हिन्दी में प्रभुदेवा निर्देशित दूसरी फिल्म राउड़ी राठौड़ भी बाजार के आँकड़ों के हिसाब से सुपरहिट है। पहले दिन इसने पन्द्रह करोड़ का व्यापार किया था। लगभग पचास करोड़ लागत की राउड़ी राठौड़ ज्यादा कमाई कर लेगी। ऐसे मसाले फिल्म में भरपूर इस्तेमाल किए गये हैं। दिलचस्प यह है कि तार्किकता के धरातल पर यह एक निरर्थक फिल्म है मगर सिनेमाहाल में बैठकर सारी निरर्थकता भी इस तरह दर्शक के द्वारा पचायी जाती है जैसे भीतर ही भीतर वह सोच रहा हो कि यदि इसे व्यर्थ साबित कर दिया तो फिल्म देखने का उसका निर्णय उसकी समझदारी कैसे माना जायेगा।
बहरहाल अब तक कई आलोचकों समीक्षकों ने यह ठहरा ही दिया है कि यह फिल्म कालीचरण से प्रेरित है जिसे सुभाष घई ने तीन दशक पहले बनाकर तब के खलनायक शत्रुघ्न सिन्हा के हीरो बनने का रास्ता बुलन्द किया था। इस फिल्म में नायिका उनकी बेटी सोनाक्षी सिन्हा हैं। अक्षय कुमार फिल्म के हीरो हैं। आमतौर पर राउड़ी नाम से जुड़कर फिल्में दक्षिण में खूब बनी हैं राउड़ी इन्स्पेक्टर, असेम्बली राउड़ी आदि। संजय लीला भंसाली की पिछली दो-तीन अच्छी फिल्में भी व्यावसायिक रूप से विफल रही हैं। प्रभु देवा ने वाण्टेड निर्देशित की थी तब उनको लगा था कि अपने लिए एक फिल्म प्रभु देवा को बनाने दी जाये हो सकता है उनके पास भी पैसे की बरसात हो जाये और वे आर्थिक रूप से सुरक्षा महसूस कर सकें। कुछ चतुर निर्देशक आजकल यही कर रहे हैं। खुद काम करना बन्द कर दिया है क्योंकि सफलता को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। ऐसे निर्देशकों में आदित्य चोपड़ा और करण जौहर तो शामिल थे ही राजकुमार हीरानी मिल जाने के बाद विधु विनोद चोपड़ा और प्रभु देवा मिल जाने के बाद संजय लीला भंसाली भी उनमें शामिल हो गये हैं।
राउड़ी राठौड़ की पहली विसंगति यह है कि यह बिहार के एक काल्पनिक शहर देवगढ़ की घटना के रूप में बनायी गयी है। उत्तर भारत में राउड़ी शब्द प्रचलित नहीं है। दक्षिण में बदमाश या लफंगे को राउड़ी बुलाया जाता है। पर निरर्थकता का तकाजा यही है कि हम इस उलझन में न पड़ें और फिल्म देखते हुए उसमें मसखरी, एक्शन, हिंसा और बहुत ही न के बराबर दिखायी देने वाली संवेदना पर मुग्ध बने रहें। अक्षय कुमार राठौड़ भी हैं, एक एसीपी और दूसरी ओर मुम्बई में एक चोर शिवा भी। चोर चोरी जल्दी छोड़कर रोमांस करने लगता है और नायिका के पीछे शादी के उस घर में पहुँच जाता है जहाँ नायिका पटना से आयी है। रोमांस और उसके नसीब में आने वाला समय तभी से गड्डमड्ड हुआ करते हैं। आप देखते रहिए, किस तरह देवगढ़ का खलनायक बाप जी और उसके गुण्डे राठौड़ के पीछे लगे हैं। राठौड़ और शिवा पन्द्रह मिनट अपनी-अपनी भूमिकाएँ साथ अदा करते हैं फिर राठौड़ की मौत और उसके बाद आगे शिवा, राठौड़ की भूमिका में।
