कुछ महीने पहले अनिल शर्मा को किसी ने भोपाल के बारे में सुझाया, यह कि यहाँ फिल्म बनायी जा सकती है, बड़ी और सफल भी। अनिल शर्मा बड़े कैनवास के फिल्म बनाने वाले निर्देशक के रूप में खूब जाने जाते हैं। वे अपनी पिछली हिट फिल्म गदर एक प्रेमकथा को बीसवीं सदी की पाँच हिट फिल्मों में से एक ठहराते हैं। यही अनिल शर्मा भोपाल आये और उन्होंने तय किया कि सनी देओल के साथ सिंह साहब द ग्रेट फिल्म यहीं बनायेंगे। यह फिल्म अब पूर्णता के निकट है। बीच-बीच में अनिल शर्मा ने जो कि फेसबुक पर भी प्राय: हुआ करते हैं, अपने अनुभव व्यक्त किये कि भोपाल में यह फिल्म बनाना बहुत सुखद रहा है और खासतौर पर उन्होंने सनी देओल के साथ दक्षिण के प्रतिभाशाली कलाकार प्रकाश राज के द्वन्द्व दृश्यों को भी यह कहते हुए रेखांकित किया कि मुझे हुकूमत का समय याद आ गया जब धर्मेन्द्र और सदाशिव अमरापुरकर की टक्कर लाजवाब लगी थी। उन्होंने महसूस किया कि इतिहास दोहराया जा रहा है।
भोपाल अब दूसरा फिल्मसिटी बनता जा रहा है। भोपाल में फिल्मसिटी बनायी जाये इस बात पर सरकारी स्तर पर विचार-विमर्श शुरू हो गया है। रायसेन जिले में आने वाली मगर चिकलोद कोठी के सामने हिस्से की एक बड़ी जमीन को देखा गया है और उसी से फिल्मसिटी का सपना जुड़ रहा है। आसपास जो आवासीय परिसर निर्माणाधीन हैं उनके विज्ञापनों में, फिल्मसिटी के पास, लिखा जाने लगा है।
कभी भोपाल में फिल्म निर्माण सपना था। मणि कौल ने एक बौद्धिक फिल्म सतह से उठता आदमी, मुक्तिबोध की कृति पर बनायी थी। कुमार शाहनी ने भोपाल-माण्डू आकर ख्यालगाथा फिल्म का निर्माण किया। छुटपुट शूटिंग भोपाल में कभी-कभी कौतुहल खड़ा कर दिया करतीं। फिर आयी बरसात या सूरमा भोपाल आदि। मर्चेण्ट आयवरी की फिल्म मुहाफिज यहाँ की सबसे अहम फिल्म थी जो डेढ़-दो माह की लगातार शूटिंग में बनकर पूरी हुई। तब भारी-भरकम शशि कपूर को देखना दाँतों तले उंगली दबा लेना होता था, वे एम्बेसडर कार में ड्रायवर के बगल में जैसे-तैसे फँसकर बैठ पाते थे। अभी कुछ दस सालों में ज्यादा माहौल बना जब सुधीर मिश्रा हजारों ख्वाहिशें ऐसी और विशाल भारद्वाज मकबूल फिल्में बनाने के लिए यहाँ आये। विजयपत सिंघानिया ने भी वो तेरा नाम था फिल्म के कुछ दृश्यों के लिए पुराने भोपाल को चुना था। सईद अख्तर मिर्जा को अपनी फिल्म नसीम के लिए पुराने भोपाल के कुछ इलाके बड़े मुफीद लगे थे।
एक समय जब प्रकाश झा भोपाल के गूँज बहादुर सिनेमा में सिनेमा को टैक्स फ्री करने वाली कमेटी के समक्ष अपनी फिल्म मृत्युदण्ड लेकर आये थे तब शायद उनको अनुमान न रहा होगा कि वर्षों बाद उनका डेस्टिनेशन भोपाल ही होगा। गंगाजल और अपहरण तक आते-आते प्रकाश झा को अपनी आगामी परियोजनाओं के लिए नये शहर की तलाश थी जो भोपाल पर जाकर पूरी हुई। अच्छी तहजीब और संस्कृति वाला शहर, बेहतर हिन्दी और परिष्कृत उर्दू जुबाँ वाला शहर भोपाल उनको अपनी फिल्म राजनीति के लिए जम गया। फिर तो आरक्षण और चक्रव्यूह के बाद वे अब अपनी नयी फिल्म सत्याग्रह भी बना रहे हैं। भोपाल शहर अब बड़े सितारों की लगातार उपस्थिति का महत्वपूर्ण साक्ष्य बन गया है। शूटिंग स्थल पर मौजूद बने रहने की ललक, ऑटोग्राफ, फोटोग्राफ, फेसबुक पर सितारों की क्षण भर की संगत बाँटने की खुशी, शहर के विभिन्न हिस्सों में अचानक सितारों की उपस्थिति का चमत्कार, एयरपोर्ट पर सितारों का आना-जाना ऐसा लगता है कि मनोरंजन की दुनिया में भोपाल एक नयी आधुनिकता और आकर्षण के साथ दर्ज हो रहा है। यह सुखद भी है कई मायनों में।
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