शनिवार, 3 मई 2014

श्रेय के पीछे एक विनम्र चेहरा : चन्दन रॉय सान्याल


यह काँची को मध्यान्तर के बाद अपनी क्षमताओं से सम्हालने वाला नायक है। नाम है चन्दन राॅय सान्याल। कुछेक फिल्मों में महत्व की भूमिकाएँ निभाते हुए काँची में एक बड़े किरदार के साथ उनकी भागीदारी है जो रेखांकित होती है। सुभाष घई ने इस फिल्म को बनाया तो बड़ी उम्मीदों से था लेकिन कहीं न कहीं पटकथा के स्तर पर किरदारों के महत्व को, उनकी उम्र को रचते हुए उनसे इस बार चूक हुई है। काँची मध्यान्तर के बाद दो-तीन ऐसे कलाकारों के कंधों को वजन और जवाबदारी से भर देती है जो उसे अपनी क्षमताओं के साथ अन्त तक ले जाते हैं। वास्तव में चन्दन राॅय सान्याल की भूमिका कमजोर उत्तरार्ध में भी अपनी बड़ी जवाबदारी सम्हालती है।

चन्दन राॅय सान्याल, दिल्ली मूल के हैं, रंगमंच से जुड़े हुए, अच्छे-खासे संघर्ष और तजुर्बे के साथ वे मुम्बई आये। विशाल भारद्वाज की फिल्म कमीने की वो बात करते हैं जिससे उनको बाॅलीवुड में ठीक से प्रवेश मिला। उसके बाद फालतू एक फिल्म अरशद वारसी के साथ की और ऋषि कपूर के साथ डी-डे। एक फिल्म प्राग की वे चर्चा करते हैं और एक आने वाली मैंगो की। काँची को लेकर उनका भाव मिश्रित है, फिल्म सफल न हो पायी उसका अफसोस है और किरदार सराहा जा रहा है उसकी खुशी। वे कहते हैं कि एक अभिनेता के लिए तो हौसलाआफजाई है, हिट हो जाती तो और मजा आता। वो मेरे हाथ में नहीं है लेकिन उनका तहेदिल से शुक्रिया है जो मेरे किरदार को सराह रहे हैं।

चन्दन राॅय सान्याल ने इस भूमिका के लिए अपना स्क्रीन टेस्ट दिया था। वे नहीं जानते थे कि इस किरदार को इतने ढंग से प्रोजेक्ट किया जायेगा, तीन गाने फिल्माये जायेंगे, डाँस-वाँस होगा। बताते हैं कि सुभाष जी ने कई कलाकारों का स्क्रीन टेस्ट लिया, मेरा जब मौका आया था जितना वक्त मुझे फायनल करने में लगा उससे मैं समझ गया कि शायद मैं चुना जाऊँगा। यह किरदार फिल्म का सूत्रधार भी है। वे अपने दोस्त अंशुमन झा का भी शुक्रिया अदा करते हैं जो मुक्ता आर्ट से जुड़े हैं और जिन्होंने स्क्रीन टेस्ट के लिए प्रेरित किया। चन्दन सुभाष घई की तारीफ करने में पीछे नहीं हैं, कहते हैं कि शो तो मेरा भी उन्हीं का जमाया हुआ है।

काँची की शुरूआत पहला दृश्य ही चन्दन से शुरू होता है, मध्यान्तर बाद चन्दन फार्म में, मीका वाला गाना मुस्टण्डा उन्हीं पर। वे ही मुम्बई में बदला लेने आने वाली काँची के मददगार होते हैं क्योंकि बचपन के दोस्त हैं, पहाड़ के लेकिन फिल्म में नायक का विकल्प नहीं हैं वे। क्लायमेक्स में पुलिस कस्टडी में यह भ्रष्ट-सिद्ध पुलिस अधिकारी अपनी मानवीयता और बड़े साहस के कारण अपने वरिष्ठ अधिकारी द्वारा बख्श दिया जाता है। बावजूद तमाम तारीफों के उदास चन्दन कहते हैं कि ग्लास भर नहीं सका, पर वे सन्तुष्ट नहीं होते, चन्दन एनएफडीसी की फिल्म आयलैण्ड सिटी और बैंगिस्तान की बात करते हैं जो उनकी आने वाली फिल्में हैं।


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