फिल्म में दक्षिण की फिल्मों की तरह ही हिंसक मारधाड़ है। एक्शन दृश्य इतने जबरदस्त हैं कि लोग देख-देखकर राउड़ी की जय बोलते हैं। फिल्म के गाने सुपरहिट हैं। मीका सिंह का गाया गाना चिन्ता ता ता सुपरहिट है। और भी गाने अभी प्रोमो और फिल्म चलने तक सबके दिमाग में चढ़े रहेंगे। कलाकारों में अक्षय कुमार ने अपनी दोहरी क्षमताओं का प्रयोग किया है, एक्शन और कॉमेडी दोनों जगहों पर। सोनाक्षी, आजकल की दूसरी हीरोइनों की तरह जीरो फिजिक नहीं हैं और उनका चेहरा ज्यादा देशी है सो अच्छी लगती हैं। कैमरा उनकी कमर और नाभि को फिल्म के हीरो और दर्शकों दोनों के लिए कुछ ज्यादा ही उदारता से देखता है। दक्षिण के प्रसिद्ध कलाकार नस्सर फिल्म के खलनायक हैं, उनका अपना एक अलग अन्दाज है। मणि रत्नम और कमल हसन की कई फिल्में उन्होंने की हैं। यहाँ उनके संवाद डब किए गये हैं मगर अपने हावभाव और एक्शन से वे प्रभावित करते हैं।
यशपाल शर्मा ने फिल्म में पुलिस इन्स्पेक्टर का किरदार अदा किया है। वे एक बहुत क्षमतावान और किरदारजीवी कलाकार हैं। वे अपनी जगह बहुत असर छोड़ते हैं। इस फिल्म में सीरियलों के लोकप्रिय कलाकार परेश गणात्रा को भी अक्षय कुमार के साथी की लम्बी भूमिका मिली है। इसके अलावा इन्सपेक्टर रजिया के रूप में गुरदीप कोहली का काम भी आकृष्ट करता है। इन सबके बीच भोपाल के कलाकार राज अर्जुन ध्यान खींचते हैं। वे भी फिल्म में आरम्भ से अन्त तक एक सकारात्मक भूमिका में हैं जो गन्ने की चरखी चलाता है, एक पैर से लंगड़ाकर चलता है लेकिन गजब हौसले वाला बहादुर जो एसीपी राठौड़ की जान की रक्षा के लिए अपनी जान की परवाह नहीं करता। लम्बे समय से संघर्षरत इस युवा को यह एक अच्छी भूमिका मिली है जिसकी सराहना की जानी चाहिए।
हिन्दी सिनेमा में फिलहाल आज वो समय है जब इण्टरटेनमेंट को किस्म-किस्म की पक्षधरता के साथ परिभाषित किया जाता है। तार्किकता से अलग उसके सारे तर्क हैं और हम अन्त में यहाँ पर तमाम निरर्थकता के आगे हार भी मानते हैं क्योंकि ऐसी फिल्मों से खूब कमाई हो जाती है, सितारों को और अवसर मिल जाते हैं और जमाने की भाषा में फिल्म हिट हो जाती है। राउड़ी राठौड़ से बहुत ज्यादा निराश होने की जरूरत नहीं है। अपनी बर्दाश्त और नजरअन्दाज करने वाली क्षमता के पार जाकर भी ऐसे मनोरंजन से सहमत होने के इम्तिहान में बैठना चाहिए..........................
2 टिप्पणियां:
Sarita sharma
khoob vistaar se likha aapne is film par...! pahle paraagraaph kee antim pankti padhte hee man-mastishk ye nirnay kar leta hai ki is film ko dekhne me samay,paisaa aur oorjaa nahee lagaani hai. vaise aapko dakshin kee filmo ke vishay me bhee vishad jaankaari hai. vidambanaa hai ki aaj ke daur me aisee nirarthak filme hit hotee hain aur saarthak filme nuksaan kaa sauda saabit hoti hain.
sarita jee, achchha laga aapne sameeksha padhkar ek ray banayee. sab tarah ka cinema dekhna ab mujhe chav sa lagne lagaa hai. aisee nirarthak magar bazar kee nazron men sarthak filmon ka hee zamana hai. mera sujhav hai ki is film ko aap zaroor dekhiye. asahmat hote hue bhee uske maze men kai bar ham sab jane kaise shamil ho jate hain....
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