ऋषि कपूर, राजीव कपूर, टीना अम्बानी, जीनत अमान, वहीदा रहमान, हेमा मालिनी, शेखर सुमन, सतीश कौशिक, आमिर खान, भरत कपूर, मुकेश ऋषि, दिव्या दत्ता, आशुतोष गोवारीकर, विधु विनोद चोपड़ा, जगदीप और उनके बेटे जावेद-नवेद, प्रेम चोपड़ा, यश चोपड़ा, बॉबी देओल, प्रसून जोशी, राजेश रोशन, अमित खन्ना, रमेश सिप्पी, किरण जुनेजा, हनी ईरानी, तब्बू, अब्बास-मस्तान, फरदीन खान, राममोहन, हरीश पटेल, अभिषेक बच्चन आदि निर्देशक, कलाकार, गीतकार, संगीतकार और कुछ के साथ उनके परिजन सभी यहाँ अपना कीमती वक्त निकालकर एक महान कलाकार को आदरांजलि देने आये।


 दो हिस्सों में सभी आगन्तुकों के बैठने की व्यवस्था की गयी थी। लगभग सभी चैनलों, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, मेगजीन, प्रेस और एफ एम रेडियो के प्रतिनिधि और अनेक वरिष्ठ पत्रकार भी यहाँ आये। देव साहब के परिवार के इस गहरे दुख में सहभागी होने का उनके अपनों के लिए यह पहला मौका था और सभी ने यहाँ आकर संवेदनशीलता और शिष्टाचार का परिचय दिया। मित्रों की छोटी-छोटी बैठकों में देव साहब को सब याद कर रहे थे, उनकी बातें कर रहे थे, उनसे जुड़ी यादों का स्मरण कर रहे थे। देव साहब की सामने लगी बड़ी सी तस्वीर को देखते हुए लग रहा था कि इस सम्मोहक चेहरे से जैसे स्मृतियों के वृहत आयाम खुल रहे हों, खूब सारे रास्तों से जैसे वो सब गाने टहलते हुए आ रहे हों जो देव साहब पर फिल्माये गये।

मुझे फिल्म माया का वो गाना इन दो-तीन घण्टों में लगातार याद आता रहा, कोई सोने के दिलवाला, कोई चांदी के दिलवाला, शीशे का है मतवाले मेरा दिल, महफिल ये नहीं तेरी, दीवाने कहीं चल...........................

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

आपने इस श्रधांजलि दिवस का ऐसा सचित्र वर्णन किया है तो यूँ लगता है जैसे वहां हम सभी उपस्थित होकर देव साहब को पुष्पांजलि अर्पित कर रहे हैं. देव साहब को हार्दिक श्रधांजलि.

सुनील मिश्र ने कहा…

जेन्नी जी, आपका आभारी हूँ। आपकी ऐसी सराहना से लगता है, सृजनात्मक श्रम सफल हुआ। धन्यवाद आपका।